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पत्नी का शव ले जाने वाहन मांगता रहा मजदूर, न डॉक्टर ने सुनी न पुलिस ने

locationसागरPublished: Sep 24, 2018 11:10:40 am

Submitted by:

sunil lakhera

संभागायुक्त के आदेश दरकिनार, नहीं मिल रहा नि:शुल्क शव वाहन

Workers not found dead bodies Wife had died

Workers not found dead bodies Wife had died

सागर. सरकारी योजनाओं के कागजी क्रियान्वयन की कवायद पर तो सबका ध्यान हैं पर इनका लाभ जरूरतमंद को मिलना सुनिश्चित हो इसकी सुध लेने की फुर्सत किसी को नहीं है। इस स्थिति को जिला अस्पताल-बीएमसी में मृत्यु के बाद शव वाहन के लिए भटकते जरूरतमंदों से होने वाली लूट-खसोट को देखकर समझा जा सकता है। फसल कटाई से मजदूरी कमाने सतना के मेड़ा गांव से आई आदिवासी महिला की सर्पदंश से मौत के बाद रविवार सुबह उसका पति ओमलाल शव को सतना तक ले जाने वाहन मांगता भटकता रहा पर किसी ने उसकी परेशानी नहीं सुनी, जबकि ढाई माह पहले शव वाहन के लिए भटकते अभावग्रस्तों की कठिनाई व शिकायतों के चलते संभागायुक्त ने पुलिस, अस्पताल और बीएमसी प्रशासन को आदेशित किया था। लेकिन ये आदेश अब हवा हो गए हैं। हादसे या बीमारी पीडि़त व्यक्ति की उपचार के दौरान मौत के बाद शव घर ले जाने के लिए परिजन वाहन की तलाश में भटकते रहते हैं। जिला अस्पताल-बीएमसी या पुलिस चौकी में तैनात कोई भी पुलिसकर्मी उन्हें सरकारी मदद पर मुहैया होने वाले शव वाहन की जानकारी नहीं देता और वे निजी एम्बुलेंस का किराया चुकाने मजबूर हो जाते हैं।
नहीं सुनता कोई
सतना जिले के नादन क्षेत्र के मेड़ा गांव का आदिवासी ओमलाल अपनी पत्नी रन्नोबाई (३५) और चार साल की मासूम बेटी के साथ उड़द-सोयाबीन की कटाई करने बीना आया था। उसके गांव के दूसरे मजदूर परिवार भी साथ थे। उन्हें रामपुर में कटाई का काम मिल गया था। शनिवार रात करीब ११.३० बजे रन्नाबाई चीखती हुई उठी तो पता चला की उसे सांप ने डस लिया है। कुछ ही देर में उसकी हालत बिगड़ी तो ओमलाल उसे लेकर बीना अस्पताल पहुंचा, जहां से उसे सागर रेफर कर दिया गया। रात करीब ३.४० बजे उपचार के दौरान रन्नोबाई की मौत हो गई और शव मर्चुरी में रखवा दिया गया। पोस्टमार्टम के बाद ओमलाल ने पहले जिला अस्पताल और फिर पुलिस चौकी में निशुल्क शव उपलब्ध कराने की गुहार लगाई लेकिन डॉक्टर और पुलिसकर्मी ने वाहन उपलब्ध न कहते हुए टाल दिया। परेशान होकर आखिर उसने एक एजेंट से बात की और साढ़े छह हजार रुपए में अपनी पत्नी का शव लेकर रवाना हो गया। एम्बुलेंस का किराया भी उसने गांव पहुंचकर घर-परिवार और रिश्तेदारों से मांगकर चुकाया।
फंड और वाहन तो हैं पर बताए कौन
जिला अस्पताल और बीएमसी में उपचार के दौरान मृत्यु होने के बाद शव घर लेने के लिए वाहन का किराया चुकाने की स्थिति न होने पर जरूरतमंदों की मदद के लिए रेडक्रॉस की मद से बजट मुहैया कराया गया है।
एेसे मामलों में जिला प्रशासन द्वारा स्वीकृति दी जाती है लेकिन परिजन की मृत्यु के बाद शोक में डूबे और घबराए परिजनों को प्रशासनिक मदद की उपलब्धता का रास्ता बताने की कोई व्यवस्था नहीं है। जिला अस्पताल-बीएमसी में तमाम योजनाओं के बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर लगाए गए हैं लेकिन एम्बुलेंस-शव वाहन के संबंध में कहीं जानकारी डिसप्ले नहीं की गई है।

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