कृपालपुर के निवासी थे पद्मधर शहीद लाल पद्मधर सिंह मूल रूप से मध्यप्रदेश के सतना स्थित कृपालपुर के निवासी थे। रीवा से स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था। इनके पूर्वज पहले भी स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई का हिस्सा बन चुके थे। इनके दादा धीर सिंह 1857 की जंग में शामिल हुए थे। लिहाजा इन पर भी स्वतंत्रता के लिए जज्बा कूट-कूट कर भरा था। जैसे ही महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया उसके साथ ही पूरा देश उबल पड़ा था। करो या मरो के नारे ने पूरे देश के जज्बात जगा दिये थे। इस नारे की गूंज जैसे ही इलाहाबाद पहुंची तो इलाहाबाद आंदोलित हो उठा। हालात को देखते हुए अंग्रेजों ने सभी बड़े नेताओं को बंदी बना लिया। आंदोलन की धार कुंद न पड़े तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने इसमें लपट बनाए रखने का जिम्मा लिया और अग्रणी भूमिका भी निभाई।
दिन भर शहर में निकाले गए जुलूस इलाहाबाद में आंदोलन की शुरुआत 11 अगस्त को हुई। अंग्रेजों के खिलाफ शहरभर में जुलूस निकाले गए और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने मुख्य भूमिका निभाई। बड़े नेताओं के जेल में बंद होने से जगह जगह आम नागरिक रैलियां निकाल रहे थे और विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इसमें इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्र छात्राएं मुख्य भूमिका में थे। वे रैलियों का नेतृत्व कर रहे थे।
11 अगस्त को 31 छात्रों ने ली शपथ गांधी ने 9 अगस्त को अंग्रेजों भारत छोड़ाे का नारा दिया और 11 अगस्त को इलाहाबाद आंदोलित हो चुका था। दिन भर अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शनों का दौर चला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कैंपस में छात्रों की एक बड़ी सभा आहूत की गई। इस दौरान विवि के छात्रों ने 12 अगस्त को कलेक्ट्रेट को अग्रेजों से मुक्त कराने और तिरंगा फहराने की योजना बनाई गई। इस बैठक के बाद रात को 31 छात्रों ने देश के लिए मर मिटने की शपथ ली। इन 31 विद्यार्थियों में से एक थे सतना कृपालपुर के लाल पद्मधर सिंह।
12 अगस्त को निकल पड़ा विद्यार्थियों का जुलूस 11 अगस्त की रात को लिए गये निर्णय के अनुसार सुबह इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में छात्र छात्राओं को हुजूम उमड़ पड़ा था। उधर अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई थी। कलेक्ट्रेट को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। लेकिन इससे बेखौफ सुबह 11 बजे विश्व विद्यालय परिसर से विद्यार्थियों के दो जुलूस रवाना हुए। एक जुलूस कलेक्ट्रेट के लिए रवाना हुआ और दूसरा कर्नल गंज इंडियन प्रेस की ओर निकला। इस वक्त इलाहाबाद कलेक्टर डिक्शन ने आंदोलन को कुचलने का जिम्मा तब के एसपी एसएन आगा को दिया था। तब आगा ने लक्ष्मी टाकीज चौराहे के पास कलेक्ट्रेट की ओर बढ़ रहे जुलूस को रोक दिया था। जुलूस के सामने सैकड़ों अंग्रेज सिपाही बंदूकें तान कर खड़े थे।
नयनतारा और पद्मधर कर रहे थे नेतृत्व इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से निकले जुलूस में छात्राओं की टोली का नेतृत्व नयन तारा सहगल और छात्रों की टोली का नेतृत्व लाल पद्मधर कर रहे थे। नयन तारा पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित की पुत्री हैं। यूनिवर्सिटी के सामने से इंकलाब जिंदाबाद, अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसे नारों के साथ जुलूस निकल पड़ा था। देशभक्ति की हिलोर मारती युवाओं की टोली इलाहाबाद की कचहरी की ओर बढ़ चली। कचहरी की ओर जाने वाली गलियां एक साथ नारों से गूंजने लगी और इधर ब्रितानिया सरकार अलर्ट में थी।
