श्रीराम कथा
सागर
Published: May 15, 2022 09:30:22 pm
बीना. शरीर परोपकार करने के लिए मिला है, इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। परोपकार करने से श्रीराम के चरणों में प्रेम बढ़ जाता है। संतुष्टी, शांति से जीना है तो परोपकार करो। यह बात श्रीराम कथा के आठवें दिन श्री बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री ने कही। उन्होंने कहा कि अठारह पुराणों में वर्णन है कि जो दूसरों के लिए जिये वही मानव हंै। साधु संत दूसरे के लिए ही जीते हैं। नदी और पेड़ भी परोपकार करते हैं, क्योंकि नदी अपना पानी नहीं पीती और पेड़ अपने फल नहीं खाते हैं, यह दूसरे के लिए पानी और फल देते हैं। पीठाधीश्वर ने कहा कि भगवान को छल, कपट नहीं भाता है और जिनका मन पवित्र, निर्मल हो वहां रामजी रहते हैं। कथा में आते हो तो श्रीराम के होकर जाना चाहिए और हर समय उनका नाम लेने की आदत डालनी चाहिए। जो सत्संग सुनता है उसे वासना सताती है और जो वासना के नाक, कान काट देते हैं, वह लक्ष्मण हैं। वासना और नशा ज्यादा देर नहीं टिकते, लेकिन कथा का नशा उतरता नहीं हैं। संपत्ति ही विपत्ति का कारण है, इसलिए श्रीराम नाम की संपत्ति एकत्रित करो, जिससे कोई दुश्मन पीछे नहीं पड़ेंगे। उन्होंने आगे वनवास की कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीराम बाल्मीकि आश्रम पहुंचे और रहने के लिए स्थान पूछते हैं। बाल्मीकि जी ने चित्रकूट में रहने की बात कही और भगवान वहां १२ वर्ष तक रहते हैं, जहां भगवान के दर्शन करने मुनि भी पहुंचे। पीठाधीश्वर ने कहा कि श्रीराम के वियोग में दशरथ जी व्याकुल हुए और राम-राम कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए। राजा दशरथ ने अपना जीवन और मरण सुधारा, क्योंकि जीवन में भगवान श्रीराम के दर्शन किए और प्राण त्यागते समय भगवान का नाम लिया। मरते समय यदि भगवान का नाम लें तो जीवन, मृत्यु सुधर जाती है। कथा सुनने के लिए एक लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे, जिससे खिमलासा रोड पर कई बार जाम की स्थिति बनी। आज श्रीराम कथा को विराम दिया जाएगा।
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