सतना

MP में 3 माह के अंदर 187 बच्चों की मौत, शिशु मृत्यु दर कम करने की कोशिशें नाकाम

इनमें नवजात से लेकर ५ साल की उम्र से कम के बच्चे शामिल हैं। मौतों का यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में कहीं अधिक है।

सतनाSep 18, 2017 / 11:38 am

Vikrant Dubey

187 children die in 3 months of Satna madhya pradesh

विक्रांत दुबे @ सतना। शिशु मृत्यु दर कम करने की तमाम कोशिशों के बीच पिछले तीन माह में १८७ बच्चों की मौत हो गई। इनमें नवजात से लेकर ५ साल की उम्र से कम के बच्चे शामिल हैं। मौतों का यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में कहीं अधिक है। हैरानी की बात तो यह है कि इतनी बड़ी संख्या में शिशुओं की जान जाने के बाद भी डेथ ऑडिट नहीं हो रही है। जिससे मौतों का वास्तविक कारण साफ नहीं हो पा रहा है।
सतना जिले के लिए सबसे त्रासदायी अगस्त का महीना रहा। इस एक माह में ७३ बच्चों की मौत हुई। जून का महीना भी भारी पड़ा और ६७ बच्चों ने दम तोड़ा, जबकि जुलाई में ४७ बच्चों की मौत हुई। इस तरह की भयावह स्थितियों से निपटने के लिए न्यू बोर्न बेबी स्पेशल केयर यूनिट बनाए गए हैं। लेकिन पूर्ववर्ती मामलों का अध्ययन नहीं किए जाने और गंभीर रुप से बीमार बच्चों को देरी से अस्पताल पहुंचाने के कारण आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। इससे अस्पतालों की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल भी खुल रही है।
सभी कवायदें नाकाम
जिले में शिशु मृत्यु दर को कम करने अनेक योजनाएं और अभियान चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, एसएनसीयू, पीएचसी-सीएचसी में एनबीएसयू इकाइयां स्थापित की गयी हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा जिले की इकाई के लिए हर साल करोड़ों रुपए की राशि प्रदान की जाती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए भी ४५ करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गयी है।
पिछले साल ५५१ मौत
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार साल २०१६ में सतना जिले में नवजात और ५ साल से कम उम्र के ५५१ बच्चों की मौत हुई थी। तो साल २०१७ में जनवरी से अगस्त माह के बीच अब तक ३२४ मासूम दम तोड़ चुके हैं। प्राय: हर साल जून से लेकर अगस्त माह के बीच बच्चों की मौतों का आंकड़ा बढ़ जाता है लेकिन सरकार और स्वास्थ्य महकमे ने इससे कोई सबक नहीं लिया।
निगरानी में लापरवाही
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बच्चों को चिकित्सा उपलब्ध कराने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इसके लिए ८ सेक्टर बनाए गए हैं। सभी सेक्टर में दो चिकित्सक सहित स्टाफ की तैनाती की गई है। इन्हें शिक्षण संस्थानों के अलावा मैदानी अमले की सूचना पर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी प्रकार गर्भवती का प्रथम त्रेमास में मैदानी अमले द्वारा पंजीयन करना अनिवार्य है।
हाईरिस्क प्रेग्नेंसी होने पोर्टल पर जानकारी दर्ज
महिला की प्रसव पूर्व चार जांच कराई जानी है, हाईरिस्क प्रेग्नेंसी होने पोर्टल पर जानकारी दर्ज करना है। संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित कर चिकित्सा मुहैया कराना है। मैदानी अमले के काम का ब्लॉक स्तर पर बीसीएम, बीपीएम को निगरानी करना है। बच्चो को इलाज मिन रहा है न गर्भवती का चिन्हांकन किया जा रहा है। मैदानी अमले के साथ निगरानी में भी लापरवाही की जा रही है। इस वजह से मौत का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
सीधी बात- डॉ. डीएन गौतम, सीएमएचओ
– सवाल: तीन माह में डेढ़ सौ से अधिक बच्चों की मौत हुई?
– जवाब: ज्यादातर मौत एसएनसीयू में हुई है, जो कम दिन में पैदा हुए।
– सवाल: शिशु रोग वार्ड में मासूम चार घंटे तड़पता रहा और मौत हो गई?
– जवाब: मामले की कोई जानकारी नहीं है। जांच कराएंगे।
– सवाल: शिशु मृत्युदर हर माह घटने की बजाए बढ़ रही है?
– जवाब: बीते वर्ष की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है।
– सवाल: अभी तीन माह में बड़ी संख्या में मौत की वजह?
– जवाब- समीक्षा करेंगे, कमी है तो सुधार किया जाएगा।
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