सागरPublished: Nov 12, 2022 08:38:59 pm
sachendra tiwari
न ही प्रबंधन, न नपा दे रही ध्यान, धुएं से मरीजों को होती है दिक्कत
बीना. सिविल अस्पताल में मरीजों-घायलों के जख्मों से उतारी गई पट्टियां, ग्लूकोज की खाली बोतलें सहित अन्य कचरा खुले में जलाया जा रहा है। ऐसा नजारा आए दिन परिसर में देखा जा सकता है और डॉक्टर, स्टाफ नर्स, मरीजों पर बीमारियों व संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। अस्पताल से मेडिकल बायोवेस्ट उठाने के लिए सागर से हर दो दिन में गाड़ी आती है, जो कचरा उठाती है। इसके बावजूद बड़ी मात्रा में कचरा खुले में जलाया जाता है। इस कचरे में ब्लड से सनी पट्टियां-कॉटन, खाली बोतलें, पैङ्क्षकग, पॉलिथिन, सीरेंज सहित प्रसूति व अन्य वार्डों से निकला कचरा शामिल रहता है। कचरे को जलाने पर बदबू डॉक्टर, मरीजों आसपास कॉलोनीवासियों, दुकानदारों को भी परेशान करती है। और वातावरण दूषित हो रहा है। इस कचरे में डाली कई कांच की बोतल फूटने से एक युवक भी बाल-बाल बचा।
जानलेवा बीमारी के वायरस नहीं होते नष्ट
जानलेवा बीमारियों का वायरस आग से भी नष्ट नहीं होता। यही स्थिति रसायनों की भी होती है। सांस के जरिए फेफड़ों में जाकर कैंसर, टीबी, दमा और त्वचा रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। अस्पताल प्रबंधन और नगरपालिका के अधिकारी इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाते हैं।
बायोमेडिकल निस्तारण के नियम
केन्द्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए बायो मेडिकल वेस्ट (प्रबंधन व संचालन) नियम,1998 बनाया है। प्राइवेट-सरकारी अस्पतालों को चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले में न तो जलाना चाहिए और न फेंकना चाहिए। नपा के कचरे में भी नहीं मिलाना चाहिए। कूड़ा निस्तारण के उपाय नहीं करने पर पांच साल की सजा और एक लाख रुपए जुर्माना का भी प्रावधान है।
नपा भी नहीं उठाती कचरा
सामान्य कचरा उठाने का काम नपा का है। कई बार कहने के बाद भी ध्यान नहीं दिया जाता है। सिविल अस्पताल के पास ऐसे संसाधन भी नहीं कि इस कचरे को उठवाकर डंपिग ग्राउंड तक पहुंचाकर नष्ट करा सकें।