scriptकोरोना ने सबकुछ बदला, लेकिन नहीं डिगी आस्था | The tradition of Karthik Vrat played with caution | Patrika News

कोरोना ने सबकुछ बदला, लेकिन नहीं डिगी आस्था

locationसागरPublished: Nov 30, 2020 08:08:24 pm

Submitted by:

sachendra tiwari

सावधानी के साथ निभाई कार्तिक व्रत की परंपरा, जलाशयों में सामूहिक स्नान नहीं

The tradition of Karthik Vrat played with caution

The tradition of Karthik Vrat played with caution

सागर. कोरोना ने आम आदमी के जीवन व आदतों में बड़ा परिवर्तन किया है। खान-पान और सामाजिक मेलजोल तक पर असर पड़ा है। लेकिन संकटकाल में आस्था व परंपरा पर लोगों का विश्वास आज भी कायम है। कार्तिम मास व्रत व स्नान की पुरातन परंपरा का गांव-गांव में पालन किया जा रहा है। कोरोना संक्रमण काल में लोगों को पहनावे में शामिल हुए मास्क के सहारे आस्था की डूबकी एक माह से लगाई जा रही है। गांव-गांव में महिलाएं कार्तिक व्रत कर रही है। वहीं संभाग के प्रमुख धाॢमक स्थलों ओरछा, छतरपुर जिले के जटाशंकर धाम और खजुराहो के मतंगेश्वर, दमोह के बांदकपुर, सागर के बड़े बाजार में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है।
पहले की तरह नजर आ रही टोलियां
बुंदेलखंड में कार्तिक मास के व्रत के तहत व्रत करने वाली कतकारियां भगवान कृष्ण की खोज में पहले अपने मोहल्ले, गांव और शहर में कृष्ण की भक्ति में रमी हुई उनकी खोज में निकलती है। हर रोज खोज का दायरा भी बढ़ता जाता है। फिर महिलाओं की टोली बड़े धार्मिक स्थल भी कृष्ण की खोज में जाती हैं। जहां आस्था का मेला लगता है। ओरछा में न केवल मध्यप्रदेश बल्कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के जिलों की कतकारियां कृष्ण की खोज में आती हैं। इसी तरह छतरपुर जिले के जटाशंकर में दमोह की कतकारियों का मेला लगता है। वहीं, पन्ना में जुगल किशोर मंदिर में पूरे माह कतकारियों का जमावड़ा रहता है। पूरे माह ब्रम्हचर्य के साथ कठिन व्रत करने वाली कतकारियां आखिरकाल पूर्णिमा को कृष्ण की भक्ति का रसपान करती हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रत के बाद महिलाओं को भगवान कृष्ण की प्राप्ति होती है।
60 हजार से ज्यादा महिलाएं कर रही व्रत
कार्तिक मास का पूजन कराने वाले पंडित गुलाब रावत और श्याम बिहारी चौबे ने बताया कि बुंदेलखंड के सागर संभाग में कार्तिक मास के व्रत का बड़ा महत्व है। हर गांव-हर घर की महिलाएं कार्तिक व्रत से जुड़ी हुई है। सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना और निवाड़ी में करीब-करीब 60 हजार महिलाएं कार्तिक व्रत कर रही हैं। चौबे का कहना है कि कोरोना के चलते भले ही लोगों की आदतों में बदलाव आया है, लेकिन परंपरा और आस्था ज्यों की त्यों है। बल्कि ज्यादातर महिलाओं ने कोरोना संकटकाल से उबरने के लिए पहले से भी ज्यादा मनोभाव के साथ कार्तिक स्नान किया है।
200 मीटर के दायरे में एक दर्जन से अधिक हैं राधा-कृष्ण के मंदिर
