प्राथमिक स्कूल में भी आंगनबाड़ी
महिला बाल विकास महकमे के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले के 8 ब्लॉकों व 10 तहसीलों में कुल 3034 आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या है। इनमें से 2427 में शौचालय हैं। 581 में शौचालय नहीं बने हैं। 1712 के भवन बने हैं। 1215 केंद्र किराए के मकानों में चल रहे हैं। 306 आंगनबाड़ी केंद्र प्राथमिक विद्यालयों से संचालित किए जा रहे हैं।
महिला बाल विकास महकमे के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले के 8 ब्लॉकों व 10 तहसीलों में कुल 3034 आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या है। इनमें से 2427 में शौचालय हैं। 581 में शौचालय नहीं बने हैं। 1712 के भवन बने हैं। 1215 केंद्र किराए के मकानों में चल रहे हैं। 306 आंगनबाड़ी केंद्र प्राथमिक विद्यालयों से संचालित किए जा रहे हैं।
ये हैं नियम
महिला बाल विकास महकमे के नियमानुसार 600 से 800 की आबादी वाले क्षेत्र में एक आंगनबाड़ी केंद्र होना चाहिए। वहां पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व एक सहायिका नियुक्त करने का प्रावधान है। 400 से 500 की आबादी पर मिनी आंगनबाड़ी केंद्र खोलने की व्यवस्था है। उपकेंद्रों पर एक सहायिका तैनात की जाती है। आबादी के हिसाब से यहां न तो आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए और न ही मिनी केंद्र।
महिला बाल विकास महकमे के नियमानुसार 600 से 800 की आबादी वाले क्षेत्र में एक आंगनबाड़ी केंद्र होना चाहिए। वहां पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व एक सहायिका नियुक्त करने का प्रावधान है। 400 से 500 की आबादी पर मिनी आंगनबाड़ी केंद्र खोलने की व्यवस्था है। उपकेंद्रों पर एक सहायिका तैनात की जाती है। आबादी के हिसाब से यहां न तो आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए और न ही मिनी केंद्र।
दावों की खुल रही पोल
देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है। गांवों को खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनाने का दावा किया जा रहा है। पंचायतीराज, स्वास्थ्य विभाग, महिला बाल विकास के अधिकारी-कर्मचारी इस अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन जिले में पांच सैकड़ा से अधिक आगनबाड़ी केंद्रों के मासूम अभी भी खुले में शौच को मजबूर हैं। शौचालय के न होने से बच्चों व केंद्रों में कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी समस्या से दो-चार होना पड़ता है।
देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है। गांवों को खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनाने का दावा किया जा रहा है। पंचायतीराज, स्वास्थ्य विभाग, महिला बाल विकास के अधिकारी-कर्मचारी इस अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन जिले में पांच सैकड़ा से अधिक आगनबाड़ी केंद्रों के मासूम अभी भी खुले में शौच को मजबूर हैं। शौचालय के न होने से बच्चों व केंद्रों में कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी समस्या से दो-चार होना पड़ता है।
ग्रामीण अंचल के आंगनबाड़ी केंद्रों में टॉयलेट बनाने का प्रस्ताव जिला पंचायत महकमे को भेजा है। कुछ केंद्रों में काम भी संचालित है। प्रयास किया जा रहा कि शीघ्र सभी केंद्रों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध हो।
मनीष सेठ, जिला कार्यक्रम अधिकारी
मनीष सेठ, जिला कार्यक्रम अधिकारी