scriptदारुल उलूम देवबंद के वरिष्ठ उस्ताद मोहम्मद असलम कासमी ने दुनिया-ए-फानी को कहा अलविदा | Maulana Mohammad Aslam Quasmi passes away | Patrika News

दारुल उलूम देवबंद के वरिष्ठ उस्ताद मोहम्मद असलम कासमी ने दुनिया-ए-फानी को कहा अलविदा

locationसहारनपुरPublished: Nov 13, 2017 10:32:30 pm

Submitted by:

Iftekhar

मुस्लिम समुदाय में शोक की लहर

Maulana Aslam Quasmi

सहारनपुर. इस्लामिक शिक्षा के केंद्र दारुल उलूम देवबंद में शैखुल हदीस रह चुके मौलाना मोहम्मद असलम कासमी का सोमवार को इंतकाल हो गया। उनके इंतकाल से पूरे मुस्लिम समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। मौलाना ने सोमवार सुबह अपने आवास पर ही अंतिम सांस ली। जीवन के अंतिम पड़ाव में वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। मौलाना असलम कासमी के इंतकाल पर मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है कि ऐसे विद्वान की कमी समाज हमेशा महसूस करता रहेगा। मुस्लिम समाज के लोगों का यह भी कहना है कि मौलाना असलम ने अपने पूरे जीवन काल में मुस्लिम समाज ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए जो काम किए हैं। उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

गुलाम देश में हुए थे पैदा जन्म
मौलाना मोहम्मद असलम कासमी का जन्म 3 जून 1937 को देवबन्द में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी शासन काल का दौर भी देखा और उसके बाद उन्होंने आजाद भारत को भी जिया। मौलाना असलम कासमी हमेशा इंसानियत की बात करते थे और उन्होंने अपने पूरे जीवन में इल्म पर जोर दिया। उनके इंतकाल की सूचना मिलते ही मानो पूरा देवबंद ही उनके आवास पर जुट गया। लोग दुखी हैं उनकी आंखों में पानी है। अलीगढ़ से मौलाना के भाई देवबंद के लिए रवाना हो गए हैं। इनके घर पर मौजूद लोगों का कहना है की रात 8:00 बजे मौलाना की मैयत को सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। उनको कासमी कब्रिस्तान दफनाया जाएगा।

अंग्रेजी भाषा को महत्व देते थे असलम कासमी
दारुल उलूम देवबंद से फारसी और अरबी की डिग्री लेने के बाद मौलाना मोहम्मद असलम कासमी ने अलीगढ़ से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। खास बात यह है कि मौलाना असलम कासमी अंग्रेजी भाषा में बोलचाल को विशेष महत्व दिया करते थे। 1964 में दारुल उलूम में उनकी नियुक्ति मुतफर्रिकात के शोबे में हुई। मौलाना मोहम्मद असलम कासमी इंग्लिश के अच्छे जानकार थे और यही कारण था कि जब-जब बाहर देशों से कोई दारुल उलूम आता था तो दारुल उलूम की ओर से वही प्रतिनिधित्व करते थे। मौलाना असलम कासमी ने लेखन के क्षेत्र में भी विशेष काम किया है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी, असहाबे कहफ, मजमुआ सीरत-ए-रसूल और अरबी पुस्तक सीरत-ए-हलबिया का उर्दू अनुवाद उनकी प्रमुख पुस्तकों में आता है।

उम्दा वक्ता भी रहे मोहम्मद असलम कासमी
मोहम्मद असलम कासमी बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ उम्दा वक्ता भी थे। उन्होंने दारुल उलूम देवबंद का नेतृत्व एक वक्ता के रूप में अनेक बार इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमरीका और कनाडा में भी किया। मौलाना मोहम्मद असलम कासमी की कलम से लिखा हुआ लेख कुरान और साइंस विश्व स्तर के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ, जिसको बेहद सराहा गया। ऐसे शख्स का इस दुनिया से जाना बेहद दुखद है और यही कारण है कि आज पूरा मुस्लिम समाज उनके इंतकाल पर आंखें नम किए हुए हैं।

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