कलेक्टर ने दिया लाठी चार्ज का आदेश इलाहाबाद के तत्कालीन कलेक्टर डिक्सन और पुलिस अधीक्षक आगा ने जुलूस को बल प्रयोग करके तितर-बितर करने का प्लान बनाया और कचहरी से पहले ही छात्रों के जुलूस को अंग्रेजी पुलिस टुकड़ी ने रोक दिया। सभी को वापस लौट जाने की चेतावनी दी गई। चेतावनियों के बाद जब जुलूस नहीं रुका तो डिक्सन ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। छात्रों के जुलूस पर लाठियां बरसाई जाने लगी। लेकिन, देश प्रेम में मतवाले युवाओं पर लाठी चार्ज बेअसर रहा। तब प्रदर्शन को रोकने के लिए कलेक्टर डिक्शन ने फायर करने का आदेश दे दिया।
नहीं गिरने दिया तिरंगा हवाई फायर का असर जब जुलूस पर नहीं हुआ तो डिक्शन गुस्से से बौखला उठा। उसने छात्राओं के जुलूस की ओर इशारा किया और फायरिंग करने का आदेश दिया। गोली से बचने के लिए छात्राएं जमीन पर लेट गई लेकिन हाथ में तिरंगा लिए नयनतारा सहगल अपनी जगह पर ही खड़ी रही। उनके हाथ में देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा था और उसके सम्मान में वह जमीन पर नहीं झुकी। यह सब कुछ लाल पद्मधर देख रहे थे और जब लगा कि अंग्रेज नयनतारा पर गोली चला देंगे। तब उन्होंने दौड़कर तिरंगा अपने हाथ में ले लिया और अंग्रेजों के सामने पत्थर की चट्टान की तरह खड़े हो गए। यह कहते हुए लाल पद्मधर हाथ में तिरंगा थामे कचहरी की ओर कदम बढ़ा दिए। घोड़े पर सवार कलेक्टर डिक्शन अब बिल्कुल ही तिलमिला उठा। लाल पद्मधर को तिरंगा हाथ में लेकर कचहरी की ओर आगे कदम बढ़ाते देख उसने फिर से आदेश दिया “शूट हिम अलोन” यानी इसे अकेले मार दो। कलेक्टर के इस आदेश के बाद लाल पद्मधर फिर से नारे लगाने लगे। इंकलाब जिंदाबाद, भारत मां को आजाद करो के नारे उनकी सिंह गर्जना से गूंज उठे। तब तक एसपी आगा ने अपनी पिस्तौल निकाली और लाल पद्मधर की छाती पर दो गोलियां दाग दी। इस तरह 12 अगस्त को सतना के लाल देश के वीर सपूत लाल पद्मधर सिंह अमर हो गए। तब से आज तक छात्र संगठन का पहला और आखिरी नारा लाल पद्मधर सिंह के नाम का होता था। दल कोई भी हो लेकिन छात्र संघ की शपथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आज भी लाल पद्मधर सिंह के नाम पर ली जाती है। लेकिन यही पद्मधर सिंह को सतना छात्र संघ आज तक पहचान नहीं दे पाया है। आज भी ज्यादातर छात्र पद्मधर सिंह की शहादत की कहानी नहीं जानते हैं।
तब कुलपति ने दिया था विद्यार्थियों का साथ शहीद पद्मधर के पार्थिव शरीर को लेकर छात्र, छात्रसंघ भवन आ गए। उनका पार्थिव शरीर लेने के लिए एसपी आगा के नेतृत्व में पुलिस भी पहुंची। लेकिन प्राक्टर ने विश्वविद्यालय गेट के भीतर जाने की अनुमति नहीं दी। तब पुलिस कुलपति अमरनाथ झा के पास गई, लेकिन उन्होंने भी अनुमति नहीं दी और पुलिस को लौटना पड़ा। जुलूस में एनडी तिवारी, हेमवती नंदन बहुगुणा, चंद्रभूषण त्रिपाठी, कमला बहुगुणा, राज मंगल पांडेय समेत सैकड़ों युवाओं ने भाग लिया था। घटना के बाद छात्रसंघ भंग कर दिया गया था जो 1945 में बहाल हुआ।
सतना में ही भुला दिये गए पद्मधर स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद होने वालों में सतना कृपालपुर के लाल शहीद पद्मधर सिंह को जो सम्मान इलाहाबाद में मिलता है वह आज तक उन्हें सतना में नहीं मिल पाया है। जिले के अग्रणी महाविद्यालय का नाम कहने को तो पद्मधर सिंह के नाम पर है लेकिन न तो यह नाम विद्यालय के गेट पर नजर आता है और न ही उनके कागजों में। यहां माधवगढ़ के पास एक पार्क है जहां शहीद पद्मधर सिंह के नाम पर खानापूर्ति भरा एक आयोजन कर दिया जाता है। इनका जन्म 14 अक्टूबर सन् 1913 को सतना के कृपालपुर गांव में हुआ था, जो वर्तमान सतना नगर निगम के अन्तर्गत आता है।