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समाज में घट रही घटनाओं का मुख्य कारण गलत खानपान ही है

locationसागरPublished: Mar 22, 2019 02:30:23 pm

Submitted by:

manish Dubesy

गांव का गौरव : महामंडलेश्वर बनने के बाद मातृभूमि पधारे स्वामी राजशेखरानंद महाराज से विशेष बातचीत

The pride of the village Mahamandaleshwar Swami Rajasekharanand

The pride of the village Mahamandaleshwar Swami Rajasekharanand

ईशुरवारा में जन्म और प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई, प्रयागराज में महामंडलेश्वर की उपाधि से हुए अलंकृत, वृंदावन में 19 साल से, कर रहे हैं योग, तपस्या
पुरषोत्तम साहू.
ईशुरवारा. जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। कुलदेवी और आराध्य की कृपा के बिना जीवन में बड़ा मुकाम पाना संभव नहीं है। जन्मभूमि और कुलदेवी का धन्यवाद करने गांव आया हूं। जिस मिट्टी में पले-बढ़े और अपनों के बीच स्वागतए वंदन और अभिवादन से अभिभूत हूं। यह बात भक्ति पीठाधीश्वर से हाल ही में प्रयागराज कुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि से अलंकृत हुए स्वामी राजशेखरानंद महाराज ने पत्रिका से विशेष बातचीत में कही।
ग्राम ईशुरवारा में 15 अगस्त 1967 में जन्मे स्वामी राजशेखरानंद महाराज ने 8वीं तक की शिक्षा ग्राम के ही शासकीय माध्यमिक स्कूल में ली। वहीं 9वीं की पढ़ाई जरुआखेड़ा से पूरी की।
इसके बाद आपने डॉ. संपूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से व्याकरण में आचार्य की डिग्री ली। साथ ही महेश योगी आश्रम में रहकर तीन साल तक वेद अध्ययन किया। आप 15 साल की उम्र में ही विश्व कल्याण और समाज उत्थान की भावना को लेकर वंृदावन चले गए।
बता दें कि वृंदावन में भक्ति पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी कृष्णानंद महाराज से दीक्षा लेने के बाद बहुत कम समय में ही आप सभी वेदों में पारंगत हो गए। आपके सेवाभाव, लगन और साधना को देखते हुए गुरु के देवलोकगमन के बाद आश्रम में भक्ति पीठाधीश्वर की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद से आप विप्र बालकों को धर्म शिक्षा देने के लिए श्रीशंकर भक्ति आश्रम का संचालन कर रहे हैं जिसमें आवास-निवास, भोजन के साथ नि:शुल्क शिक्षा-दीक्षा दी
जाती है।


बातचीत के प्रमुख अंश


सवाल- जिस मिट्टी में जन्म लिया वहां महामंडलेश्वर बनकर आने पर कैसा महसूस कर रहे हैं-
जवाब- हमारे शास्त्रों में जननी और जन्मभूमि की तुलना स्वर्ग से भी बढ़कर की गई है। मैं इस मिट्टी का ऋण जीवनभर नहीं भूल सकता, जिस मां की कोख ने मुझे जन्मा। कुलदेवी की ही कृपा है कि आज मैं यहां तक पहुंचा हूं। हमें कभी भी जननी और जन्मभूमि को नहीं भूलना चाहिए।


सवाल- समाज में आज रिश्तों की मर्यादा तार-तार हो रही है। इसके पीछे आप किसे जिम्मेदार मानते हैं।
जवाब- देश में तेजी से पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। इसके अलावा गलत और तामसिक खानपान मुख्य कारण हैं। हमारे धर्मग्रंथों में भी लिखा है कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। अन्न का हमारे मन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले हमें अपना भोजन सात्विक करना होगा। गलत खानपान से मन में गलत विचार आते हैं जो कर्मों के रूप में सबके सामने आते हैं। यदि छह माह तक गोमूत्र का सेवन कर लिया तो हमारे व्यक्त्तिव में देवत्व उत्पन्न हो जाता है।


सवाल राम जन्मभूमि मामले में आप क्या कहेंगे-
जवाब: भगवान पूरे सनातन धर्म और हिंदू समाज के आराध्य देव हैं। अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बनना चाहिए और बनकर रहेगा। इसका पूरा संत समाज समर्थक है। जब ढांचा गिराया गया तो उस दौरान रासुका लगने पर मैं एटा में 42 दिन जेल में बंद रहा। रामजन्मभूमि में मंदिर बनना पूरे समाज की आस्था से जुड़ा है। मैं इसका समर्थक हूं।


सवाल- कुछ साधु-संतों के कथित आचरण से आज पूरा संत समाज कटघरे के घेरे में हैए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं।
जवाब:- अकेले संतों से गलती नहीं हुई है। समाज के सभी वर्गों से धर्म विरुद्ध आचरण के मामले सामने आते हैं। चूंकि साधु समाज से अपेक्षा रहती है कि वह समाज के मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत हैं इसलिए उनका आचरण और कर्म श्रेष्ठ हों। इसके लिए पूरे संत समाज को कारणों के पीछे विश्लेषण की आवश्यकता है। संतों को अपना आचरण सुधारना होगा। अपना खानपान सात्विक और धर्मसंगत बनाना होगा।

 

सवाल- सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आपकी क्या योजना है-
जवाब- पिछले 19 साल से समाज में शांति, सद्भाव और कल्याण के भाव से सेवा में लगा हूं और आगे भी यही उद्देश्य है कि समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। विश्व कल्याण के लिए निकल पड़ा हूं अब शेष जीवन समाज के लिए है। पहले परिवार में दो.चार लोग थे अब तो पूरा विश्व ही परिवार का हिस्सा बन गया है।
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