किस्सा यह था कि गर्भकाल में ही एक बच्चे की 5 वें महीने में मौत हो गई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति में 4 महीने तक दूसरे बच्चे का जिंदा रहना नामुमिकन होता है। यानी दूसरे बच्चे की जान बचना संभव नहीं था, पर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। सिजेरियन के जरिए हुई डिलेवरी में दूसरी बच्ची स्वस्थ पैदा हुई। खासबात यह है कि मां को भी किसी भी प्रकार के कॉम्प्लीकेशन नहीं हुए।

अलग-अलग थी खून की सप्लाई, इस वजह से बची जान
रेडियोलॉजिस्ट डॉ. वृषभान अहिरवार के अनुसार दोनो नवजात शिशुओं के खून की सप्लाई अलग-अलग थी। इस कारण एक की मौत होने पर दूसरी प्रभावित नहीं हुई। अमूमन जुड़वा बच्चों में खून की सप्लाई एक ही होती है। ऐसे में एक की मौत होने पर दूसरे का बचना मुश्किल होता है।
लाखों में एक आता है मामला
गायनी विभाग की सह प्राध्यापक डॉ. जागृति किरण नागर बताती हैं कि इस तरह के मामले रियर होते हैं। उन्होंने बताया कि गोपालगंज निवासी महिला की यह पहली डिलेवरी थी। शुरुआत के पांचे महीने में ही एक बच्ची के खत्म होने की बात परिजनों को पता चल गई थी। नौवें महीने में प्रसूता प्रसव के लिए आई, जहां दूसरी बच्ची स्वस्थ्य पैदा हुई है। उन्होंने बताया कि एक लाख प्रसव में इस तरह का एक केस ही आता है।