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Salaam: लगातार 21 दिन पैदल चलकर इन साहसी जवानों ने जीत लिया रेगिस्तान

ये उठे, जागे और तब तक नहीं रुके जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लिया

सागरJan 12, 2018 / 11:45 am

संजय शर्मा

ये उठे, जागे और तब तक नहीं रुके जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लिया

संजय शर्मा सागर. जांबाज हौसले के लिए भारतीय सेना में अपनी अलग पहचान बनाने वाली महार रेजीमेंट ने देश में 745 किमी लंबे दुर्गम मरुस्थल को 21 दिन में पार करने का कीर्तिमान बनाया है। ये युवा हर रोज औसतन 35 किलोमीटर चले। रेगिस्तान की तपती रेत और रात में कंपकंपा देने वाली सर्दी के बीच बेहद कठिन काम को रेजीमेंट की एक साल पहले तैयार हुई 22 वीं बटालियन के 10 युवा जवानों ने अंजाम दिया है। युवा दिवस के ठीक एक दिन पहले गुरुवार को सेना के इन वीरों ने गज्जेवाला पहुंचकर भारत-पाक की रेगिस्तानी सीमा पर ट्रैकिंग पूरी की।
महार की नवोदित 22वीं बटालियन के जवानों की टुकड़ी को थल सेना अध्यक्ष जनरल विपिनचंद्र रावत ने 21 दिसम्बर को रेजीमेंट के शौर्य चक्र विजेता सैनिक धरमराम की याद में रवाना किया था। भखासर से भारत-पाक सीमा पर ट्रैकिंग के लिए निकले जवानों ने शौर्य के साथ इसे अंजाम दिया। भारतीय उपमहाद्वीप में मरुस्थलीय सीमा पर ट्रैकिंग का यह रिकार्ड है। इस प्रयास को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में शामिल करने की प्रकिया भी शुरू कर दी गई है।

20 दिन लगातार किया सफर
एक साल पहले ही तैयार हुई 22वीं बटालियन के जवानों ने 21 दिसम्बर से 11 जनवरी के बीच 20 दिन तक कठिन सफर किया। वे सीमा पर स्थित गदरा, मुन्नाबाओ, झंडामीठा, लोंगेवाला, किशनगढ़, भुट्टेवाला और टनोट को पार कर गुरुवार को २१वें दिन गज्जेवाला पहुंचे। वहां सिंध ब्रिगेड डिप्टी कमाण्डर कर्नल एचआर देसाई ने फ्लैग इन कर उनका स्वागत किया।

ट्रै किंग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि रेगिस्तान में रात का तापमान 0 डिग्री तक चला जाता था तो दिन में रेत आग की तरह तपती थी। सूरज 35 डिग्री सेल्सियस की आग उगलता था। ऐसे में रेत के टीलों में पांव धंसने से जवान कभी थककर चूर होते तो कभी पानी की तलाश में पस्त पड़ जाते थे। सीमा के किनारे दुश्मन का हर पल खतरा भी रहता था। लेकिन एक वीर की याद में ये उनका हौसला ही था कि 21 दिन में उन्होंने इतिहास रच दिया।

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