इसके चलते एक्स-रे नहीं हो पा रहा। इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन शिकायत दर्ज कराने के बाद भी चुप है। दूसरी ओर नैदानिक केंद्र में रसायन नहीं होने से खून की जांच नहीं हो पा रही। विगत 8 माह से रसायन की सप्लाई में मनमानी चल रही थी। इस बार रसायन खत्म हो गया और नैदानिक केंद्र में सप्लाई नहीं हुई।
इधर दूसरी लापरवाही
मामले में जिला अस्पताल प्रबंधन की एक और बड़ी लापरवाही सामने आई है। ट्रॉमा सेंटर के लिए अलग से एक्स-रे मशीन भेजी गई थी। जो मौके पर पहुंच भी गई, लेकिन विगत दो माह से मशीन धूल फांक रही है। प्रबंधन उसको इंस्टॉल नहीं करवा पा रहा। अगर, ये मशीन चालू होती, तो मरीजों के पास वैकल्पिक व्यवस्था होती, व्यवस्था शत-प्रतिशत ठप नहीं होती।
मामले में जिला अस्पताल प्रबंधन की एक और बड़ी लापरवाही सामने आई है। ट्रॉमा सेंटर के लिए अलग से एक्स-रे मशीन भेजी गई थी। जो मौके पर पहुंच भी गई, लेकिन विगत दो माह से मशीन धूल फांक रही है। प्रबंधन उसको इंस्टॉल नहीं करवा पा रहा। अगर, ये मशीन चालू होती, तो मरीजों के पास वैकल्पिक व्यवस्था होती, व्यवस्था शत-प्रतिशत ठप नहीं होती।
वैकल्पिक व्यवस्था नहीं
नैदानिक केंद्र में खून जांच व एक्स-रे शत प्रतिशत पांच दिन से बंद है। इसके चलते अभी तक डेढ हजार से ज्यादा मरीजों को लौटना पड़ा है। उसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है। ऐसे में इलाज का लेकर गंभीरता के दावे करना बेमानी है। वहीं गंभीर मरीजों का जीवन संकट में पड़ा हुआ है।
नैदानिक केंद्र में खून जांच व एक्स-रे शत प्रतिशत पांच दिन से बंद है। इसके चलते अभी तक डेढ हजार से ज्यादा मरीजों को लौटना पड़ा है। उसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है। ऐसे में इलाज का लेकर गंभीरता के दावे करना बेमानी है। वहीं गंभीर मरीजों का जीवन संकट में पड़ा हुआ है।
प्रतिदिन 300 से ज्यादा जांच
जिला अस्पताल के नैदानिक केंद्र में प्रतिदिन 200-250 मरीजों की खून की जांच होती है। 100-150 मरीजों का एक्स-रे होता है। असर है कि रोज औसतन 300 मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है।
जिला अस्पताल के नैदानिक केंद्र में प्रतिदिन 200-250 मरीजों की खून की जांच होती है। 100-150 मरीजों का एक्स-रे होता है। असर है कि रोज औसतन 300 मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है।