तालाब की कभी सफाई नहीं होती
दरअसल बारिश से पहले पानी भराव की स्थिति को देखते हुए तालाब की सफ ई की जाती है, मगर इस बार सफ ई नहीं हुई है जिसके कारण जगतदेव तालाब के चारो ओर खरपतवार और गंदगी भरी पड़ी है। न तो खरपतवार उखाड़े गए हैं और न ही किनारे मजबूत किए गए हैं। यहां पर शिव मंदिर के बाजू में बड़े स्तर पर बेशरम खरपतवार जमी हुई है और सड़ चुकी है, मगर उसे हटाया नहीं जा रही है। इसी तरह हरी घास भी मंदिर के बाजू में लगी हुई है और पानी भरा हुआ है। जिससे पानी दूषित हो रहा है।
दरअसल बारिश से पहले पानी भराव की स्थिति को देखते हुए तालाब की सफ ई की जाती है, मगर इस बार सफ ई नहीं हुई है जिसके कारण जगतदेव तालाब के चारो ओर खरपतवार और गंदगी भरी पड़ी है। न तो खरपतवार उखाड़े गए हैं और न ही किनारे मजबूत किए गए हैं। यहां पर शिव मंदिर के बाजू में बड़े स्तर पर बेशरम खरपतवार जमी हुई है और सड़ चुकी है, मगर उसे हटाया नहीं जा रही है। इसी तरह हरी घास भी मंदिर के बाजू में लगी हुई है और पानी भरा हुआ है। जिससे पानी दूषित हो रहा है।
तालाब के आसपास अतिक्रमण
जगतदेव तालाब एवं नारायण तालाब के आसपास लोगों ने अतिक्रमण कर घर बना लिए हैं, वहीं अस्तित्वविहिन व गंदगी की मार से कराह रहे जगतदेव तालाब तट पर स्वर्गिक पितरों का तर्पण करना तो दूर वहां खड़े होना भी मुश्किल है, ऐसे में पितृपक्ष में पितरों को तर्पण करने में लोगों को काफ संकट होगा। शहरीकरण और बढ़ती आबादी की मांग के बीच जगतदेव तालाब के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है।
जगतदेव तालाब एवं नारायण तालाब के आसपास लोगों ने अतिक्रमण कर घर बना लिए हैं, वहीं अस्तित्वविहिन व गंदगी की मार से कराह रहे जगतदेव तालाब तट पर स्वर्गिक पितरों का तर्पण करना तो दूर वहां खड़े होना भी मुश्किल है, ऐसे में पितृपक्ष में पितरों को तर्पण करने में लोगों को काफ संकट होगा। शहरीकरण और बढ़ती आबादी की मांग के बीच जगतदेव तालाब के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है।
क्या है विधान
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, बहते जल स्रोतों, नदी में पितृ तर्पण का विधान है। ऐसा माना जाता है कि बहते जल स्रोतों का जुड़ाव गंगोत्री से होता है। सभी बाधाओं को पार करते हुए अविरल बहती नदियां महासमुद्र में मिल जाती हैं। पं. रामबहोर तिवारी कहते हैं कि महासमुद्र में मिलने का अर्थ महामोक्ष की प्राप्ति है। इन्हीं कुछ मान्यताओं के कारण हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार व स्वर्गिक पितरों के तर्पण का विधान नदी तट पर बनाया गया है। पूजा व धार्मिक सारे अनुष्ठान बिना नदियों के संभव नहीं हैं। अभी समय चल रहा है पितृ पक्ष का ऐसे समय में तर्पण के लिए नदियों की महत्ता और भी बढ़ गई है।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, बहते जल स्रोतों, नदी में पितृ तर्पण का विधान है। ऐसा माना जाता है कि बहते जल स्रोतों का जुड़ाव गंगोत्री से होता है। सभी बाधाओं को पार करते हुए अविरल बहती नदियां महासमुद्र में मिल जाती हैं। पं. रामबहोर तिवारी कहते हैं कि महासमुद्र में मिलने का अर्थ महामोक्ष की प्राप्ति है। इन्हीं कुछ मान्यताओं के कारण हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार व स्वर्गिक पितरों के तर्पण का विधान नदी तट पर बनाया गया है। पूजा व धार्मिक सारे अनुष्ठान बिना नदियों के संभव नहीं हैं। अभी समय चल रहा है पितृ पक्ष का ऐसे समय में तर्पण के लिए नदियों की महत्ता और भी बढ़ गई है।