1993 के चुनाव से पहले टिकट की जोड़-तोड़ के साक्षी रहे कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक, दिल्ली में विंध्य के क्षत्रप और अत्यंत प्रभावशाली कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह सतना सीट के लिए डॉ. लालता प्रसाद खरे की टिकट के लिए प्रयासरत थे। खरे के समर्थन में कांग्रेस के दर्जनभर नेता उनके साथ अर्जुन सिंह से गुजारिश कर रहे थे। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव खरे के नाम पर सहमत नहीं थे।
चित्रकूट विस क्षेत्र से शर्मा तीन बार मतदाताओं द्वारा नकारे जा चुके हैं। पहली बार 1977 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दी थी। पर, हार गए। दोबारा 1993 में जमानत गवां बैठे। तीसरी बार 1998 में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रेम सिंह के खिलाफ ही निर्दलीय भाग्य आजमाया पर सफल नहीं हुए। लगभग 3 हजार वोटों में सिमट गए। शर्मा 1977 में रामानंद, 1993 में गणेश बारी और 1998 में प्रेम सिंह से पराजित हुए।
विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक संरचना और घने जंगलों के कारण बागियों का गढ़ रहा है। चुनाव में ददुआ का फरमान काटने का मतलब हार और हत्या दोनों हो सकती थी। 1993 में भी डकैतों ने गांव-गांव फरमान जारी किया। मतदान प्रभावित करने की कोशिश हुई। चुनाव के प्रत्याशियों तक रकम के संदेश पहुंचाए गए। वोटों के की मदद के बदले रंगदारी मांगी गई।