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सतना

कंक्रीट के जंगल से नहीं निकलेगा हल, जल-जंगल-जमीन बचाएंगे तो सुनहरा होगा कल

विश्व पृथ्वी दिवस: आधुनिकता की अंधी दौड़ के बीच पृथ्वी को सहेजने बढ़ाने होंगे हाथ

सतनाApr 22, 2019 / 01:24 am

Sukhendra Mishra

Concrete will not come out of the forest

Concrete will not come out of the forest

सतना. आज विश्व पृथ्वी दिवस है। यह दिन उत्सव मनाने के लिए नहीं बनाया गया बल्कि इसलिए बनाया गया कि आधुनिकता की अंधी दौड़ के बीच साल में एक दिन हम पृथ्वी के बारे में सोचें, धरती को प्रदूषण से बचाने के लिए संकल्प लें। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में भागते हुए हम उस चौराहे पर आकर खड़े हो गए हैं जहां हमारे पास खरीदने के लिए पैसा तो बहुत है पर हम शायद यह भूल गए कि इस धरती ने हमंे जो दिया है उसे पैसों से नहीं खरीदा जा सकता। इसलिए यदि अपना और अपने बच्चों का सुनहरा भविष्य देखना चाहते हैं तो कंक्रीट के जंगल (बिल्डिंग्स व सीसी सड़कें) नहीं बल्कि जल, जमीन और जंगल को सहेजना होगा।
जंगल से पेड़ गायब
विकास की अंधी दौड़ में सतना महानगरों से पीछे नहीं। जिले में फोरलेन सड़कों का संजाल बिछाने के लिए हरियाली की बलि चढ़ाई जा रही है। बढ़ती आबादी जंगल को निगलती जा रही है। जहां कल तक हरा-भरा जंगल लहलहाता था वहां पर आज कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। पेड़ों की जगह फसल लहलहा रही है। विकास की इस दौड़ में हम जंगल का महत्व ही भूल गए हैं। आलम यह है कि दो दशक पहले जिले का एक तिहाई भूभाग वनों से आक्षादित था, लेकिन अब जंगल सिर्फ कागजों में ही बचा है।
सड़क के लिए पेड़ों का कत्ल
विकास के नाम पर जिले में सड़कों का संजाल बिछाने एवं सड़क चौड़ीकरण के लिए हर साल सैकड़ों वृक्षों का कत्ल किया जा रहा। बीते दस साल में राष्ट्रीय राजमार्ग एवं स्टेट हाइवे निर्माण के लिए जिले में १० हजार से अधिक हरे दरख्त काट दिए गए। लेकिन, उनके स्थान पर आज तक ठेका कंपनी एक पौधा नहीं लगा पाई। परिणाम यह है कि कल तक हरे-भरे दिखने वाली सड़कों के किनारों में अब सिर्फ कंक्रीट नजर आता है। इससे वाहनों की रफ्तार तो बढ़ रही है पर ऑक्सीजन की कमी हमें भारी पड़ सकती है।
भू-जल का अत्यधिक दोहन
बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए हमने धरती का अंधाधुंध दोहन किया है। पानी की बढ़ती जरूरत और खेती के लिए भू-जल का अत्यधिक दोहन किया। इसका परिणाम यह है कि सतना भू-जल स्तर में देश के टॉप टेन क्रिटिकल शहरों में शामिल हो गया है। हम धरती की कोख में छेंदकर रात-दिन पानी निकलते हैं लेकिन धरती से लिया गया पानी उसे लौटाने आज तक निजी एवं प्रशानिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए गए। परिणाम, अब सर्दी के दिनों में भी जिले की आधी आबादी पानी के लिए भटक रही है।
यूं बिगड़ रहा प्रकृति का संतुलन
बारिश कराने में पेड़ों का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन, जिले में घटते वन और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से बारिश का औसत साल दर साल घट रहा है। दो दशक पहले जहां जिले में हर साल ११०६ मिमी बारिश होती थी, अब बारिश का औसत घटकर ८३५ पर आ रहा है। असमान बारिश से कभी बढ़ तो कभी सूखे का सामना करना पड़ रहा है।
250 फीट गिरा भू-जल स्तर
जिले में कम हो रही बारिश एवं भू-जल के अत्यधिक दोहन से पानी पाताल पहुंच गया है। दो दशक पहले जहां जिले का भू-जल स्तर 30 फीट था, वही अब खिसक कर 250 फीट नीचे चला गया है। भूज जल संरक्षण विभाग का कहना है कि भूजल दोहन में सतना देश में तीसरे पायदन पर है। जिले में हर साल धरती से 70 से 100 फीसदी जल का दोहन हो रहा है। जबकि धरती को रिचार्ज करने कोई उपाय नहीं किए जा रहे।
10 साल में डेढ़ गुना बढ़ा प्रदूषण
घटती हरियाली एवं विकास के नाम पर बिछाए जा हरे कंक्रीट के कारण शहर में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है। बीते एक दशक में जिले की आबोहवा खराब हुई है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि प्रदूषित शहरों में सतना देश के टॉप 100 शहरों में शामिल है। वायु प्रदूषण के कारण शहर में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
प्लॉस्टिक कचरे से धरती में घुला जहर
पॉलीथिन एवं प्लॉस्टिक के बढ़ते उपयोग से जल एवं मृदा प्रदूषित हो रही है। शहर से प्रतिदिन 150 मीट्रिक टन कचरा निकलाता है। इसका निष्पादन करना निगम प्रशासन के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। शहर में चारों ओर कचरे के पहाड़ बनते जा रहे हैं। खाली प्लॉट एवं मैदानों में चारों ओर पॉलीथिन ही नजर आती है। यह मिट्टी में दबकर धरता का उपजाऊपन कम करने के साथ ही मिट्टी को जहरीला कर रही है।
बस इतना करने की जरूरत
– साल में एक पौधा जरूर लगाए
– पानी न बर्बाद करें और न दूसरों को करने दें

– पॉलीथिन का उपयोग आज ही बंद कर दें
– जलाशयों को सहेजंे और दूसरों को भी प्रेरित करें

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