पानी न होने के चलते जिस जमीन पर परंपरागत किया है। अब अनिरूद्ध ही नहीं इनके फसलें भी ठीक से नहीं हो पाती थी, साथ जिले के दर्जनों किसान ने स्ट्रॉबेरी उस जमीन पर अनिरुद्ध ने अपने पहले की खेती में रूझान दिखाया है। देवरी ही प्रयास में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर और केसली ब्लॉक में स्ट्रॉबेरी की दूसरे किसानों के लिए उदाहरण पेश खेती की जा रही है।
कोविड के पहले इंदौर में उनके सात कोचिंग सेंटर चल रहे थे और अच्छी-खासी आय थी, लेकिन कोविड की वजह से बंद हो गई। किंतु कोविड उनके हौसले को नहीं बांध सका। कोचिंग बंद होने के बाद अनिरुद्ध अपनी जड़ों की ओर लौटे। गांव में खेती को नया आयाम देने की ठानी और अपनी मेहनत के दम पर बुंदेलखंड की धरती पर ठंडे प्रदेशों वाली स्ट्रॉबेरी की फसल लहलहा दी। अब वे डेढ़ एकड़ जमीन पर एक सीजन में ही पांच लाख रुपये का मुनाफा कमाने की दहलीज पर हैं।
केसली ब्लॉक में ही उरकंटा गांव के किसान जनकरानी मेहरा ने बताया कि इस वर्ष से अक्टूबर में बोअनी की अपन इसका और अब फल निकलना शुरू हो गया है। एक एकड़ में बोअनी है। मेहरा ने बताया कि जल्द ही किसानों का रूझान इस ओर बढ़ेगा। अनिरूद्ध ने बताया कि स्ट्रॉबेरी के दो सौ ग्राम के एक डिब्बे में 10 पीस निकलते हैं,जिसकी कीमत 60 रुपए तक होती है। लिहाजा 1 किलो के हिसाब से स्ट्रॉबेरी का दाम 350 से लेकर 400 रुपए किलो तक चल रहा है।
इंदौर और भोपाल से आ रही डिमांड
स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए अनिरुद्ध ने हिमाचल प्रदेश के अपने कुछ साथियों से बातचीत की और फिर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का सहयोग लिया। विभाग भी जिले में स्ट्रॉबेरी की खेती के पायलट प्रोजेक्ट के लिए तैयार हो गया। विभाग ने अनिरुद्ध को ड्रिप व मल्चिंग पद्धति से खेती करने की सलाह दी। अंचल में स्ट्रॉबेरी मिलने लगी है तो आसपास से डिमांड शुरू हो गई। जिसके बाद रोजाना लोकल में ही करीब तीन से चार हजार रुपए की स्ट्रेंबिरी बिक रही है। जबलपुर, भोपाल, इंदौर, सागर, मंडला, नरसिंहपुर के साथ ही छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों से भी डिमांड आ रही है।