खलीलाबाद की शुगर मिल जिसकी नींव 1939 में रखी गई थी। आजादी के पूर्व में खलीलाबाद जिला मुख्यालय पर जब शुगर मिल की स्थापना हुई तो मानो इस ज़िले को रोजगार और गन्ना किसानों को एक सपना सजोने का सुनहरा मौका मिल गया हो और ये शुगर मिल गुलज़ार हुई वैसे खलीलाबाद की ये बंद हो चुकी चीनी मिल बलरामपुर चीनी मिल की ही यूनिट थी जिसने 1939 से लेकर 2015 तक कई उतार चढ़ाव देखे और मिल लगभग 76 साल के एक लम्बे समय तक जहां ज़िले की पहचान रही तो वहीँ दूसरी तरफ गन्ना किसानों के लिए खलीलाबाद की शुगर मिल एक वरदान रही जिसमें हर वर्ष हजारों मैट्रिक टन गन्ने की पेराई हुआ करती करती थी और ये 76 सालों तक गुलज़ार रही कभी अपने काम को लेकर तो कभी गन्ना किसानो के द्वारा किसी मांग पर धरना प्रदर्शन को लेकर।
लेकिन इस बार किसानों का दर्द नातो मिल मालिकों ने सुना और ना ही किसी सरकार ने जिसके चलते आज ज़िले की पहचान और गन्ना किसानों का अरमान एकमात्र चीनी खलीलाबाद की शुगर मिल हमेशा के लिए बन्द हो चुकी है और हमेशा के लिए बंद हो चुकी इस चीनी मिल में दफ़न हो चुका है किसानों का अरमान और हर एक सपना।
मिल मैनेजमेंट की माने तो मिल प्रबंधन खलीलांबाद की इस यूनिट ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं और मिल चलती कम थी और बंद ज़्यादा रहती थी इस मिल को बंद करने के पीछे न तो श्रमिकों को कोई समस्या थी और नाही गन्ने की लेकिन मिल को बंद करने के पीछे जो सबसे बड़ी समस्या थी वह की लगातार तीन सालों से खलीलाबाद की ये यूनिट घाटे में चल रही है थी और मिल लगभग 46 करोड़ रुपये के घाटे में चली गई थी जिसको लेकर मजबूरन मिल प्रबंधन ने इसे हमेशा के लिए बंद करने का निर्णय लिया और मिल का लाइसेंस सरकार के सामने सरेंडर कर दिया और यह मिल हमेशा के लिए बंद होचुकी है। वहीँ किसानो का दर्द भी सुनने वाला कोई नहीं है, जिन्होंने चालू शुगर के सहारे इस बार भी गन्ना बोया था लेकिन अफ़सोस किसानो का गन्ना खेतों में तैयार खड़ा है और उधर चीनी मिल हमेशा के लिए बंद हो गई।
वहीं स्थानीय समाज सेवियों की माने तो खलीलाबाद चीनी मिल से जहां ज़िले की पहचान थी तो वहीं इस शुगर मिल से लोगों को रोजगार का अवसर मिलता था और गन्ना किसानों को बहुत बड़ी सौगात। लेकिन मिल के बन्द होने से रोजगार पर असर पड़ रहा है और गन्ना किसानों को ज़्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा क्यूंकि भले ही मिल मालिक ज़िले के किसानों का गन्ना बभनान शुगर मिल ले जाने की बात कर रही है लेकिन खलीलाबाद से बभनान ले जाने में ट्रांसपोर्ट भाड़ा बढ़ जायेगा जो किसानों की और कमर तोड़ देगी। ज़िले के कई बुद्धिजीवी वर्ग के लोग यह चाहते हैं कि सरकार को इस पर कुछ सोचना चाहिए और इस मुद्दे पर कोई ज़रूरी पहल करनी चाहिए, जिससे खलीलाबाद की शुगर मिल को दोबारा अस्तित्व में लाया जा सके।