1 अमरोहा ( Amroha ) की ढोलक अमरोहा की ढोलक की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी है। हर साल अमरोहा में करीब 50 करोड़ का कारोबार ढोलक से होता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमरोहा से हर वर्ष करीब 6 करोड रुपए कीमत की ढोलक का निर्यात होता है। यहां की ढोलक की मांग कई देशों में है। इस जिले में छोटी-बड़ी 200 से अधिक यूनिट हैं जिनमें ढोलक बनती है। यहां करीब दस हजार लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं।
2 बुलंदशहर का पॉटरी उद्योग ( bulandshar bulandshar news ) बुलंदशहर अपने पोटरी उद्योग से विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखता है। यहां का यह उद्योग करीब 400 वर्ष पुराना है। इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि तैमूर लंग के भारत आने के दौरान मिस्र, तुर्की, सीरिया व अफगानिस्तान से जो कारीगर आए थे वह खुर्जा में आकर बस गए थे। उन्होंने यहां लाल मिट्टी के बर्तनों को चौक पर बनाकर पार्शियन मुगल शैली में उन्हें ढाला था। खुर्जा के पॉटरी उद्योग में बने सजावटी फूलदान और गमले फ्रांस , अमेरिका इंग्लैंड और कनाडा के राष्ट्रपति भवन की भी शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां से ऑस्ट्रेलिया ब्रिटेन अमेरिका और जर्मनी समेत दुनियाभर के 42 देशों में निर्यात किया जाता है।
3 मैनपुरी की तारकसी ( Mainpuri , Mainpuri news , Mainpuri UP ) उत्तर प्रदेश के जिले मैनपुरी की तारकसी एक ऐसी काष्ठ कला है जो उत्तर प्रदेश और भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में मैनपुरी जिले को पहचान दिलाती है। यहां की तारकसी लकड़ी पर की जाने वाली एक तरह की नक्कासी है जो धातु के तारों से की जाती है। यहां शीशम की लकड़ी पर की गई तारकसी की दुनिया भर में मांग है।
4 मुजफ्फरनगर का गुड़ ( Muzaffarnagar मुजफ्फरनगर , muzaffarnagar news ) उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी है। यहां से भारत के अलावा सात समंदर पार तक गुड़ जाता है। मुजफ्फरनगर जिले में हर दिन 80 हजार गुड़ के कट्टों का उत्पादन होता है। मुजफ्फरनगर जिले में 300 से अधिक कोल्हू हैं जिनमें गुड बनता है। इस कारोबार में हजारों लाेग प्रतत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
5 महोबा का गोरा पत्थर (Mahoba ) महोबा जिले का ”गोरा पत्थर” सजावटी पत्थरों में अपनी अलग पहचान रखता है। इस पत्थर की नक्काशी भी महोबा के कारीगर ही करते हैं। वर्ष 2020 से इस उद्योग को काफी उम्मीदें हैं। मंद पड़ रहे इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अब यहां पट्टों के लिए ई टेंडरिंग की व्यवस्था की है।
6 मेरठ का बल्ला मेरठ के बल्लों का तो जवाब ही नहीं। 1983 में हुए क्रिकेट विश्व कप में मेरठ के बल्ले ने भारत को जीत दिलाकर इतिहास बनाया था। भारतीयों को भले ही बल्ला चलाना अंग्रेजों ने सिखाया हो लेकिन मेरठ ने इस बल्ले में काफी बदलाव किए। 1931 में सियालकोट में प्रारंभ हुई मशहूर कंपनी एसजी ने 1950 में मेरठ में कारोबार शुरू किया था । 1947 में जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो कई कारीगर परिवार मेरठ के रिफ्यूजी कैंपों में आकर बस गए थे। बाद में यहां इन्हें काम करने की इजाजत मिली और इन्ही के हुनर ने मेरठ काे खेल के सामान बनाने वाली फैक्ट्री बना दिया । 80 के दशक में बीसीसीआई ने मेरठ को मान्यता दे दी और इसके बाद से मेरठ के बल्ले अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शामिल होने लगे। यहां का सिर्फ बल्ला ही नहीं बल्कि गेंद भी मशहूर है।
