9 जुलाई को आ रहे हैं नोएडा दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दक्षिण काेरिया के राष्ट्रपति मून जे इन के साथ 9 जुलाई को नोएडा आ रहे हैं। वह नोएडा के सेक्टर-81 में सैमसंग की नई यूनिट का उद्घाटन करेंगे। पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी चौथी बार नोएडा पहुंचेंगे। इससे पहले वह 31 दिसंबर 2015 व 5 अप्रैल 2016 को स्टार्टअप व दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का शुभारंभ भी कर चुके हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद वह एक बार फिर नोएडा आए और 25 दिसंबर 2017 को नोएडा से दिल्ली के लिए मेट्रो की मजेंटा लाइन का शुभारंभ किया। उस दौरान उनके साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए।
सीएम बनने के बाद दिसंबर में आए थे नोएडा मुख्यमंत्री बनने के बाद नोएडा आकर योगी आदित्यनाथ ने सबको चौंका दिया था। उनकी हिम्मत की मीडिया में सुर्खियां बनी थीं। इसकी वजह थी नोएडा को मनहूस माना जाता था। माना जाता था कि यहां की धरती पर कदक रखने वाले सीएम की कुर्सी चली जाती है। इसके लिए कई उदाहरण भी दिए जाते हैं। 1980 के दशक में वीर बहादुर सिंह को नोएडा दौरे से लौटने के तुरंत बाद पार्टी ने हटा दिया था। भाजपा के राजनाथ सिंह भी सीएम रहते हुए नोएडा नहीं आए। 2011 में मायावती नोएडा आई और 2012 में उनकी कुर्सी चली गई। यह देखते हुए पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने तो लखनऊ में बैठकर ही कई बड़े प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन कर दिया था। इस मिथक को तोड़ने ही योगी आदित्यनाथ दिसंबर 2017 में नोएडा आए थे।
उपचुनावों में मिली हार मुख्यमंत्री के नोएडा दौरे के बाद प्रदेश में चार उपचुनाव हुए। गोरखपुर और फूलपुर में जब भाजपा की करारी हार हुई तो उसे इस अंधविश्वास से जोड़कर देखा गया। चर्चा शुरू हो गई कि यह योगी के नोएडा में आने का फल है। इसके बाद कैराना व नूरपुर उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंकी, लेकिन यहां भी हार नसीब हुई। अब वह फिर से नोएडा आ रहे हैं। ऐसे में चर्चा यह शुरू हो गई है कि अब भाजपा को क्या बड़ा नुकसान होगा।
यह कहा इमरान मसूद ने हालांकि, कांग्रेस व सपा के दिग्गज नेता भी इसको अंधविश्वास ही कहते हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष इमरान मसूद का कहना है कि यह सब एक अंधविश्वास है। वह ऐसे अंधविश्वासों को नहीं मानते हैं। वहीं, सपा के प्रदेश सचिव जगपाल दास ने भी कहा कि वह भी इस अंधवश्विास को नहीं मानते। लेकिन उन्होंने सह भी कहा कि जब सत्ता में रहते हुए सरकार अपनी सीटें खाेने लगे तो समझ लेना चाहिए कि चुनाव में उनका क्या हाल होने वाला है। जब उनकी पार्टी सत्ता में थी तब वह देवबंद में चुनाव हार गए थे। इसके बाद वह सत्ता से बाहर हो गए थे।