script1993 के विधानसभा चुनाव में जमानत भी नहीं बचा सकी थी कांग्रेस, एक नजर में जानिए चित्रकूट का गुणा-गणित | 1993 in Chitrakoot assembly Election Of Congress Bail forfeited | Patrika News

1993 के विधानसभा चुनाव में जमानत भी नहीं बचा सकी थी कांग्रेस, एक नजर में जानिए चित्रकूट का गुणा-गणित

locationसतनाPublished: Oct 27, 2017 12:15:27 pm

Submitted by:

suresh mishra

प्रत्याशी केपी शर्मा चौथे नंबर पर रहे, 17 प्रत्याशियों को हराकर विधायक बने थे बारी

Chitrakoot assembly by-election latest news in madhya pradesh

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सतना। चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र को परंपरागत सीट बताने वाली कांग्रेस का दावा पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता। हालांकि, मतदाताओं ने कांग्रेस को दूसरे दलों की अपेक्षा अधिक मौके दिए हैं। दोबार रामचंद्र बाजपेई और तीन बार प्रेमसिंह प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन, इसी विस क्षेत्र ने जनता दल, भाजपा और बसपा को भी विधायक चुना।
सन 1993 के चुनाव में पार्टी ने शीर्ष स्तर पर कशमकश के बाद प्रेम सिंह की टिकट काट कर वरिष्ठ अधिवक्ता कृष्णप्रकाश शर्मा (केपी शर्मा) को टिकट दी। लेकिन, शर्मा जमानत भी नहीं बचा पाए। 17 प्रत्याशियों की सूची में चौथे नंबर पर रहे। उन्हें केवल 11,752 वोट मिले। गणेश बारी बसपा की टिकट पर निर्वाचित हुए। दूसरे पर जनता दल के रामानंद सिंह को 13,488 और तीसरे में भाजपा प्रत्याशी रामदास मिश्रा रहे। जिन्हें 13,480 वोट मिले।
टिकट की कहानी
1993 के चुनाव से पहले टिकट की जोड़-तोड़ के साक्षी रहे कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक, दिल्ली में विंध्य के क्षत्रप और अत्यंत प्रभावशाली कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह सतना सीट के लिए डॉ. लालता प्रसाद खरे की टिकट के लिए प्रयासरत थे। खरे के समर्थन में कांग्रेस के दर्जनभर नेता उनके साथ अर्जुन सिंह से गुजारिश कर रहे थे। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव खरे के नाम पर सहमत नहीं थे।
अर्जुन सिंह का आखिरी प्रयास भी खाली

वो तब हिमाचल के राज्यपाल बैरिस्टर गुलशेर अहमद के पुत्र सईद अहमद को टिकट देने पर अड़े थे। अर्जुन सिंह का आखिरी प्रयास भी खाली जाने पर मायूस खरे और उनके समर्थकों ने चित्रकूट सीट के लिए केपी शर्मा के नाम की सिफारिश की जिसे मान लिया गया। और, प्रेम सिंह का नाम लगभग तय हो जाने के बाद काट कर टिकट शर्मा को दे दी गई।
शर्मा तीन बार हारे
चित्रकूट विस क्षेत्र से शर्मा तीन बार मतदाताओं द्वारा नकारे जा चुके हैं। पहली बार 1977 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दी थी। पर, हार गए। दोबारा 1993 में जमानत गवां बैठे। तीसरी बार 1998 में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रेम सिंह के खिलाफ ही निर्दलीय भाग्य आजमाया पर सफल नहीं हुए। लगभग 3 हजार वोटों में सिमट गए। शर्मा 1977 में रामानंद, 1993 में गणेश बारी और 1998 में प्रेम सिंह से पराजित हुए।
डकैतों की धमक
विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक संरचना और घने जंगलों के कारण बागियों का गढ़ रहा है। चुनाव में ददुआ का फरमान काटने का मतलब हार और हत्या दोनों हो सकती थी। 1993 में भी डकैतों ने गांव-गांव फरमान जारी किया। मतदान प्रभावित करने की कोशिश हुई। चुनाव के प्रत्याशियों तक रकम के संदेश पहुंचाए गए। वोटों के की मदद के बदले रंगदारी मांगी गई।
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