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सतना

तुलसीदास की जन्मस्थली में मिले 10 हजार साल पुरानी सभ्यता के साक्ष्य

पुरातत्व विभाग की खोजबीन खत्म..तुलसीदास की जन्मस्थली चित्रकूट स्थित राजापुर के संडवावीर में दो सभ्यताओं को जोडऩे वाले संकेत मिले हैं।

सतनाOct 12, 2017 / 09:00 pm

राजीव जैन

ASI find 10000 year old civilisation in Tulsidas village at chitrakoot

ASI find 10000 year old civilisation in Tulsidas village at chitrakoot

सतना. तुलसीदास की जन्मस्थली चित्रकूट स्थित राजापुर के संडवावीर में दो सभ्यताओं को जोडऩे वाले संकेत मिले हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा कराई गई खुदाई में कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं, जिसे देखकर जानकार कह रहे हैं कि मध्य गंगा घाटी की तरह बुंदेलखंड भू-भाग की सभ्यता भी थी। दोनों एक-दूसरे से मिलती जुलती थी। 19 सितंबर से 11 अक्टूबर तक चली खुदाई के दौरान मिली सामग्री से ताम्रपाषाण काल में मध्य गंगा घाटी की सभ्यता की तरह ही बुंदेलखंड की भी सभ्यता होने के संकेत मिले हैं। अनुमान है कि बुंदेलखंड में नव पाषाण काल, ताम्र पाषाण काल और ऐतिहासिक काल के अवशेष मौजूद हैं। हालांकि इन तीनों काल की सभ्यता समान बताई जाती है। बुंदेलखंड इन तीनों सभ्यताओं का संवर्धन केंद्र रहा है।

त्रेता युग के साक्ष्य भी
प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में त्रेता युग के प्रमाण भी मिलते हैं। यहां भगवान राम के वनवास काल के साक्ष्य भी हैं। उनके द्वारा गुजारे गए साढ़े ग्यारह साल के कई तथ्य हैं। अब पुरातत्व विभाग ने यहां पर दस हजार साल पुराने आदिम सभ्यता के प्रमाण भी खोज लिए हैं। गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थान से करीब दस किलोमीटर दूर संडवावीर टीला में पुरातत्व विभाग को नवपाषाण युग के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। जो यह बताते हंै कि कृषि एवं पशुपालन के प्रारंभ समय से यहां पर आदिम सभ्यता थी।
अवशेषों को लेकर लौटी टीम
दरअसल, कलवलिया और डुडौली गांव के मध्य स्थित संडवावीर टीले पर 19 सितंबर से ११ अक्टूबर तक डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ और उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की टीम उत्खनन कर रही थी। इस कार्य का नेतृत्व कर रहे विवि के इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ. अवनीश चंद्र मिश्र ने बताया, खनन में प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। सीमित उत्खनन से नव पाषाणिक धरातल प्राप्त हुई है। उसमें मिले साक्ष्य बताते हैं कि यहां पर शिकार और संग्रह से जनजीवन स्थाई निवासी की ओर उन्मुख था। कृषि एवं पशुपालन के प्रारंभ का यह करीब दस हजार साल पुरानी आदिम सभ्यता का समय था। कृषक समाज स्थाई जीवन की ओर अग्रसर हो चुका था। उत्खनन टीम में उपनिदेशक क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. रामनरेश पाल, इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बृजेश चन्द्र रावत, शिविर प्रबंधक वीरेन्द्र शर्मा, शोध छात्र राजेश कुमार, पार्थ ङ्क्षसह कौशिक व सलाहकार डॉ. जेएन पाल व डॉ. एमसी गुप्ता शामिल रहे। टीम मिले अवशेषों को लेकर वापस लौट गई है।
तीन संस्कृति के साक्ष्य भी
उत्खनन में तीन संस्कृतियों के साक्ष्य मिले हैं। नवपाषाणिक, ताम्रपाषाणिक व ऐतिहासिक काल की संस्कृति उत्खनन स्थल से उत्तरी काली चमकीली पात्र परम्परा तथा शुग कुषाण काल व गुप्तकाल के पात्र भी प्रकाश में आए हैं। संडवावीर की खोज डॉ. रामनरेश पाल ने की थी। संडवावीर के उत्तर पश्चिम डेढ़ किलोमीटर की दूरी से उच्च पुरापाषाण काल के उपकरण सतह से प्राप्त हुए हैं। स्थल से दक्षिण लगभग एक किलोमीटर दूरी से वाल्मीकि नदी के बाएं तट के क्षेत्र से गुप्त, कुषाण व मध्यकाल के उपकरण प्राप्त हुए हैं।
Tulsidas village in chitrakoot
IMAGE CREDIT: patrika
कौशांबी व संडवावीर की परंपरा में समानता
यह बताना आवश्यक है कि नवपाषाणिक संस्कृति के विंध्य क्षेत्र व गंगा घाटी के स्थलों का उत्खनन किया जा चुका है। यहां से इसी प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं। जब यहां उत्तरी काली चमकीली पात्र परम्परा काल के लोग रह रहे थे, उस समय कौशाम्बी नगर भी प्रसिद्धि पर था। यह काल छठी ई. पूर्व का है, जब गौतम बुद्ध भारत में युगांतकारी कार्य कर रहे थे। कौशाम्बी और संडवावीर के उत्तरी काली चमकीले पात्र परम्परा में समानता दिखती है।
यह मिला
खनन में पानी रखने के मिट्टी के बर्तन और माला में प्रयोग होने वाली मोती के समान अवशेष (मनका), हड्डी से बनी मोतीनुमा माला, हड्डी के औजार मिले हैं। जिसे विशेषज्ञ परख रहे हैं।
Tulsidas village in chitrakoot
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