दरअसल अपने गांव-घर को छोड़ कर दूर गुजरात या महाराष्ट्र या ऐसे ही अन्य राज्यों में गए मजदूरो में से ज्यादातर फैक्ट्रियों या कल कारखानों में काम कर रहे थे। अब हर गांव में कल कारखाना या फैक्ट्री तो है नहीं। ऐसे में इन्हें क्या काम दिया जाए। संकट इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि ये वो मजदूर है जो वहां से आए हैं जहां मुसीबत के वक्त वहां के लोगों ने मझधार में छोड़ दिया। इनका कोई हाल नहीं जाना, मजदूरी तक काट लिए। मकान मालिक अपने किराये के लिए धमकी देते रहे। हफ्तों भूखे रह कर ये जैसे-तैसे लौटे हैं। ऐसे में ये अब दोबारा वहीं जाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे।
अब अगर सतना की ही बात करें तो यहां करीब 40 हजार मजदूर वापस आए हैं। इसमें से 70 फीसद ने साफ कह दिया है कि वो लौट कर नही जाने वाले। ऐसे में ये यहां क्या करेंगे। इन्हें क्या काम मिलेगा। यह सबसे बड़ा संकट पैदा हो गया है। वैसे यह संकट केवल सतना में ही नहीं बल्कि हर उस गांव में है जहां के मजदूर बड़े शहरों में जा कर अपनी आजीविका चला रहे थे।
अब प्रशासन की चुनौती यह भी है कि ऐसे मजदूरों का अलग से नए सिरे से डॉटा बेस तैयार करे। कौन किस काम में निपुण है। उसे किस अन्य काम से जोड़ा जा सकता है। फिर वैसे कार्यों का सृजन करना होगा। तभी इनकी आजीविका के साधन मुहैया हो पाएंगे। हर कोई मिट्टी-गारे का काम नहीं कर पाएगा। इन्हें ग्रामीण रोजगार विभाग से संचालित एनआरएलएम जैसी योजनाओं के मार्फत काम दिया जा सकता है।
वैसे दीनदयाल शोध गांवों में दूसरे राज्यों व जिलों से आने वाले इन मजदूरों पर शोध शुरू किया गया है। इसके प्रारंभिक आंकड़ों को अगर सही माना जाए तो जो 70 प्रतिशत मजदूर अब वापस नहीं जाना चाहते उनमें से 30 प्रतिशत कुशल मजदूर हैं। इसके अलावा 20 प्रतिशत अर्धकुशल। शेष 50 फीसद मजदूर वर्क कंस्ट्रक्शन से जुड़ा रहा है।
“वापस लौटने वाले प्रवासियों का 140 गांवों का सर्वे किया जा रहा है। जल्द ही सर्वे का विश्लेषण पूरा हो जाएगा। इससे रोजगार समाधान की दिशा में कई आयाम निकल कर आएंगे।”- अभय महाजन, निदेशक, डीआरआई
“बाहर से आने वाले लोगों की दक्षता का पता लगाया जा सकता है। इस दिशा में काम किया जा सकता है। साथ ही ऐसे लोगो कोएनआरएलएम से जोड़ कर नए रोजगार के अवसर बनाए जाएंगे।”- ऋजु बापना, जिला पंचायत सीईओ