दरअसल मुफ्तियों का कहना है कि मुकद्दस रमजान माह में मस्जिदों और घरों में होने वाली विशेष तरावीह की नमाज के दौरान अधिकांश लोग लाइटें बंद कर अंधेरा कर देते हैं। ऐसा करने के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि अंधेरा होने से कुरआन-ए-करीम को ध्यान से सुना जाता है, जबकि लोगों के इस तर्क को इस्लामी तालीम के सबसे बड़े मरकज दारुल उलूम के मुफ्तियों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है।
मसले को लेकर सोशल मीडिया पर तेजी के साथ वायरल हो रहे दारुल उलूम के एक फतवे में लाइटें बंद कर तरावीह की नमाज अदा करने को एक रस्म करार दिया गया है, लेकिन मुफ्तियों ने फतवे में कहा कि शरीयत में इसकी कोई असलियत नहीं है। जिस तरह अन्य नमाजें लाइट जलाकर अदा की जाती हैं उसी तरह तरावीह की नमाज भी लाइट जलाकर अदा की जाएं। उन्होंने सभी लोगों से इस तरह के अमल को दरकिनार कर गलत रस्मों से बचने की अपील की है।
दारुल उलूम देवबंद के मौलाना कारी इस्हाक गोरा ने बताय कि शरीयत में इसका कोई सबूत प्रमाण नहीं पाया जाता यह एक रस्म रिवाज है, इससे मुसलमानों को बचना चाहिए। दारुल उलूम का फतवा सही होता है। दारुल उलूम देवबंद ने जो फतवा दिया है एकदम सही है। तमाम उलेमा इस पर भरोसा करते हैं, तो तमाम मुसलमानों से यह अपील की जाती है कि जो नई नई रस्म में नए नए विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है इससे बचे, नहीं तो अल्लाह पाक नाराज हो जाएगा ओर अल्लाह से हमें अपने गुनाहों की तौबा करनी चाहिए।
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