संदीप के पिता मुन्ना लाल बताते हैं, बेटे की कक्षा 1 से लेकर 10वीं तक की पढ़ाई सिंहपुर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से हुई है। 10वीं में 85 परसेंट लगाकर वह मेरा सीना चौड़ा कर चुका है। उसकी प्रतिभा को देखकर 11वीं और 12वीं की पढ़ाई करने के लिए सतना भेज दिया। व्यंकट क्रमांक-1 में मैथ लेकर 12वीं में अच्छे अंक लाए। फिर वह सतना के एक निजी कॉलेज से बीएएलएलबी कर जबलपुर कोचिंग करने चला गया। वहां दिन रात 2 वर्ष तक लगातार पढ़ाई की। बीते बुधवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर स्थित परीक्षा इकाई ने सिविल जज की चयन सूची जारी की तो संदीप ने सबको चौंका दिया।
मुन्ना लाल नामदेव के पिता राधिका प्रसाद नामदेव 50 वर्ष पहले पन्ना के धाम मोहल्ले से सिंहपुर आ गए थे। उनके तीन बच्चे और दो बच्चियां थी। बीच के बेटे मुन्नालाल का जन्म 1964 को हुआ था। उनके तीन बच्चे थे, बड़ा बेटा आशीष 12वीं की पढ़ाई कर दर्जी का काम करता था। छोटी बेटी अंसू बीए करने के बाद डीएलएड कर रही है। बीच का बेटा संदीप सिविल जज बन गया है।
30 वर्ष पहले 30 रुपए मिलती थी सिलाई
कहते है 90 के दशक की शुरुआत में 30 रुपए पैंट-शर्ट की सिलाई मिलती थी। वर्तमान समय में 400 से 500 रुपए तक पहुंच गई है। सामान्यतौर पर एक दर्जी एक दिन में एक पैंट-शर्ट सी सकता है। यही उसकी दिनभर की इनकम है। उसी से घर का खर्च चलाना और बच्चों को पढ़ाना-लिखाना होता था। पैसे कम होने से बेटे को ट्यूशन नहीं दिला पाते थे। उस दौर में सबसे ज्यादा सिलाई बंगली, कच्छा-बनियान, हाफ कुर्ती की मिला करती थी।
कहते है 90 के दशक की शुरुआत में 30 रुपए पैंट-शर्ट की सिलाई मिलती थी। वर्तमान समय में 400 से 500 रुपए तक पहुंच गई है। सामान्यतौर पर एक दर्जी एक दिन में एक पैंट-शर्ट सी सकता है। यही उसकी दिनभर की इनकम है। उसी से घर का खर्च चलाना और बच्चों को पढ़ाना-लिखाना होता था। पैसे कम होने से बेटे को ट्यूशन नहीं दिला पाते थे। उस दौर में सबसे ज्यादा सिलाई बंगली, कच्छा-बनियान, हाफ कुर्ती की मिला करती थी।
मोहल्लेवासी बताते हैं, कपड़ों के कतरन के जोड़तोड़ में लगे रहने वाले दर्जी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसका बेटा सिविल जज बनकर तकदीर बदल देगा। पिता अलसुबह 5 बजे से लेकर रात 12 बजे तक पत्नी के साथ कपड़ों को सिलने में समय व्यतीत करते तो बेटा सपनों को संजोए हुए दिन-रात 5 बाई 20 के मकान रहकर पढ़ाई करता रहता। पिता के जीवन में लाख परेशानियां आईं, लेकिन बेटे के सपनों के आगे जख्मों को पीता गया। बेटे ने भी जज बनकर पिता की खोई मुस्कान को वापस कर दिया है।
छलक आए खुशी के आंसू
पत्रिका टीम शुक्रवार को सिविल जज बनने वाले संदीप नामदेव के घर पहुंची तो पिता मुन्नालाल और उनकी माता आशा नामदेव मिले। बेटे की सफलता के सवाल-जवाब में उनके आंसू छलक आए। बोले-यही मेरा 5 बाई 20 का मकान है, जिसमें दुकान भी चलाता हूं और परिवार सहित रहता भी हूं। बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देकर कामयाब बनाने की तमन्ना थी, जिसको भगवान ने सुन ली है। अब आसानी से मेरा घर भी बन जाएगा और बेटी के हाथ पीले भी हो जाएंगे।
पत्रिका टीम शुक्रवार को सिविल जज बनने वाले संदीप नामदेव के घर पहुंची तो पिता मुन्नालाल और उनकी माता आशा नामदेव मिले। बेटे की सफलता के सवाल-जवाब में उनके आंसू छलक आए। बोले-यही मेरा 5 बाई 20 का मकान है, जिसमें दुकान भी चलाता हूं और परिवार सहित रहता भी हूं। बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देकर कामयाब बनाने की तमन्ना थी, जिसको भगवान ने सुन ली है। अब आसानी से मेरा घर भी बन जाएगा और बेटी के हाथ पीले भी हो जाएंगे।