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ये है दुनिया का अजूबा स्कूल, जहां बच्चे दोनों हाथ से लिखते है अलग-अलग भाषा

locationसतनाPublished: Jul 30, 2019 05:08:16 pm

Submitted by:

suresh mishra

– सिंगरौली के बुधेला गांव में स्थित है वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल

9th wonder of the world found in singrauli madhya pradesh india

9th wonder of the world found in singrauli madhya pradesh india

सिंगरौली। हम आपको ऐसे हुनर से परिचित कराने जा रहे है जिसकी कल्पना आपने कभी नहीं की होगी। यह हुनर देख आप कह उठेंगे अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय। भले ही यह हुनर देश में चर्चा का विषय अभी नहीं बना बन पाया हो पर इसके कायल विदेशी जरूर हैं वे इसे विश्व का 9वां अजूबा (9th wonder of the world) कहते हैं। यहां बात हो रही है देश की ऊर्जाधानी (urja rajdhani) सिंगरौली (singrauli) मध्य प्रदेश (madhya pradesh) के छोटे से गांव बुधेला (Budhela) के वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल (Veena Vadini Public School) की।
सबसे अधिक हैरानी की बात तो यह हे कि एक दशक से भी पहले लायंस क्लब इंटरनेशनल (Lions Club International) के तत्कालीन चेयरमैन जेनिस रोज ने सिंगरौली भ्रमण के दौरान इस अदभुत दृश्य को देखा था तो देखते रह गए थे। उन्होंने इन बच्चों को दुनिया का नौंवा अजूबा (World’s ninth paranoid) बता दिया था। लेकिन यह बात दुनिया के फलक तक नहीं पहुंची। वर्तमान में विद्यालय में अध्ययनरत करीबे दो सौ बच्चे दोनों हाथ से एक साथ लिखने की कला में पारंगत हो चुके हैं। कम्प्यूटर के की बोर्ड से भी तेज रफ्तार से उनकी कलम चलती है। जिस कार्य को सामान्य बच्चे आधे घंटे में पूरा कर पाते उसे वह मिनटों में निपटा देते हैं।
कोयले के बीच में है मेधा का भंडार
दिमाग और नजरों से इतने मजबूत हैं कि दोनों हाथ से हिन्दी-अंग्रेजी या उर्दू-रोमन अर्थात दो भाषाओं में एक साथ लिखकर हैरत में डाल देते हैं। जबकि ऊर्जाधानी का यह गांव पहाड़ों से घिरा है। कोयले के अकूत भंडार के बाद भी इलाके का पिछड़ापन देखकर अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है। गरीबी से जकड़े इस इलाके में मेधा का यह भंडार आश्चर्य में डालने वाला है।स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक की पढ़ाई होती है। नन्हें हाथ देवनागरी लिपि, उर्दू, स्पेनिस, रोमन, अंग्रेजी सहित छह भाषाओं में लिखते हैं। दोनों हाथों से लिखने का कम्पटीशन होता है जिसमे ये बच्चे 11 घंटे में 24000 शब्द लिखने की क्षमता रखते हैं। 45 सेकंड में उर्दू में गिनती, 1 मिनट में रोमन में गिनती, 1 मिनट में देवनागरी लिपि में गिनती, 1 मिनट में देवनागरी लिपि में पहाड़ा और 1 मिनट में दो भाषाओं के 250 शब्दों का ट्रांसलेशन कर देते हैंं।
प्रतिभा में दिल्ली के स्कूलों को दे रहे मात
वीणा वादिनी स्कूल में आसपास से पोड़ी, बुधेला, पिपरा झांपी, नौगई, डिग्घी, बिहरा, राजा सर्रई आदि गांव के बच्चे यह कला सीख रहे हैं। संसाधनों के हिसाब से दिल्ली, लखनऊ सहित देश के किसी भी महानगर के पब्लिक स्कूल का यह विद्यालय मुकाबला चाहे भले नहीं कर पाए। पर यहां की प्रतिभा सभी को मात दे रही है। यहीं के छात्र रहे आशुतोष शर्मा ने सिंगरौली के उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नौवीं कक्षा पढ़ाई करते हुए गणित में 100 में से 99 अंक अर्जित किए, जो रिकार्ड है। आशुतोष की तरह ही बुधेला के इस विद्यालय में आठवीं तक पढ़ाई करने वाले दिलीप कुमार शर्मा और रीता शाह भी नाम रोशन कर रहे हैं। यहां से निकलने के बाद आगे की पढ़ाई में भी लोहा मनवाया और इस समय दिलीप और रीता दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। वे जब भी छुट्टियों में आते हैं तो विद्यालय आकर बच्चों को प्रेरित जरुर करते हैं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से मिली प्रेरणा
वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल सरकारी नहीं है। न ही सरकार से कभी कोई सहायता मिली है। इस विद्यायल की नींव एक सोच पर रखी गई है। बैढऩ शहर से करीब 20 किमी. दूर स्थित बुधेला गांव के निवासी वीरंगद शर्मा, जो जबलपुर में आर्मी की ट्रेनिंग कर रहे थे। बताते हैं, एक दिन रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक में उन्होंने पढ़ा। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दोनों हाथ से लिखते थे। ऐसा कैसे हो सकता है इस जिज्ञासा ने विद्यालय की नींव रखने की प्रेरणा दी। खुद प्रयास किया लेकिन अधिक सफल नहीं हुए तो बच्चों पर प्रयोग आजमाया जो सीखने में अव्वल निकले। अब सभी छात्रों की दोनों हाथ से एक साथ लिखने की कला विशेषज्ञता बन गई है।
32000 शब्द लिखने की क्षमता
वीरंगद को विद्यालय के संचालन के दौरान पता चला कि नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र औसतन प्रतिदिन 32000 शब्द लिखने की क्षमता रखते थे। इस पर पहले भरोसा करना कठिन था लेकिन इतिहास को खंगाला तो कई जगह इसका उल्लेख मिला। इसी से सीख लेकर बच्चों की लेखन क्षमता बढ़ाने का प्रयास शुरु किया और अब आलम यह है कि 11 घंटे में बच्चे 24 हजार शब्द लिख डालते हैं। वीरगंद शर्मा ने देश के पुराने इतिहास को वर्तमान में सार्थक करने की ठान ली है। जो पूरा होता नजर आ रहा है। अजीबोगरीब चीजों के बारे में पता चलते ही जिज्ञासा बढ़ती गई और वीरंगद ने आखिरकार आर्मी की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद बैढऩ से एलएलबी किया। पर अपने जुनून को मुकाम तक पहुंचाने के लिए कभी कोर्ट कचहरी नहीं गए। आज वे देश और दुनिया को नालंदा विश्वविद्यालय की धरोहर को बताने में जुटे हैं।
आसान नहीं था इस कला को जीवंत करना
वीरगंद शर्मा कहते हैं कि स्कूल खोलकर दोनों हाथों से लिखने की कला बच्चों को सिखाएंगे यह अभिभावकों से शुरुआत दौर में नहीं बताया था। उन्हें डर था कि शायद अभिभावक इसे फितूर समझकर बच्चों को विद्यालय नहीं भेजेंगे। स्कूल मेें प्रथम सत्र में सामान्य बच्चों की तरह पढऩे पहली बार महज13 बच्चों ने प्रवेश लिया। उन्हीं से शुरु हुआ यह सफर अब नए मुकाम की ओर है। वीरंगद बताते हैं कि बच्चों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़े और रुचि भी बनी रहे, इसलिए पहले धीरे-धीरे दोनों हाथों से लिखने की कला सिखायी। वह घर जाते तो चर्चा करते। अभिभावक आते तो उनको समझाना पड़ता। कुछ ही सालों में क्षेत्र के लोग इस कला को लेकर आकर्षित हो गए। इस सत्र में अध्ययनरत करीब 200 बच्चे इस हुनर में माहिर हो चुके हैं।
जेनिस रोज ने कहा था इसे 9वां अजूबा
लायंस क्लब के अंतर्राष्ट्रीय चेयरमैन जेनिस रोज 2004-05 में बुधेला गांव अमेरीका से अपने जापानी मित्रों के साथ पहुंचे थे। तीन दिन रहने के बाद बच्चों को अपने साथ बनारस ले गए थे। जहां एक समारोह में इन बच्चों के हुनर को दिखाया गया। समारोह को संबोधित करते हुए जेनिस रोज ने कहा था कि भारत में दुनिया का यह 9वां अजूबा है।

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