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Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव में पर्चे व बिल्ले गायब, अब हाईटेक हुआ चुनाव

locationसतनाPublished: Apr 22, 2019 07:57:43 pm

Submitted by:

suresh mishra

– बिल्ले बीते जमाने की बता, चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों पर चलाया चाबुक- शहरों एवं गांवों में कहीं कोई माइक का शोर नहीं दे रही सुनाई

Banner poster missing case lok sabha chunav 2019 me parche bille gayab

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सतना। अगर एक दशक पहले की बात करें, तो चुनाव के दौरान शहर से लेकर गांव तक सरकारी दिवालों पर पोस्टर पंपप्लेट चिपके दिखते थे। बिल्ले व पर्चे लगातार बांटे जाते थे। लेकिन, अब स्थितियां बदल गई हैं। बिल्ले व पर्चे खोजे नहीं मिल रहे हैं। देशभर में निर्वाचन आयोग की सख्ती के कारण ऐसा देखने को मिल रहा है। जिसका असर है कि लोकसभा चुनाव 2019 का माहौल बदला-बदला सा नजर आ रहा है। वार्ड क्रमांक-12 के बुजुर्ग कमलेश विश्वकर्मा बतातें है कि वर्षों पहले के चुनावों में हर गली मोहल्लों की दीवारें, बैनर पोस्टर, बिल्ला, पर्चा, झंडों से पट जाते थे। बड़े ही नहीं बच्चों को झंडे, बिल्ले एवं अन्य प्रचार सामग्री के प्रति उत्साह रहता था। पहले अधिकाधिक लोगों तक संपर्क करना और छोटी-छोटी प्रचार सामग्री के माध्यम से चुनाव का माहौल जमाने का प्रयास किया जाता था। अब बड़े नेताओं के रोड शो, सभाएं या फिर फिल्मी अभिनेताओं के रोड शो तक प्रचार सिमट गया है।
चुनाव बाद कहीं नजर नहीं आते अभिनेता
बालकृष्ण उरमलिया का मानना है कि, नेता और अभिनेता चुनाव में लोगों से बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, लेकिन चुनाव बाद कहीं नजर नहीं आते। लोग भी इन नेताओं व अभिनेताओं की चमक दमक से प्रभावित होकर वोट दे देते हैं। अच्छे व्यक्ति संसद एवं विधानसभाओं में पहुंचने से वंचित रह जाते हैं। जो लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। चुनाव आयोग के सराहनीय कदम से लगने लगा है कि बैनर एवं बिल्ले अब बीते जमाने की चीज बन गई हैं। हालांकि, चुनावी चर्चाएं पहले भी होती थीं और आज भी होती हैं। जिसमें आम जनमानस मसगूल रहता है और अपने नेता के गुण दोष का आंकलन तक करता है।
चौराहे से लेकर शादी के पंडाल तक चुनावी चर्चा
सौखीलाल तिवारी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोई चौपाल हो या चौराहा। या फिर विवाह हो या शादी समारोह हर जगह प्रत्याशियों की स्थिति, हार जीत का कारण, किसी प्रत्याशी की हवा पर गहन मंथन होता है। कभी-कभी तो आपसी बहस शोर शराबे का कारण बन जाती है। ज्यादातर लोग चिलम कम पीते हैं और चुनाव के रंग में अधिक रंगे नजर आते हैं। विवाह समारोह में लोग खाना कम खाते हैं और चुनावी चर्चाएं अधिक होती हैं। मानों हार-जीत का गुणा-गणित इन्हीं के पास होता है।

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