मुफ्ती अहमद गाैड से हलाला पर चर्चा के दाैरान यह बात भी निकलकर सामने आई कि, इस्लाम में हलाला के लिए अलग से काेई प्रक्रिया नहीं है। एक शाैहर से तलाक हाेने के बाद महिला दूसरे शाैहर से निकाह करती है। अगर दूसरे निकाह में भी इन दाेनाें के रिश्ते ठीक नहीं रहते आैर फिर से तलाक हाे जाता है ताे एेसे में महिला अगर अपने पहले शाैहर से दाेबारा निकाह रचाती है ताे इसे ”हलाला” कहा जाएगा आैर अगर महिला किसी तीसरे मर्द से निकाह कर लेती है ताे उसे निकाह जाएगा। यहा गाैर करने वाली बात यह है कि दाेनाें ही निकाह में महिला काे इद्दत करनी हाेगी।
इस्लाम धर्म में ”तलाक होने के बाद अगर महिला पहले किसी अन्य म4द से निकाह रचाती है आैर दूसरा निकाह किन्ही कारणाें से टूटने पर दाेबारा पहले मर्द से निकाह करती है ताे इसे हलला कहा जाता है। महिला काे हर तलाक के बाद इद्दत की प्रक्रिया से गुजरना हाेता है। महिला को तलाक होने के बाद 3 महीने 10 दिन की इद्दत करनी हाेती है। अगर शाैहर की मृत्यु हाे गई हाे ताे अब महिला काे 4 महीने 10 दिन की इद्दत करनी हाेगी। इद्दत की इस अवधि में महिला अपने बच्चाें के अलावा किसी अन्य मर्द के सामने नहीं आती। इद्दत की इस प्रक्रिया काे पूरा करने के बाद तलाकशुदा महिला काे यह हक मिल जाता है कि किसी भी अन्य मर्द से निकाह कर सकती है। यदि किन्ही कारणाें से दूसरा निकाह भी नहीं चल पाता ताे आैर महिला काे फिर से तलाक हा जाता है ताे उसे फिर से इद्दत करनी हाेगी। दूसरे तलाक आैर दूसरे तलाक के बाद दूसरी इद्दत करने के बाद महिला स्वतंत्र हाे जाती है कि वह किसी भी मर्द से निकाह कर सकती है। यहां सिर्फ इतना समझना हाेगी कि दूसरे तलाक के बाद दूसरी इद्दत पूरी कर लेने के बाद अगर महिला पहले शाैहर से निकाह करती है ताे इससे हलाला कहा जाएगा आैर अगर वह किसी तीसरे मर्द से निकाह कर लेती है ताे उसे निकाह कहा जाएगा। यानि दाेनाें ही मामलाें में एक ही प्रक्रिया अपनानी हाेगी इससे साफ है कि इस्लाम में हलाला के लिए अलग से काेई प्रक्रिया नहीं है।
हाल ही में देवबंद दारूल उलूम से आए एक फतवे के बाद यह बात साफ हाे गई है कि अगर महिला से पहले तय प्राेग्राम के तहत यानि अपने पहले शाैहर से निकाह रचाने के लिए तय प्राेग्राम के तहत गैर मर्द से निकाह करती है आैर फिर तलाक लेकर दाेबारा से अपने पुराने शाैहर से निकाह कर लेती है ताे यह गलत है। इस्लाम में यह मान्य नहीं है।