यह कहानी केवल पान बाई की नहीं है, बल्कि आग से झुलसने वाले अधिकतर करीब एक दर्जन मरीजों को भुगतना पड़ा है। वर्तमान में दो मरीज जानलेवा लापरवाही के शिकार हैं। इस लापरवाही के पीछे कारण है कि बर्न यूनिट में करीब डेढ़ माह से ताला लटका हुआ है। प्रबंधन का तर्क है कि बर्न यूनिट में रिनोवेशन का कार्य चल रहा है। लेकिन, सवाल उठाता है कि वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इस सवाल का जवाब भी प्रबंधन के पास नहीं है।
कब चालू होंगी इकाइयां: रिनोवेशन के नाम पर बंद की गई बर्न यूनिट को बंद क्यों कर दिया गया, वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई? ये इकाइयां कब तक आरंभ हो जाएंगी? इन प्रश्नों के जवाब जिला अस्पताल प्रबंधन के जिम्मेदारों को नहीं हंै। महज दावा किया जा रहा कि अलग इकाई बनाई जा रही है। जिसे शीघ्र आरंभ किया जाएगा।
डॉक्टर झांकने भी नहीं आते
जिला अस्पताल सर्जिकल वार्ड में पीडि़तों को दाखिल किया जा रहा है। वहां प्रोटोकॉल तो दूर प्राथमिक सुविधाएं भी नसीब नहीं हो रही हैं। प्रोटोकॉल के मुताबिक वार्ड में एयर कंडीशनर की सुविधा होनी चाहिए, निर्धारित समयावधि में फ्यूमिगेशन होना चाहिए, पीडि़तों को संक्रमण से बचाने नेट दिया जाना चाहिए, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। पंखे भी ठीक से नहीं चल रहे हैं। नेट भी नहीं दी जा रही है। पीडि़त खुले में पड़े हुए हैं। मजबूरी में लोग घर से साड़ी लाकर उपयोग कर रहे हैं। फ्यूमिगेशन तो दूर साफ-सफाई तक नहीं की जाती है। दुर्गंध के चलते पल भर इकाई के अंदर खड़े होना मुश्किल है।
मरीजों की जा सकती है जान
अस्पताल प्रबंधन का कदम सीधे तौर पर चिकित्सीय प्रोटोकाल का उल्लंघन है। ऐसे में आग से झुलसे मरीज की जान भी जा सकती है। उसके बावजूद जिम्मेदार प्रबंधन गंभीर नहीं दिखाई देता है। स्टाफ को भी संवेदनशील रहने को लेकर हिदायत नहीं दी जा रही है।
अस्पताल प्रबंधन का कदम सीधे तौर पर चिकित्सीय प्रोटोकाल का उल्लंघन है। ऐसे में आग से झुलसे मरीज की जान भी जा सकती है। उसके बावजूद जिम्मेदार प्रबंधन गंभीर नहीं दिखाई देता है। स्टाफ को भी संवेदनशील रहने को लेकर हिदायत नहीं दी जा रही है।
मरहम-पट्टी के लिए जी हजूरी
बर्न यूनिट की जगह सर्जिकल वार्ड में भर्ती करने की सजा आग से झुलसे मरीजों को उठानी पड़ रही है। वार्ड में अन्य मरीजों का दबाव है। इसके चलते पीडि़त सहित परिजनों को मरहम, पट्टी के लिए स्टाफ की जी हजूरी करनी पड़ रही है। घंटों इंतजार के बाद भी मलहम पट्टी होने की गारंटी तक नहीं रहती है।
बर्न यूनिट की जगह सर्जिकल वार्ड में भर्ती करने की सजा आग से झुलसे मरीजों को उठानी पड़ रही है। वार्ड में अन्य मरीजों का दबाव है। इसके चलते पीडि़त सहित परिजनों को मरहम, पट्टी के लिए स्टाफ की जी हजूरी करनी पड़ रही है। घंटों इंतजार के बाद भी मलहम पट्टी होने की गारंटी तक नहीं रहती है।
दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा
जिला अस्पताल के सभी वार्डों का रिनावेशन कराया जा रहा है। एेसे में सर्जिकल महिला और सर्जिकल पुरुष वार्ड में स्थापित बर्न यूनिट में डेढ़ माह पहले ताला जड़ दिया गया है। अस्पताल आने वाले पीडि़तों को प्रोटोकॉल को धता बताकर सर्जिकल वार्ड में दाखिल किया जा रहा है। वहां पर पीडि़तों को बेहतर इलाज तो दूर देखभाल भी नहीं हो पा रही है।
जिला अस्पताल के सभी वार्डों का रिनावेशन कराया जा रहा है। एेसे में सर्जिकल महिला और सर्जिकल पुरुष वार्ड में स्थापित बर्न यूनिट में डेढ़ माह पहले ताला जड़ दिया गया है। अस्पताल आने वाले पीडि़तों को प्रोटोकॉल को धता बताकर सर्जिकल वार्ड में दाखिल किया जा रहा है। वहां पर पीडि़तों को बेहतर इलाज तो दूर देखभाल भी नहीं हो पा रही है।
वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई हैं
इकबाल सिंह, अस्पताल प्रशासक ने कहा नई इकाई का निर्माण कार्य चल रहा है, जो पूरा हो चुका है। इसे शीघ्र चालू किया जाएगा। पीडि़तों को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा मुहैया कराई जाए, इसकी वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई हैं।
इकबाल सिंह, अस्पताल प्रशासक ने कहा नई इकाई का निर्माण कार्य चल रहा है, जो पूरा हो चुका है। इसे शीघ्र चालू किया जाएगा। पीडि़तों को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा मुहैया कराई जाए, इसकी वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई हैं।