जिले में शिशु मृत्यु दर को कम करने अनेक योजनाएं और अभियान चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, एसएनसीयू, पीएचसी-सीएचसी में एनबीएसयू इकाइयां स्थापित की गयी हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा जिले की इकाई के लिए हर साल करोड़ों रुपए की राशि प्रदान की जाती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए भी ४५ करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गयी है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार साल २०१६ में सतना जिले में नवजात और ५ साल से कम उम्र के ५५१ बच्चों की मौत हुई थी। तो साल २०१७ में जनवरी से अगस्त माह के बीच अब तक ३२४ मासूम दम तोड़ चुके हैं। प्राय: हर साल जून से लेकर अगस्त माह के बीच बच्चों की मौतों का आंकड़ा बढ़ जाता है लेकिन सरकार और स्वास्थ्य महकमे ने इससे कोई सबक नहीं लिया।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बच्चों को चिकित्सा उपलब्ध कराने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इसके लिए ८ सेक्टर बनाए गए हैं। सभी सेक्टर में दो चिकित्सक सहित स्टाफ की तैनाती की गई है। इन्हें शिक्षण संस्थानों के अलावा मैदानी अमले की सूचना पर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी प्रकार गर्भवती का प्रथम त्रेमास में मैदानी अमले द्वारा पंजीयन करना अनिवार्य है।
महिला की प्रसव पूर्व चार जांच कराई जानी है, हाईरिस्क प्रेग्नेंसी होने पोर्टल पर जानकारी दर्ज करना है। संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित कर चिकित्सा मुहैया कराना है। मैदानी अमले के काम का ब्लॉक स्तर पर बीसीएम, बीपीएम को निगरानी करना है। बच्चो को इलाज मिन रहा है न गर्भवती का चिन्हांकन किया जा रहा है। मैदानी अमले के साथ निगरानी में भी लापरवाही की जा रही है। इस वजह से मौत का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
– सवाल: तीन माह में डेढ़ सौ से अधिक बच्चों की मौत हुई?
– जवाब: ज्यादातर मौत एसएनसीयू में हुई है, जो कम दिन में पैदा हुए।
– सवाल: शिशु रोग वार्ड में मासूम चार घंटे तड़पता रहा और मौत हो गई?
– जवाब: मामले की कोई जानकारी नहीं है। जांच कराएंगे।
– सवाल: शिशु मृत्युदर हर माह घटने की बजाए बढ़ रही है?
– जवाब: बीते वर्ष की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है।
– सवाल: अभी तीन माह में बड़ी संख्या में मौत की वजह?
– जवाब- समीक्षा करेंगे, कमी है तो सुधार किया जाएगा।