इसी ने मैहर को भारत ही नहीं बल्कि विश्व के पटल पर अलग पहचान दी। १७ फरवरी यानी सोमवार से मैहर में तीन दिवसीय उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत समारोह शुरू हो रहा है। इसमें देशभर की हस्तियां शिरकत करेंगी। कार्यक्रम से एक दिन पहले पत्रिका ने उस्ताद अलाउद्दीन खां के नाती राजेश अली खान से बातचीत की तो बाबा के कई रोचक किस्से सामने आए। उनके मन में बाबा को भारत रत्न नहीं मिलने का मलाल भी था। आज हम संगीत के पुरोधा उस्ताद अलाउद्दीन खां के कुछ अनछुए पहलुओं को सामने रख रहे हैं।
उस्ताद भी कभी रहे बाबा के शिष्य
उस्ताद भी कभी रहे बाबा के शिष्य
आधुनिक भारतीय संगीत के जनक कहे जाने वाले बाबा अलाउद्दीन मानवतावाद, कर्मवाद एवं धर्मनिरपेक्षता के अनुयायी थे। बाबा के पास संगीत के सिवाय कुछ नहीं था। उनके पास जो भी आया उसकी जिंदगी बदल गई। भारतरत्न पं. रविशंकर प्रसाद हो या हरि प्रसाद चौरसिया, फिल्म जगत के प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर हों या फिर आचार्य रजनीश… इन सभी को बाबा ने अपने परिवार की तरह संगीत की शिक्षा देकर राह दिखाई पर स्वयं जीवनभर गुमनाम रहे।
248 प्रकार के वाद्ययंत्रों को बजाने की थी महारथ
सरोद वादक व संगीत के शिक्षक बाबा अलाउद्दीन खां ने देश को आधुनिक संगीत दिया। उन्होंने कई पुराने संगीत एवं राग को पीछे छोड़ नए राग बनाए। बाबा इकलौते एेसे संगीतकार थे, जिन्हें 248 प्रकार के वाद्ययंत्रों को बजाने की महारथ प्राप्त थी। इसके बाद भी संगीत सीखने की भूख कम नहीं हुई। वे जीवनभर संगीत सीखने के लिए गुरु की तलाश करते रहे। संगीत और संगीतकार की कद्र भी करते थे। बाबा के नाती राजेश अली बताते हैं कि यह घटना तब की है जब बाबा बाजार से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक भिखरी डफली बजाकर भीख मांग रहा था, लेकिन उसे किसी ने एक रुपए नहीं दिए। इससे बाबा को बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने भिखारी से डफली ली और अपना अगौछा सामने बिछाकर ढफली बचाने लगे, जिसे सुनने सड़क पर लोगों की भीड़ जुट गई। लोगों ने जमकर पैसा लुटाया। पैसे की पोटली बांधकर बाबा पूरे पैसे भिखारी को दे दिए।
सरोद वादक व संगीत के शिक्षक बाबा अलाउद्दीन खां ने देश को आधुनिक संगीत दिया। उन्होंने कई पुराने संगीत एवं राग को पीछे छोड़ नए राग बनाए। बाबा इकलौते एेसे संगीतकार थे, जिन्हें 248 प्रकार के वाद्ययंत्रों को बजाने की महारथ प्राप्त थी। इसके बाद भी संगीत सीखने की भूख कम नहीं हुई। वे जीवनभर संगीत सीखने के लिए गुरु की तलाश करते रहे। संगीत और संगीतकार की कद्र भी करते थे। बाबा के नाती राजेश अली बताते हैं कि यह घटना तब की है जब बाबा बाजार से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक भिखरी डफली बजाकर भीख मांग रहा था, लेकिन उसे किसी ने एक रुपए नहीं दिए। इससे बाबा को बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने भिखारी से डफली ली और अपना अगौछा सामने बिछाकर ढफली बचाने लगे, जिसे सुनने सड़क पर लोगों की भीड़ जुट गई। लोगों ने जमकर पैसा लुटाया। पैसे की पोटली बांधकर बाबा पूरे पैसे भिखारी को दे दिए।
उठी मांग…संगीत रत्न को ‘भारत रत्नÓ की दरकार
बाबा अलाउद्दीन खां ने छोटे से कस्बे मैहर में रहकर आधुनिक भारतीय संगीत को ऊंचाई दी। देश को सरोद के विश्वप्रसिद्ध उस्ताद दिया। नलतरंग जैसे वाद्ययंत्र का अविष्कार व 200 से अधिक रागों के जनक बाबा ने अपनी संगीत साधना से देश एवं मैहर का नाम विश्वभर में रोशन किया। उनके वाद्य यंत्रों एवं संगीत ने विंध्य का ध्यान भारतीय संगीत की ओर खींचा। अपनी सादगी और कर्मवाद के लिए प्रसिद्ध बाबा अलाउद्दीन खां की याद में हर साल मैहर में संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है लेकिन आधुनिक संगीत के पुरोधा की याद में सिर्फ समारोह आयोजित करना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि नहीं है। संगीत के रत्न को आज भी भरत रत्न की दरकार है। बाबा की विरासत संभाल रहे उनके छोटे पोते राजेश अली खान ने कहा कि बाबा को मरणोपरांत भारत रत्न दिलाने के लिए कई बार भारत सरकार एवं राष्ट्रपति को पत्र लिख चुके हैं लेकिन आज तक सरकार ने उन पर कोई विचार नहीं किया। बाबा ने भारतीय संगीत को नई पहचान दिलाई। भारत रत्न देना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
संगीत समारोह का शुभारंभ
बाबा अलाउद्दीन खां ने छोटे से कस्बे मैहर में रहकर आधुनिक भारतीय संगीत को ऊंचाई दी। देश को सरोद के विश्वप्रसिद्ध उस्ताद दिया। नलतरंग जैसे वाद्ययंत्र का अविष्कार व 200 से अधिक रागों के जनक बाबा ने अपनी संगीत साधना से देश एवं मैहर का नाम विश्वभर में रोशन किया। उनके वाद्य यंत्रों एवं संगीत ने विंध्य का ध्यान भारतीय संगीत की ओर खींचा। अपनी सादगी और कर्मवाद के लिए प्रसिद्ध बाबा अलाउद्दीन खां की याद में हर साल मैहर में संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है लेकिन आधुनिक संगीत के पुरोधा की याद में सिर्फ समारोह आयोजित करना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि नहीं है। संगीत के रत्न को आज भी भरत रत्न की दरकार है। बाबा की विरासत संभाल रहे उनके छोटे पोते राजेश अली खान ने कहा कि बाबा को मरणोपरांत भारत रत्न दिलाने के लिए कई बार भारत सरकार एवं राष्ट्रपति को पत्र लिख चुके हैं लेकिन आज तक सरकार ने उन पर कोई विचार नहीं किया। बाबा ने भारतीय संगीत को नई पहचान दिलाई। भारत रत्न देना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
संगीत समारोह का शुभारंभ
स्टेडियम में तीन दिवसीय उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत समारोह सोमवार को शुरू होगा। मुख्य अतिथि जिले प्रभारी मंत्री लखन घनघोरिया होंगे। विशिष्ट अतिथि सासंद गणेश सिंह, विधायक नारायण त्रिपाठी, जिला पंचायत अध्यक्ष सुधा सिंह, नगर पालिका अध्यक्ष धर्मेश घई होंगे। प्रवेश नि:शुल्क रहेगा। 19 फरवरी को इसका समापन होगा। पद्मविभूषण उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत समारोह में देश की प्रसिद्ध हस्तियां अपनी कला का प्रदर्शन करेंगी।