scriptघर पर रहना पड़े तो कुछ क्रिएटिव करो, इससे मैंने कैंसर जैसी बीमारी को भी दी मात : विभा रानी | Theater Artists and Litterateur vibha Rani | Patrika News

घर पर रहना पड़े तो कुछ क्रिएटिव करो, इससे मैंने कैंसर जैसी बीमारी को भी दी मात : विभा रानी

locationसागरPublished: May 04, 2019 07:51:44 pm

– थिएटर आर्टिस्ट और साहित्यकार विभा रानी से खास बात

घर पर रहना पड़े तो कुछ क्रिएटिव करो, इससे मैंने कैंसर जैसी बीमारी को भी दी मात : विभा रानी

घर पर रहना पड़े तो कुछ क्रिएटिव करो, इससे मैंने कैंसर जैसी बीमारी को भी दी मात : विभा रानी

सागर. नाटककार और अभिनेत्री विभा रानी कहानी, कविता, नाटक, तथा मैथिली अनुवाद के क्षेत्र में समान हस्तक्षेप रखती हैं। दुलारीबाई, सावधान पुरुरवा, कसाईबाड़ा, पोस्टर, रीढ़ की हड्डी और मिस्टर जिन्ना जैसे नाटकों में अपने अभिनय की छाप छोडऩे के बाद उन्होंने स्वरचित एक सोलो नाटकों की चुनौतीपूर्ण कार्य में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। वे शनि वार को अपने निजी कार्य के चलते सागर पहुंची और पत्रिका से खास बात की।

विभा रानी कैंसर से पीडि़त रह चुकी हैं। ब्रेस्ट कैंसर होने के बाद भी इन्होंने लडऩा सीखा। और अपनी कविताओं और नाटकों के माध्यम से कैंसर जागरूकता का भी संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि जब कैंसर जैसी बीमारी होती है तो बहुत सारी क्रियाएं- प्रतिक्रियाएं शामिल रहती हैं। उन्होंने बताया कि इस दौरान इन्फेक्शन का खतरा रहता है तो बाहर नहीं जाना है। बाहर का कुछ खाना-पीना नहीं है। मैं जो एक पैर बाहर, एक भीतर के साथ जीने वाली औरत, 10 महीने घर में कैसे रहूंगी। ये सोचकर ही डर गई थी। लेकिन फिर उसी में से मैंने रास्ते निकाले। घर है, तो घर को ही अपना वर्कप्लेस बना लिया। काम के चक्कर में मैं कितने दिनों से कुछ पढ़ नहीं पा रही थी। तो जमकर पढ़ाई की और लिखा। इतनी कविताएं लिखीं कि उनका कलेक्शन आ गया छपकर। तो अगर किसी को भी कैंसर जैसी बड़ी बीमारी है जिसमें घर पर रहना पड़े, तो इतना क्रिएटिव काम करो कि मालूम ही न पड़े समय कैसे कट गया।

पूरे भारत में किए थिएटर

विभा रानी ने बताया कि आओ तनिक प्रेम करें तथा अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो को मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। भारत में जहां भी बुलाया मैं थियेटर करने के लिए पहुंची हूं। फिनलैंड तथा संयुक्त अरब इमारात में भी अपने नाटकों का प्रदर्शन कर चुकी हैं। उन्होंने बताया वर्तमान में ५ फिल्मों में काम कर रही हूं। उन्होंने बताया २२ संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। रानी मुख्यत: बिहार की रहले वाली हैं, वहां की संस्कृति को बचाने के लिए ये लोकनृत्यों की प्रस्तुति भी देते हैं।

अब रूम थियेटर पर शुरू किया काम

अभी मैं रूम थिएटर पर काम कर रहीं हूं। वजह यह कि थिएटर आर्टिस्ट्स को पैसे नहीं मिलते। उनके पास रिसोर्सेज नहीं होते। रूम थिएटर में हमने ये जाना कि स्क्रिप्ट, डायरेक्शन और एक्टर अच्छे हों तो कम से कम रिसोर्सेज में भी अच्छा थिएटर किया जा सकता है। थिएटर अभिव्यक्ति का माध्यम है। तो आप जो कहना चाहते हैं वो पहले कहें। बाकी की सजावट तब हो जाएगी जब आपके पास रिसोर्सेज होंगे। इसके थ्रू हमने बहुत सारे कवियों और कहानीकारों को तैयार किया। धीरे-धीरे ये थिएटर मोबाइल हो गया। अलग अलग शहरों में जाने लगा।

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