7 बलिया की बिंदी उत्तर प्रदेश के जिले बलिया की बिंदी पूरे भारत में जानी जाती है। इस जिले में बिंदी एक कुटीर उद्योग हैं। इस उद्योग में सैकड़ों परिवार शामिल हैं। यहां घर-घर में महिलाएं बिंदी बनाती हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्हें 1 दिन की मजदूरी काफी मिलती है। बावजूद इसके यहां की महिलाएं बड़े मन से अपने काम को करती हैं और यही कारण है कि बलिया की बिंदी पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखती है। 1950 में यहां बिंदी उद्योग की शुरुआत हुई थी। मायानगरी मुम्बई में भी बलिया की बिंदी की बड़ी डिमांड है।
8 कन्नौज का इत्र कन्नौज को इत्र की नगरी भी कहा जाता है और कन्नौज अपनी खुशबू के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां इत्र की छोटी बड़ी 200 से अधिक इकाइयां मौजूद हैं। हैरान कर देने वाली बात यह है कि यहां पर मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। दुनिया का सबसे महंगा इत्र भी कन्नौज में ही बनता है। अच्छी बात यह है कि कन्नौज में बनने वाले इत्र में एल्कोहल का प्रयोग भी नहीं किया जाता। यहां सबसे महंगे वाले इत्र की 1 ग्राम की कीमत लगभग 5000 रुपये है। कन्नौज से यूके, यूएस, सऊदी अरेबिया ओमान, इराक और ईरान समेत कई देशों में इत्र का निर्यात किया जाता है।
9 हमीरपुर के जूते उत्तर प्रदेश के जिले हमीरपुर के जूते पूरे भारत में अपनी अलग पहचान रखते हैं। खास बात यह है कि यहां पर जूतों को हाथ से बनाया जाता है। उच्च गुणवत्ता वाले यह जूते उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी पसंद किए जाते हैं। दशकों से यह उद्योग हमीरपुर को अलग पहचान दिलाए हुए है। हमीरपुर जनपद यमुना और बेतवा नदी के संगम पर स्थित है।
10 सीतापुर की दरी सीतापुर की हस्त निर्मित दरियां भारत ही नहीं दुनियाभर में जानी जाती हैं। एक अनुमान के अनुसार 1930 में यहां दरी बनाए जाने का काम शुरू किया गया था । शुरुआती क्षणों में फेरी लगाकर आसपास के जिलों और कस्बों में दरी बेचने का काम शुरू हुआ। बाद में यह कला इतनी प्रसिद्ध हुई कि विदेशों में भी लोग इस कला के मुरीद हाे गए। आज कई देशों में सीतापुर से दरियों का निर्यात किया जाता है।
11 शामली के रिम व धुरे आपने गाड़ियों में चम-चमाते हुए अलॉय व्हील तो देखे होंगे लेकिन उत्तर प्रदेश के जिले शामली के रिम और धुरों का कोई विकल्प आज भी नहीं है। शामली जिले में रिम और धुरी बनाए जाने की करीब 25 यूनिट हैं। यहां के रिम भारत ही नहीं अमेरिका फ्रांस और इंग्लैंड तक निर्यात किए जाते हैं। ट्रैक्टर बनाने वाली मशहूर कंपनी एस्कॉर्ट, सोनालिका, मेस्सी फर्गुसन, एलएनटी भी यहां से रिंम मंगाती हैं। इस उद्योग का करीब 50 करोड़ तक का टर्नओवर है।
12 बांदा का शजर पत्थर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक खास किस्म का पत्थर पाया जाता है जिसे ”शजर” पत्थर कहते हैं। इस पत्थर की खास बात यह है कि यह खुद अपनी चित्रकारी करते हैं। इस पत्थर की खास बात यह भी है कि प्रत्येक ”शजर” पत्थर अपने में अलग होता है और एक जैसे दो शजर पत्थर नहीं होते। इतिहास के जानकार बताते हैं कि इंग्लैंड की महारानी क्वीन विक्टोरिया को यह पत्थर इतना पसंद आया था कि इस पत्थर को वह अपने साथ ब्रिटेन ले गई थी। यह शजर पत्थर बांदा की केन नदी की तलहटी में पाया जाता है। इस पत्थर का प्रयोग डेकोरेशन के लिए किया जाता है।
13 लखनऊ की चिकनकारी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की चिकनकारी एक प्रसिद्ध कढ़ाई और कशीद की शैली है। लखनवी जरदोजी यहां का प्रमुख लघु उद्योग है। यहां पर कपड़ों के ऊपर गजब की कढ़ाई की जाती है। इसे ही लखनवी चिकन की कढ़ाई भी कहा जाता है। लखनऊ की इस चिकनकारी को देश ही नहीं विदेशों में भी खासा पसंद किया जाता है। चिकनकारी का यह दौर मुगल काल से शुरू हुआ था जो आज तक जारी है और लंदन के रॉयल अल्बर्ट म्यूजियम में भी लखनवी चिकनकारी के नमूने देखे जा सकते हैं।