सभी जानते हैं वृन्दावन कहां हैं, लेकिन हमारे बुंदेलखण्ड के सागर में स्थित बड़ा बाजार भी मिनी वृन्दावन से कम नहीं है। जैसे वृन्दावन में हर गली और दो कदम पर एक मंदिर हैं वैसे ही बड़े बाजार में मंदिर हैं। यह क्षेत्र शहर का छोटा वृंदावन है। यहां जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के इतने मंदिर हैं कि लोग भी उलझन मेंं पड़ जाएं कि दर्शनों के लिए किस मंदिर में जाएं। कार्तिक माह में सभी मंदिरों में पूजा-पाठ का दौर चला। कार्तिक माह में स्नान दान करने वाली महिलाओं ने यहां दीपदान भी किया।
यहां श्रीदेव अटल बिहारी सरकार हैं तो राधा-गोविंद भी। जुगल किशोरजी हैं तो राघवजी भी। सब मंदिर प्राचीन हैं। महज 200 मीटर के दायरे में ही राधा-कृष्ण भगवान के 10 से अधिक मंदिर हैं। आसपास के एक किमी के दायरे को मिला लें तो ऐसे मंदिरों की संख्या 20 से अधिक हो जाती है। मंदिरों की इतनी संख्या के कारण यहां हर त्योहार वृन्दावन जैसा ही मनाया जाता है। कार्तिक माह में कतकारी चकराघाट पर पूजा-अर्चना के बाद यहां रोज दीपदान के लिए पहुंचती हैं। शाम को भजन और आरती करती हैं। बड़ा बाजार से निक लते समय भजनों की धुन सुनाई देती है। सुबह से मंदिर-मंदिर से सखियां एकजुट होती हैं और भजन गाकर चकराघाट तक जाती हैं।
इन मंदिरों की है श्रंखला
कार्तिक माह में बड़ा बाजार मिनी वृन्दावन जैसा ही नजर आ रहा है। कोरोना काल में भक्तों की आस्था डिगी नहीं है, मंदिरों में भजन-कीर्तन का दौर जारी है। रामबाग मंदिर के बाद शुरू हों तो साहू समाज श्रीदेव बांके बिहारी मंदिर, श्रीदेव अटल बिहारीजी राजा सरकार मंदिर, जुगल किशोरजी मंदिर, देव राघवजी मंदिर, राधा गोविंदजी मंदिर, बुलाखीचंद मंदिर, श्रीदेव द्वारिकाधीश मंदिर, श्रीदेव राधा-माधवलाल गेंडाजी मंदिर, गहोई समाज श्रीदेव जगनमोहन मंदिर, कुंजीलाल जगन्नाथ, राधा-गोविंद मंदिर अग्रवाल ट्रस्ट मंदिर ऐसे हैं, जहां रोजाना सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इन्हीं से कुछ ही दूरी पर रसिक बिहारीजी मंदिर, तो चकराघाट पर राधावल्लभजी मंदिर, लक्ष्मीपुरा में कुंजीलाल जगन्नाथ मंदिर, कोतवाली रोड पर लक्ष्मीनारायण मंदिर और काकागंज में गोपालजी मंदिर हैं। इनमें भी विशेष आयोजन
होते हैं।
200 वर्षं से ज्यादा पुराने हैं यह मंदिर
बड़े बाजार में स्थित ये सभी मंदिर 200 वर्षों से अधिक पुराने हैं। देव बांके राघवजी मंदिर के पुजारी निताई दास महाराज बताते हैं बड़े बाजार में स्थित कई मंदिर 200 वर्षों से अधिक पुराने हैं। यहां के लोगों में भक्ति और श्रद्धा के भाव हैं। उन्होंने बताया कि मैं 5वीं पीढ़ी से हूं, जो मंदिर में सेवा दे रहा हूं। कार्तिक पूर्णिमा पर ठाकुर जी का विशेष शृंगार दर्शन होते हैं। कार्तिक नहाने वाली सखियां दीपदान और कथा के लिए मंदिर में आती हैं क्योंकि हरि मंदिर में दीप दान का बहुत महत्व है।
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