11 नवंबर से शुरू हो रहा छठ पूजा का महापर्व 4 दिन तक मनाया जाता है। यह बिहार राज्य के प्रमुख त्योहारों में से एक है। छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान में पहले दिन नहाय-खाए, दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य की पूजा और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं।
इस बार नहाए-खाए 11 नवंबर को, खरना 12 नवंबर को, सांझ का अर्घ्य 13 नवंबर को और सुबह का अघ्र्य 14 नवंबर को है। नहाए-खाए के दिन महिलाएं और पुरुष नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से कद्दू की सब्जी और पकवान बनाए जाते हैं इसलिए इस दिन को कदुआ भात भी कहते हैं।
1- पंडि़तों की मानें तो सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए रोजाना सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
2- जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का ही उपयोग करें, क्योंकि तांबा सूर्य की धातु है।
3- जल में चावल, रोली, फूल पत्तियां (यदि गुलाब की हो तो सर्वश्रेष्ठ है) भी डाल लेना चाहिए।
4- इसके बाद जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र का जाप करें।
5- गायत्री के साथ ही सूर्यदेव के 12 नाम वाले मंत्र का जाप कर सकते हैं।
1- सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की जो धारा जमीन पर गिर रही है, उस धारा से सूर्यदेव के दर्शन करना चाहिए। इससे आंखों की रोशनी तेज होती है।
2- अर्घ्य देने के बाद जमीन पर गिरे पानी को अपने मस्तक पर लगाना चाहिए। सूयज़् को जल चढ़ाने के सुबह जल्दी उठना चाहिए। जल्दी उठने से स्वास्थ्य ठीक रहता है।
3- दिनभर काम करने के लिए समय ज्यादा मिलता है। जल चढ़ाने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में सुबह-सुबह के वातावरण का लाभ सेहत को मिलता है।
मंत्र
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।
सप्ताश्वरथमारूढ़ं प्रचंडं कश्यपात्मजम्, श्वेतपद्यधरं देव तं सूयज़्प्रणाम्यहम्।।