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जिसने कर्तव्य की वेदी पर दी अपनी आहुति उन पुलिस जवानों की शहादत के अब सुनाए जाते हैं किस्से

locationसागरPublished: Oct 21, 2019 10:10:44 pm

सागर जिले में लंबी है ड्यूटी पर जान गवाने वाले पुलिसकर्मियों की फेहरिस्त

जिसने कर्तव्य की वेदी पर दी अपनी आहुति उन पुलिस जवानों की शहादत के अब सुनाए जाते हैं किस्से

जिसने कर्तव्य की वेदी पर दी अपनी आहुति उन पुलिस जवानों की शहादत के अब सुनाए जाते हैं किस्से

सागर. पुलिसकर्मियों के शौर्य उनकी कर्तव्यनिष्ठा व बलिदान को सोमवार 21 अक्टूबर को देश भर में याद किया जाएगा। देश भर में वर्ष 2018-19 में 292 पुलिसकर्मी ड्यूटी करते हुए हमले, हादसों की चपेट में आए हैं। इन्हें कर्तव्य के लिए प्राणों की आहूति देने वाले पुलिसकर्मियों की सागर जिले में भी लंबी फेहरिस्त हैं। दुर्दांत डकैत हों या खतरनाक अपराधी, जिले में तैनात पुलिसकर्मियों ने अवसर आने पर पीठ नहीं दिखाई। सीने पर जख्म लेकर बलिदान होने वाले पुलिसकर्मियों को आज भी जिले के पुलिस इतिहास में याद किया जाता है। सोमवार को पुलिस अकादमी, जिला पुलिस, 10वी बटालियन में इन वीर पुलिसकर्मियों के पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया जाएगा। उन स्कूलों में भी पुलिसकर्मियों की चर्चा होगी जहां वे पढ़े और फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ समाज की सेवा को समर्पित हो गए।

जिक्र आते ही गौरवान्वित हो जाती है खाकी वर्दी –

1. श्रीकृष्ण अहिरवार और रामचरण गौंड़ –

दोनों आरक्षक 10वी बटालियन में तैनात थे। उनकी तैनाती बालाघाट के नक्सली क्षेत्र में थे। 16 जुलाई 1991 को उनकी टुकड़ी नक्सलियों के क्षेत्र में सर्चिंग पर थी इसी दौरान नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार के बीच 10 वी बटालियन के 12 जवान डटे रहे और उनके साथ कृष्ण-रामचरण गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हो गए। अब ये नाम बटालियन के बलिदानियों की सूची में गौरव के साथ लिए जाते हैं।

महीप सिंह, श्यामलाल दुबे और शिवलाल कुशवाहा –

डकैतों की सक्रियता शाहगढ़ क्षेत्र में दो दशक पहले तक बनी रही। छानबीला थाना इन्हीं डकैतों पर अंकुश रखने के लिए बना था। थाने में तैनाती के दौरान एसआई महीप सिंह व आरक्षक श्यामलाल दुबे ने 23 अक्टूबर 1996 को डकैत हकीम गिरोह के साथ मुठभेड़ में शहादत प्राप्त की। डकैत गोलियां बरसा रहे थे लेकिन दोनों पुलिसकर्मियों ने जान की परवाह नहीे की और मुकाबला करते हुए सीने पर गोलियां खाकर कर्तव्य निभाया था। ऐसे ही आरक्षक शिवलाल कुशवाहा ने भी भानगढ़ थाने के पटकुई में डकैत पन्ना के गिरोह का मुकाबला कर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था।

मदन दुबे और आरक्षक आबिद खान –

कानून व्यवस्था के लिए जान न्यौछावर करने वालों में एसआई मदन दुबे व बीएसएफ की 153 बी बटालियन के आरक्षक आबिद का नाम हमेशा याद किया जाता है। 19 फरवरी 2004 को मकरोनिया में दो समाजों के बीच फसाद को रोकने पहुंचे तत्कालीन पदमाकर चौकी प्रभारी मदन दुबे पर गोलू ठाकुर ने गोली दाग दी थी। दुबे आंख बंद होने तक झगड़े को रोकने की कोशिश करते रहे थे। उनके बाद उनके पुत्र पुलिस विभाग में निरीक्षक के पद पर दायित्व संभाल रहे हैं। रहली निवासी बीएसएफ आरक्षक आबिद ने झारखंड के लातेहार के वाडीटोला में नक्सलियों की हिंसा में जान दे दी थी।

इनके नाम की भी होती है चर्चा :

1. प्रदीप लारिया, आरक्षक सीआरपीएफ : ओडिशा के नक्सल प्रभावित रायगढ़ा में 11 अगस्त 2002 को सर्चिंग के दौरान बारूदी सुरंग फटने से सीआरपीएफ की टुकड़ी उसकी चपेट में आ गई थी। नक्सली हमले में गश्ती दल में शामिल 6 जवानों की जान चली गई थी जबकि 6 जख्मी हुए थे।

2. तेज सिंह चौहान : कोतवाली थाने से फरार बदमाश जीवन बटलर द्वारा गिरफ्तारी के बाद अचानक हमला करने से जख्मी हो गए और 1 सितम्बर 1995 को उनका देहावसान हो गया।

3. घनश्याम प्रसाद पाठक : बिहार के जहानाबाद में चुनाव ड्यूटी के दौरान भड़की हिंसा को रोकते हुए उत्पातियों के हमले में जख्मी हुए थे। 22 सितम्बर 1987 में वे दिवंगतों की सूची में शामिल हो गए।

4. जयगोविंद यादव : शाहपुर चौकी में तैनाती के दौरान फरार इनामी बदमाश की गिरफ्तारी के बाद उसे लेकर जा रहे थे तभी बदमाश ने उन पर हमला कर दिया और वे कर्तव्य की वेदी पर न्यौछावर हो गए।

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