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इमरजेंसी मेडिकल सर्विस फॉर चिल्ड्रन-डे: डॉक्टर न स्टाफ, लाखों रुपए के उपकरण हो रहे बेकार

locationसतनाPublished: May 22, 2019 03:13:27 pm

Submitted by:

suresh mishra

इमरजेंसी मेडिकल सर्विस फॉर चिल्ड्रन-डे: डॉक्टर न स्टाफ, लाखों रुपए के उपकरण हो रहे बेकार

Emergency Medical Service for Children Day in satna

Emergency Medical Service for Children Day in satna

सतना। जिला अस्पताल ओपीडी में पीडियाट्रिक इमरजेंसी ट्रॉयेज असेस्मेंट एवं ट्रीटमेंट इकाई की स्थापना की गई थी। गंभीर बीमार मासूमों को ओपीडी में ही त्वरित चिकित्सा मुहैया कराई जानी थी। लेकिन लोगों को जानकारी ही नहीं कि ओपीडी में ऐसी भी किसी इकाई का संचालन किया जा रहा है।
इससे अस्पताल पहुंचने वाले गंभीर मासूमों को इकाई में दाखिल नहीं किया जा रहा है। उपकरण धूल खा रहे हैं। दरअसल, जिला अस्पताल पहुंचने वाले गंभीर मासूमों को ओपीडी में त्वरित चिकित्सा नहीं मिल पाती थी। परिजनों को इलाज के लिए भटकाव झेलना पड़ता था।
अस्पताल पहुंचने के बाद भी मासूमों को इलाज नहीं मिल पाता था। इससे मासूमों की हालत गंभीर हो जाती थी। इसके चलते पुरानी ओपीडी में पीडियाट्रिक इमरजेंसी ट्रायेज असेसमेंट एवं ट्रीटमेंट इकाई की स्थापना 1 फरवरी 17 में की गयी। इसका प्रभार शिशु रोग विशेषज्ञ को देना था। नर्सिंग स्टाफ को भी तैनात किया जाना था, लेकिन दो साल बाद भी इकाई में चिकित्सकों की पदस्थापना नहीं की गई है।
खानापूर्ति कर रहा अस्पताल प्रबंधन
इकाई के संचालन के नाम पर जिला अस्पताल प्रबंधन द्वारा महज खानापूर्ति की जा रही है। इकाई का प्रभार न किसी विशेषज्ञ चिकित्सक को दिया गया है और न हीं नर्सिंग स्टाफ की तैनाती की गयी है। प्रचार के अभाव के चलते लोगों को संचालन की जानकारी नहीं है।
मौत के बाद भी नहीं जागे जिम्मेदार
जिला अस्पताल ओपीडी पर्चा के लिए लगी मुसीबत की कतार में एक मासूम ने मां की गोद में दम तोड़ दिया था। तब तत्कालीन कलेक्टर ने व्यवस्था में बदलाव के सख्त निर्देश दिए थे। ओपीडी की सभी इकाइयों का सुचारु संचालन करने कहा था। लेकिन अस्पताल प्रबंधन के जिम्मेदार मासूम की मौत के बाद भी नींद से नहीं जागे हैं।
सुविधाएं मौजूद फिर भी नहीं मिल रहा लाभ
इकाई में लाखों रुपए खर्च कर रेडियेंट वॉर्मर, आक्सीजन कंसेनट्रेटर, इनफ्यूजन पंप, मल्टीपेरामीटर मॉनीटर, पल्स ऑक्सीमीटर, लेरिंगोस्कोप सहित एक दर्जन से अधिक उपकरण स्थापित किए गए हैं। लेकिन अस्पताल पहुंचने वाले पीडि़तों को जानकारी के अभाव में इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बड़ी संख्या में उपकरण इकाई में दो साल से भी अधिक समय से धूल खा रहे हैं।
प्राथमिक इलाज के बाद भेजना था वार्ड
इकाई में दाखिल होने वाले मासूमों को इमरजेंसी ड्रग्स, उपकरण डायग्नोस्टिक्स उपलब्ध कराना था। प्राथमिक इलाज के बाद मासूमों को शिशु रोग वार्ड की हाई डिपेंडेंसी यूनिट में शिफ्ट कराया जाना था।

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