दिल्ली की रॉयल मीट्रियोलॉजिकल सोसायटी द्वारा की गई रिसर्च ‘द इंडियन मानसून इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ में सामने आया है कि हिंद महासागर ठंडा है पर प्रदेश के बड़े शहरों में कॉन्क्रीट के ‘जंगल’ और पेड़ों की कटाई से जमीन तपने लगी है।
शहरों की गर्मी और महासागर की ठंड के कारण दिनों-दिनों अंतर बढ़ता जा रहा है। इसी लैंड सी थर्मल कंट्रास्थ के अंतर की वजह से वातावरण में नमी बढ़ रही है। नमी बादलों के अधिक या कम बरसने में प्रमुख कारक होती है। इस स्थिति से हर साल मानसून में 10 से 12 फीसदी तक बदलाव हो रहा है।
शहरों की गर्मी और महासागर की ठंड से लैंड सी थर्मल कंट्रास्थ मतलब दोनों के बीच दिनों-दिनों अंतर बढ़ता जा रहा है। इसी अंतर से वातावरण में नमी बढ़ रही है। यही नमी बादलों के अधिक या कम बरसने के लिए प्रमुख कारक बनती है। इस स्थिति से हर साल मानसून में 10 से 12 फीसदी तक बदलाव हो रहा है।
शहर के जिन हिस्सों में पेड़ों की शून्यता रहती है, उसे अर्बन हीट आईलैंड कहा जाता है। इसमें वे इलाके भी शामिल होते हैं, जहां पर वाहनों के दबाव से धुआं और धूल का प्रदूषण अधिक होता है। इसके अतिरिक्त इमारतों में बहुतायत में लगे एयर कंडिशनर वाले क्षेत्र को भी अर्बन हीट आईलैंड में गिना जाता है।
प्रदेश के 10 शहरों में भू-जलस्तर तेजी से पाताल की ओर जा रहा है। जल संसाधन की रिपोर्ट के मुताबिक जून २०१८ तक यहां लोगों को पानी देना भी मुश्किल होगा। इसमें सागर और ग्वालियर संभाग सबसे ऊपर हैं।
सागर शहर में अब तक कुल 832 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 292 मिमी कम है। बारिश की कमी ने किसानों की कमर तोडक़र रख दी है। संभाग में भू-जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। अभी यह आंकड़ा अलग-अलग क्षेत्रों में 2 से 4 मीटर पर पहुंच गया है।
डॉ.रविंद्र बिसेन, मौसम विज्ञानी दिल्ली
जहां पेड़ खूब होंगे, वहां बारिश अच्छी होगी। लेकिन मप्र में अतिदोहन की प्रवृत्ति से जंगल खत्म हो रहे हैं। वाहनों ने वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ा दी है। ऐसे में मानसून प्रभावित हो रहा है।
डॉ. जीडी मिश्रा, मौसम वैज्ञानिक भोपाल मप्र