15 किलो राशन के लिए 27 साल के विकलांग बेटे को खटोले में लेकर कलेक्टे्रट आया पिता
सतनाPublished: Jun 28, 2016 07:32:00 am
आर्थिक सहायता मिली नहीं, राशन खा गया कोटेदार
सतना। कलेक्ट्रेट में दोपहर उस वक्त लोग हैरत में पड़ गये जब एक पिता अपने विकलांग 27 साल के बेटे को गोद में उठाकर पहले सीढिय़ों से ऊपर पहुंचाया और बाद में उसके लिये विशेष तौर पर बनवाई गई खटोला गाड़ी लेकर दोबारा ऊपर आया। उसी खटोला गाड़ी में उसे लिटा कर कलेक्टर से मिलने इंतजार करता रहा। पूछने पर बताया कि जन्म से विकलांग इस 27 वर्षीय बेटे का खाद्यान्न तक राशन दुकानदार नहीं दे रहा। कोई विकलांग सहायता नहीं मिल रही। ऐसे में कलेक्टर से आर्थिक मदद मांगने आए हैं।
संवेदनहीनता की हद पार करती यह कहानी है सिहावल विकासखंड के बरा खुर्द निवासी मोतीलाल कुशवाहा की। जिनपर जैसे आफतों का पहाड़ टूट पड़ा है। बेटा दीनदयाल जब एक साल का था तभी पोलियो का अटैक पड़ा और वह सदा के लिए विकलांग हो गया। अब वह 27 साल का हो गया है लेकिन हाथ पांव काम नहीं करते। कमर भी पूरी तरह से लकवाग्रस्त है।
एेसे में इस 27 साल के नौजवान को या तो गोद में लेना पड़ता है या फिर बच्चों के लिए बनाए जाने वाले खटोले पर लिटाना पड़ता है। उसे किसी तरह की सरकारी मदद तो नहीं मिली पर राशनकार्ड में विकलांग लिखा होने से 15 किलोग्राम मुफ्त अनाज मिलता था। अब उसे भी कोटेदार खा जाता है। यह आरोप लगाते हुए मोतीलाल बताते हैं कि कई माह से राशन नहीं मिला है। कोटेदार से बात करने पर वह टका सा जवाब दे देता है कि अब उसका राशन बंद हो चुका है। उन्होंने पीड़ा सुनाते हुए बताया कि उसके हिस्से का राशन बेच दिया जाता है। किसी तरह की पेंशन का लाभ भी नहीं मिल रहा है। ऐसे में अब गुजारा करना मुश्किल हो रहा है।
कलेक्टर ने दिये निर्देश
अपनी बारी आने पर जब मोतीलाल गाड़ी में अपने बेटे को लेकर कलेक्टर के सामने पहुंचा तो खुद वे समस्या सुन कर हैरत में रह गये। उन्होंने आनन फानन में जिम्मेदार अधिकारियों को तलब किया और बहुविकलांग पेंशन योजना का लाभ संबंधित को तत्काल प्रभाव से स्वीकृत करने के निर्देश दिये। नियमानुसार जो सहायता दी जा सकती है उसका परीक्षण करने को कहा।
अब गाड़ी ही जिंदगी
27 साल की उम्र में महज दो फीट का दीनदयाल परिवार के लिये बोझ नहीं है। परिवार की पीड़ा यह है कि उसकी जिंदगी अब चार पहिये की गाड़ी तक सिमट गई है। चल फिर पाने में अक्षम दीनदयाल का यही दर्द परिवार को कचोटता है। उसके पिता के मुताबिक यही चिंता सताती है कि उनके बाद इसकी देखभाल कौन करेगा। उन्होंने कलेक्ट्रेट में अपना एक दर्द और बयां किया कि यहां दूसरी मंजिल पर विकलांग बच्चे को लाना बहुत बड़ी समस्या है।