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अब बच्चों पर जिम्मेदारी थोपने के बजाय दोस्ताना व्यवहार करते हैं पैरेंट्स

locationसागरPublished: Jul 22, 2018 05:53:41 pm

चार दशक पहले माता-पिता अपने बच्चों से केवल इतना चाहते थे कि वे परिवार चलाने में उनका हाथ बंटाने लगें पर अब यह सोच बदल गई है।

Special on Parents Day

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सागर. आज से करीब चार दशक पहले माता-पिता अपने बच्चों से केवल इतना चाहते थे कि वे परिवार चलाने में उनका हाथ बंटाने लगें पर अब यह सोच बदल गई है। ज्यादातर पैरेंट्स चाहते हैं कि वे भले ही अपने जीवन में कुछ खास न कर पाए हों, लेकिन बेटा-बेटी को कामयाब जरूर बनाएंगे। यही वजह है कि बेटा-बेटी का भेद भी काफी हद तक खत्म हो चला है। अब अभिभावक बच्चों से दोस्तों की तरह व्यवहार करने लगे हैं। बच्चे भी अपने माता-पिता से हर बात साझा करते हैं।
पैरेंट्स डे के अवसर पर पत्रिका ने कलेक्टर-एसपी के विचार जाने। अधिकारियों ने बताया कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने के बीच वे कैसे अपने बच्चों को समय देते हैं। दोनों ने इस बात पर भी जोर दिया कि बदलते परिदृश्य में बच्चों से फ्रेंडली व्यवहार रखना सबसे अहम है।
इधर, मनोचिकित्सक डॉ. राजीव जैन कहते हैं कि बच्चों और अभिभावकों के बीच जनरेशन गेप ही नहीं बल्कि विचारों में भी अंतर आ जाता है, इसलिए एक-दूसरे की भावनाओं को समझना जरूरी होता है। अभिभावकों को बच्चों के साथ दोस्त की तरह रहना जरूरी है और समय-समय पर उन्हें गाइड करते रहना चाहिए। कभी-कभी बच्चों और अभिभावकों के बीच बातचीत न होने से तनाव की स्थिति बन जाती है। यह मानसिक तनाव उन्हें परेशान करता है। इसलिए दोनों को एक-दूसरे के लिए समझना बेहद आवश्यक है।
बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करता हूं
कलेक्टर आलोक कुमार सिंह के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। हाल ही में दोनों पढ़ाई के लिए दिल्ली गए हैं। वे अपने बच्चों के साथ दोस्तों की तरह रहते हैं। हालांकि काम की व्यस्तता की वजह से उन्हें ज्यादा समय नहीं दे पाते, लेकिन पत्नी प्रीति सिंह उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय देती हैं। कलेक्टर सिंह ने बताया कि मुझे जब भी मौका मिलता है उनसे बात करता हूं। साथ ही साल में दो बार बाहर हम परिवार समेत घूमने जाते हैं और यह समय केवल बच्चों के लिए होता है। वे कभी अपने चीजें बच्चों पर नहीं थोपते हैं।
बराबर समय देता हूं अपने बच्चों को
एसपी सत्येंन्द्र शुक्ल पर पूरे जिले की सुरक्षा की जिम्मेदारी है लेकिन वे अपने बच्चे के लिए भी उतना ही समय देते हैं, जितना नौकरी के लिए। शुक्ल ने बताया कि बेटा जबलपुर में बीई करने गया है। इससे पहले जब वह स्कूल में था तो उसकी पढ़ाई पर भी मैं ध्यान रखता था। उन्होंने बताया पत्नी अंजु शुक्ल हाउस वाइफ हैं और वह ज्यादा समय उनके साथ रहती हैं। रोजाना फोन पर तो बात करते ही हैं, साथ ही छुट्टियों में बेटे से मिलने भी जाते हैं।

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