दरअसल, कलवलिया ग्राम पंचायत का संडवावीर टीला लोगों की उत्सुकता और पुरातत्व विभाग के लिए महत्वपूर्ण बन गया है। अब तक खुदाई में इस टीले से उत्तरी काली मिट्टी युग और ताम्र पाषाण युग के तथ्य सामने आ चुके हैं। पुरातत्व विभाग नवपाषाण युग की खोज का विषय मानते हुए तलाश को जारी रखे हुए है। इसके लिए शकुंतला देवी मिश्र पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ और पुरातत्व विभाग की टीम लगी है।
इस टीम को उत्खनन कार्य में बड़ी सफलता हाथ लगी। टीम लीडर विवि के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. अवनीश चंद्र मिश्र के मुताबिक, खुदाई में ताम्र पाषाण युग की झोपड़ी मिली है। टीम ने कलवलिया के दुदाईन दाई प्राचीन देवी मंदिर में भ्रमण किया। वहां महिषासुर मर्दनी देवी प्रतिमा के साथ तमाम मूर्तियां हंै। उसमें पाषाण युग की छाप दिख रही है।
ऐसे मिला प्रमाण
बताया जाता है, ए-वन ट्रंच में आठवें लेयर की खुदाई के दौरान झोपड़ी के साथ चूल्हा, हड्डी, हाथ के बने मिट्टी के बर्तन मिले हैं। जली मिट्टी, कार्बन और तांबा भी मिले हैं। जो ताम्र पाषाण युग के पुख्ता प्रमाण को प्रदर्शित करते हैं। डॉ. अवनीश चंद्र मिश्र ने बताया कि मिले प्रमाणों ने उनकी टीम के साथी क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी इलाहाबाद डॉ. रामनरेश पाल, असिस्टेंट प्रोफेसर बृजेश रावत, वीरेंद्र शर्मा और वीके खत्री में नया जोश भर दिया है।
बताया जाता है, ए-वन ट्रंच में आठवें लेयर की खुदाई के दौरान झोपड़ी के साथ चूल्हा, हड्डी, हाथ के बने मिट्टी के बर्तन मिले हैं। जली मिट्टी, कार्बन और तांबा भी मिले हैं। जो ताम्र पाषाण युग के पुख्ता प्रमाण को प्रदर्शित करते हैं। डॉ. अवनीश चंद्र मिश्र ने बताया कि मिले प्रमाणों ने उनकी टीम के साथी क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी इलाहाबाद डॉ. रामनरेश पाल, असिस्टेंट प्रोफेसर बृजेश रावत, वीरेंद्र शर्मा और वीके खत्री में नया जोश भर दिया है।
आसपास की सभ्यताओं के प्रमाण
डॉ. मिश्र ने बताया, चित्रकूट व्यापक शोध का केंद्र है। जिस संडवावीर टीला में उनकी टीम खुदाई कर रही है, उसके पास के गांव मोहरवां, सगवारा, गुरौली, भटरी, रमपुरवा, सुरवल, पटना और टेरा में भी ऐसी सभ्यता के लोग बसते थे। इसके प्रमाण यहां पर खुदाई से लग जाएंगे। वाल्मीकि नदी के रास्ता बदलने की संभावना जताई जाती है। क्योंकि, पहले लोग नदी के आसपास ही बसते थे।
डॉ. मिश्र ने बताया, चित्रकूट व्यापक शोध का केंद्र है। जिस संडवावीर टीला में उनकी टीम खुदाई कर रही है, उसके पास के गांव मोहरवां, सगवारा, गुरौली, भटरी, रमपुरवा, सुरवल, पटना और टेरा में भी ऐसी सभ्यता के लोग बसते थे। इसके प्रमाण यहां पर खुदाई से लग जाएंगे। वाल्मीकि नदी के रास्ता बदलने की संभावना जताई जाती है। क्योंकि, पहले लोग नदी के आसपास ही बसते थे।