समाजसेवी योगेंद्र भदौरिया बताते हैं, 1836 में सागर जिले के अंग्रेज अफसर ने नया कानून जारी कर जागीरदारों, ताल्लुकेदारों के अधिकारों को सीमित करने का प्रयास किया था। अंग्रेज अफसर की इस हरकत को जागीरदारों ने अपने स्वाभिमान के विरुद्ध समझा। अंग्रेजों के प्रति नफरत और विद्रोह की ज्वाला यहीं से भडक़ने लगी। 1842 में नाराहट में बुंदेलों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करते हुए दर्जनों अंग्रेज सिपाहियों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने नाराहट के विजय बहादुर राव को गिरफ्तार कर लिया था। अंग्रेजों की इस कार्रवाई से राव के तीन बेटों ने तूफान खड़ा कर दिया था।
इस विद्रोह को लोधी, राजगौड़, आदिवासी व सेनाओं का भी साथ मिलने लगा। अंग्रेजी सेना के साथ दर्जनों बार मुठभेड़ होने के बाद अंग्रेज अफसर हैमिल्टन ने मधुकर शाह एवं इनके भाई गज सिंह बुंदेला को बहन के घर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। 1843 में मधुकर को सागर में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। जब उन्हें फांसी दी गई, तब उनकी उम्र महज 21 साल थी, जबकि कालापानी की सजा पाने वाले उनके भाई गज सिंह 19 साल के थे।
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाले बुंदेला विद्रोह के महानायक नाराहट की माटी में जन्मे वीर सपूत मधुकर शाह पर मशहूर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव ने पुस्तक लिखी है। इस बुंदेला विद्रोह पुस्तक का विमोचन अमिताभ बच्चन ने किया था। इसमें मधुकर शाह की छठी पीढ़ी के वंशज विक्रम शाह को बुलाया गया था।
आज भी मौजूद हैं समाधि स्थल
सागर में आज भी शहीद की समाधि स्थल एवं पार्क मौजूद हैं। अमर शहीद मधुकर शाह के बलिदान को सदैव जीवंत रखने के लिए सागर की जेल में समाधि स्थल देखा जा सकता है। गोपाल गंज में उनके नाम से पार्क बना हुआ है।