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काल की अवधारण और आयामों को प्रस्तुत करती है पुस्तक

locationसतनाPublished: Apr 16, 2019 09:06:21 pm

Submitted by:

Jyoti Gupta

श्यामसुंदर दुबे की कृति ‘काल: क्रीड़ति’की समालोचना

commentary of Shyam Sundar Dubey's work 'Kaal: Kirti'

commentary of Shyam Sundar Dubey’s work ‘Kaal: Kirti’

सतना. जिला इकाई पाठक मंच के तत्वावधान में पुस्तक विमर्श का आयोजन किया गया। अध्यक्षता बुंदेली लेखक रामदास गर्ग, विशिष्ट अतिथि चिंतामणि मिश्र ने की। संचालन युवा लेखक मयंक अग्निहोत्री ने किया। विमर्श में वरिष्ठ व्यंग्यकार गणेश वैरागी ने श्यामसुंदर दुबे की कृति काल: क्रीड़ति पर समालोचना प्रस्तुत की। कहा, यह कृति ललित निबंधों का संग्रह है। इसमें लोक में काल की अवधारणा है। पूरी दिनचर्या काल पर आधारित है। काल के वशीभूत होकर हम सब अपना जीवन जीते हैं। इसीलिए काल की अवधारणा और विभिन्न आयामों को प्रस्तुत करती यह पुस्तक है। उमेश गौतम शास्त्री ने कहा कि ललित निबंध में जैसे कल्पना का आधार निहित होता है, इसलिए लेखक के इन निबंधों में भी सामान्य विषयों को भी भावभूमि में परख कर लिखा गया है। गोरखनाथ अग्रवाल ने कहा कि इस कृति में जिन विषयों को समाहित किया गया है वो हमारे आसपास हैं, हमारे और प्रकृति के संबंधों को भी लेखक ने बखूबी उकेरा है।
अब्दुल गफ्फ ार खान ने कहा कि इस कृति में बुंदेली बोली का पुट मिलता है। कैलाश यादव ने कहा कि काल: क्रीडति में काल के खेलों को वर्णित किया गया है। मयंक अग्निहोत्री ने कहा साहित्यकार के निबंधों को पढऩे के लिए समय देने की आवश्यकता होती है। तभी हम उनके भावों को समझ सकते हैं। चिंतामणि मिश्र ने कहा कि इन निबंधो ंमें उनकी वैचारिक और कथ्यात्मक उठान पाठक को आकर्षित करता है।

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