मंदिर में 18 फीट के गोवर्धन बनाए गए, एक ट्राली से अधिक गोबर को एकत्रित किया गया, गोबर की व्यवस्था राजा रिछारिया ने की, अभिषेक गौर, इंजीनियर महेंद्र गोस्वामी, आनंद सोलंकी ने गोवर्धन को मूल स्वरूप प्रदान किया। स्थानीय श्रद्धालुओं ने 156 प्रकार का भोग लगाया, इसमें से 56 प्रकार का भोग रूपा पटेल, निमाई परिवार के द्वारा लगाया गया। भक्तों ने गोवर्धन भगवान की संकीर्तन के साथ 9 परिक्रमा संपन्न की। इस अवसर पर उत्तम सिंह ठाकुर, कैप्टन दुबे, नीरज गोस्वामी, बाबूलाल रोहित, कृपा शंकर विश्वकर्मा, आनंद सोलंकी, महेन्द्र गोस्वामी आदि उपस्थित रहे। महंत केशव गिरी महाराज ने बताया कि यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है, द्वापर के अंत में भगवान श्रीकृष्ण का जब जन्म हुआ तब इंद्र देव स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझकर अहंकार वश उन्होंने स्वयं को ही पूजनीय घोषित किया। इंद्र देव के क्रोध से लोगों को बचाने भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर धारण कर उस अहंकार का अंत किया और ग्वाल वालों को उपस्थित जनमानस को गौ माता सहित सभी की रक्षा की। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पूजन हमें गाय और प्रकृति इसके संरक्षण और संवर्धन के प्रति आस्था रखते हुए ही काम करना चाहिए।