विकास की अंधी दौड़ में सतना महानगरों से पीछे नहीं। जिले में फोरलेन सड़कों का संजाल बिछाने के लिए हरियाली की बलि चढ़ाई जा रही है। बढ़ती आबादी जंगल को निगलती जा रही है। जहां कल तक हरा-भरा जंगल लहलहाता था वहां पर आज कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। पेड़ों की जगह फसल लहलहा रही है। विकास की इस दौड़ में हम जंगल का महत्व ही भूल गए हैं। आलम यह है कि दो दशक पहले जिले का एक तिहाई भूभाग वनों से आक्षादित था, लेकिन अब जंगल सिर्फ कागजों में ही बचा है।
सड़क के लिए पेड़ों का कत्ल
बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए हमने धरती का अंधाधुंध दोहन किया है। पानी की बढ़ती जरूरत और खेती के लिए भू-जल का अत्यधिक दोहन किया। इसका परिणाम यह है कि सतना भू-जल स्तर में देश के टॉप टेन क्रिटिकल शहरों में शामिल हो गया है। हम धरती की कोख में छेंदकर रात-दिन पानी निकलते हैं लेकिन धरती से लिया गया पानी उसे लौटाने आज तक निजी एवं प्रशानिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए गए। परिणाम, अब सर्दी के दिनों में भी जिले की आधी आबादी पानी के लिए भटक रही है।
यूं बिगड़ रहा प्रकृति का संतुलन
जिले में कम हो रही बारिश एवं भू-जल के अत्यधिक दोहन से पानी पाताल पहुंच गया है। दो दशक पहले जहां जिले का भू-जल स्तर 30 फीट था, वही अब खिसक कर 250 फीट नीचे चला गया है। भूज जल संरक्षण विभाग का कहना है कि भूजल दोहन में सतना देश में तीसरे पायदन पर है। जिले में हर साल धरती से 70 से 100 फीसदी जल का दोहन हो रहा है। जबकि धरती को रिचार्ज करने कोई उपाय नहीं किए जा रहे।
10 साल में डेढ़ गुना बढ़ा प्रदूषण
पॉलीथिन एवं प्लॉस्टिक के बढ़ते उपयोग से जल एवं मृदा प्रदूषित हो रही है। शहर से प्रतिदिन 150 मीट्रिक टन कचरा निकलाता है। इसका निष्पादन करना निगम प्रशासन के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। शहर में चारों ओर कचरे के पहाड़ बनते जा रहे हैं। खाली प्लॉट एवं मैदानों में चारों ओर पॉलीथिन ही नजर आती है। यह मिट्टी में दबकर धरता का उपजाऊपन कम करने के साथ ही मिट्टी को जहरीला कर रही है।
बस इतना करने की जरूरत
– पानी न बर्बाद करें और न दूसरों को करने दें – पॉलीथिन का उपयोग आज ही बंद कर दें
– जलाशयों को सहेजंे और दूसरों को भी प्रेरित करें