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बेस्ट फाइव फार्मूले का जादुई खेल, कम एडमिशन ज्यादा फेल, फिर भी पास पेलमपेल

locationसतनाPublished: May 15, 2018 11:33:05 am

Submitted by:

suresh mishra

बेस्ट फाइव फार्मूले का जादुई खेल, कम एडमिशन ज्यादा फेल, फिर भी पास पेलमपेल

MP board

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सतना। इस वर्ष बोर्ड परीक्षा के परिणामों में उल्लेखनीय सफलता को देख कर सरकार और स्कूल शिक्षा विभाग फूला नहीं समा रहा है लेकिन इसकी असली हकीकत कुछ और है। शिक्षाविदों की माने तो यह आभाषी सफलता है जो सरकार के जादुई फार्मूले के कारण दिख रही है। जबकि हकीकत कुछ और है। असलियत में देखा जाए तो सरकार ने ‘बेस्ट ऑफ फाइव’ का फार्मूला लाकर भले ही अपनी छवि बना ली हो लेकिन विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ ही किया है।
भद्द से बचने के लिये बड़ा खेल

सतना जिले के परीक्षा परिणामों का उदाहरण देते हुए शिक्षाविद डॉ. पीके गौतम बताते हैं कि लगातार खराब परिणाम से सरकार की पिट रही भद्द से बचने के लिये बड़ा खेल किया है। बेस्ट आफ फाइव करके सरकार ने विद्यार्थियों के शैक्षणिक गुणवत्ता पर कुठाराघात करके महज अपनी पीठ थपथपाने का काम किया है।
2018 में घट कर 27971 हो गई

उन्होंने बताया कि सतना जिले में वर्ष 2017 में हाईस्कूल परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या 28482 थी जो कि 2018 में घट कर 27971 हो गई। अर्थात इस साल 511 कम छात्र गत वर्ष की तुलना में परीक्षा में बैठे। वहीं फेल होने वाले छात्रों की संख्या देखें तो 2017 में 6969 थी जो 2018 में बढ़ कर 7954 हो गई। अर्थात इस वर्ष 985 छात्र गत वर्ष की तुलना में ज्यादा फेल हुए। लेकिन उत्तीर्ण छात्रों की संख्या में देखे तो इसमें उल्लेखनीय इजाफा हुआ।
सरकार ने जादुई फार्मूला निकाला

2017 में पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 13634 थी जो इस साल 3223 बढ़ कर 16857 हो गई। डॉ गौतम बताते हैं कि इसी 3223 के आंकड़े के लिये सरकार ने जादुई फार्मूला निकाला था। इसे उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया कि 2017 में पूरक छात्रों की संख्या 7847 थी लेकिन 2018 में पूरक की संख्या घट कर 3159 हो गई। अर्थात पूरक विद्यार्थियों की संख्या में 4688 की कमी आई।
पूरक संख्या का एक विषय अलग हो गया

यही वह संख्या है जिसने परीक्षा परिणाम में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है। डॉ गौतम ने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग के सांख्यिकी विशेषज्ञों ने पूरक परीक्षार्थियों की संख्या को फोकस करते हुए बेस्ट आफ फाइव का फार्मूला लाया। जिससे पूरक संख्या का एक विषय अलग हो गया और परिणामों में वृद्धि नजर आने लगी। लेकिन हकीकत में देखा जाए तो स्थिति गत वर्ष से गई गुजरी है जो फेल विद्यार्थियों के रूप में नजर आ रही है।
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