मंडीबामोरा में बने इस मंदिर की खास बात यह कि यहां कोई पुजारी नहीं है, भोले के भक्त स्वयं बेलपत्र व अन्य पूजन सामग्री हजारिया महादेव को अर्पित करते है। जिस पत्थर से मंदिर बना है उस पत्थर को देखकर पता लगता है कि मंदिर परमार काल में मंदिर का निर्माण किया गया होगा। मंदिर के समीप रहने वाले रामस्वरूप रघुवंशी, पूरन सिंह रघुवंशी बताते है कि उन्होंने जब से जन्म लिया है, तब से मंदिर को ऐसा ही देख रहे है। उन्हें उनके पूर्वज बताते थे कि मंदिर बनने के बाद यहां मढबामोरा गांव बसा था। परिसर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के अलावा सती स्तंभ भी मौजूद है।
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200 मीटर के दायरे में निकलती हैं मूर्तियां
बताया जाता है कि मथलापुर की बाउली, भोजपुर के खम्ब, उदयपुर के देवरा और मढबामोरा का मढ़ एक ही रात में बने थे। इसके बाद यहां मढबामोरा गांव बसा था। अभी भी राजा विराट की नगरी में हजारिया महादेव मंदिर से 200 मीटर के दायरे में 5 फीट की खुदाई में मूर्ति निकलती है। जिन्हें लोग इसी मंदिर में रख जाते है या फिर अपने घर के पूजा स्थान पर रख लेते है। जानकार बताते है कि यहां पहले कोई पूरानी बस्ती भू-गर्भित हुई होगी। जिससे यह पत्थर की प्रतिमाएं निकलती है।
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