14 सहारनपुर का काष्ठ कला उद्योग उत्तर प्रदेश के अंतिम जिले सहारनपुर को काष्ठ नगरी भी कहा जाता है। यहां के कारीगर लकड़ी के बेजान टुकड़ों में अपने हुनर से जान भर देते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में सहारनपुर की काष्ठ कला को पहचाना जाता है। एक अनुमान के अनुसार सहारनपुर के काष्ठ कला उद्योग का टर्नओवर 2000 करोड रुपए तक है और यहां की नक्काशी दुनिया भर के देशों में जानी जाती है।
15 मथुरा के पेड़े खाने पीने की बात हो तो मथुरा के पेड़े की याद जरूर आती है। मथुरा के पेड़े अपने स्वाद के बल पूर भारतवर्ष में अपनी अलग पहचान रखते हैं। खास बात यह है कि यहां बनाए गए पेड़े पौराणिक तरीके से बनाए जाते हैं इनमें कोई केमिकल नहीं होता जिस कारण यह पेड़े स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होते।
16 आगरा का पेठा मथुरा के पेड़े की तरह ही आगरा का पेठा भी है और आगरा के पेठे का स्वाद आपको पूरे भारत में कहीं दूसरी जगह नहीं मिलेगा। आगरा ने पेठे को अलग पहचान दिलाई है। इस मिठाई को अलग-अलग तरह से बनाने के तरीके भी आगरा ने ही देशभर के कारीगरों को दिए हैं। यहां का केसर पेठा, अंगूरी पेठा, सूखा पेठा, लाल पेठा, चॉकलेट पेठा और पेठा कतली काफी मशहूर है और इनकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है
17 फिरोजाबाद की चूड़ियां ” गोरी है कलाइयां तू लादे मुझे हरी-हरी चूड़ियां” हिंदी फिल्म का यह मशहूर गीत तो आपने सुना ही होगा। आज हम आपको बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के जिले फिरोजाबाद की चूड़ियां इसी गीत की तरह पूरे देश में मशहूर हैं। यहां कांच का बड़ा काम है। इस जिले में ग्लास यानी कांच की करीब छोटी-बड़ी करीब 400 फैक्ट्रियां हैं। यहां का कांच अपनी अलग पहचान रखता है और यहां से चूड़ियों के अलावा मोमबत्ती स्टैंड चश्मे फूलों के गुलदस्ते और सजावटी रोशनी गमलों समेत कई प्रकार के कांच के सामान बनते हैं। फिरोजाबाद का कांच का उद्योग लगातार बढ़ रहा है। 1980 के दशक तक यहां कांच की चूड़ियां बनाई जाती थी लेकिन 90 के दशक में इस उद्योग ने अपने पैर पसार लिए और कांच के अन्य सामान भी बनने लगे।
18 अलीगढ़ का ताला उत्तर प्रदेश के जिले अलीगढ़ को ताला नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां ताला बनाने के छोटे-बड़े करीब 2000 कारखाने हैं। करीब 10,000 से अधिक लोग इन कारखानों से जुड़े हैं। अलीगढ़ में अलग-अलग तरह के ताले बनाए जाते हैं और यहां के तालों की मांग दुनिया भर के कई देशों में है।
19 Banaras बनारस की साड़ियां उत्तर प्रदेश के बनारस की साड़ियां अपनी सुंदरता के लिए दुनिया भर में जानी जाती हैं। बनारस की अर्थव्यवस्था का मुख्य उत्पाद भी यहां की बनारसी साड़ी ही हैं। बनारस में रेशम की साड़ियों पर बुनाई के साथ जरी के डिजाइन मिलाकर सुंदर रेशमी साड़ी को तैयार किया जाता है। इन्हें बनारसी साड़ी भी कहा जाता है। दशकों से बनारस में यह हुनर चलता आ रहा है। यह उद्योग इतना फेमस है कि यहां की साड़ियों का नाम ही बनारसी साड़ियां पड़ गया।
20 रामपुर का रामपुरी चाकू उत्तर प्रदेश के जिले रामपुर का चाकू फिल्मी दुनिया में भी अपनी अलग पहचान रखता है। यह अल बात है कि इन दिनों यह उद्योग चुनौतियों से जूझ रहा है लेकिन कहा जाता है कि रामपुरी चाकू जैसा चाकू कहीं दूसरी जगह नहीं बनता। यही कारण है कि रामपुरी चाकू की पूरे देश में डिमांड है। फिल्मी पर्दे से रामपुरी चाकू लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गया था।