इकाई के संचालन के नाम पर जिला अस्पताल प्रबंधन द्वारा महज खानापूर्ति की जा रही है। इकाई का प्रभार न किसी विशेषज्ञ चिकित्सक को दिया गया है और न हीं नर्सिंग स्टाफ की तैनाती की गयी है। प्रचार के अभाव के चलते लोगों को संचालन की जानकारी नहीं है।
जिला अस्पताल ओपीडी पर्चा के लिए लगी मुसीबत की कतार में एक मासूम ने मां की गोद में दम तोड़ दिया था। तब तत्कालीन कलेक्टर ने व्यवस्था में बदलाव के सख्त निर्देश दिए थे। ओपीडी की सभी इकाइयों का सुचारु संचालन करने कहा था। लेकिन अस्पताल प्रबंधन के जिम्मेदार मासूम की मौत के बाद भी नींद से नहीं जागे हैं।
इकाई में लाखों रुपए खर्च कर रेडियेंट वॉर्मर, आक्सीजन कंसेनट्रेटर, इनफ्यूजन पंप, मल्टीपेरामीटर मॉनीटर, पल्स ऑक्सीमीटर, लेरिंगोस्कोप सहित एक दर्जन से अधिक उपकरण स्थापित किए गए हैं। लेकिन अस्पताल पहुंचने वाले पीडि़तों को जानकारी के अभाव में इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बड़ी संख्या में उपकरण इकाई में दो साल से भी अधिक समय से धूल खा रहे हैं।
इकाई में दाखिल होने वाले मासूमों को इमरजेंसी ड्रग्स, उपकरण डायग्नोस्टिक्स उपलब्ध कराना था। प्राथमिक इलाज के बाद मासूमों को शिशु रोग वार्ड की हाई डिपेंडेंसी यूनिट में शिफ्ट कराया जाना था।