यह होती है शत्रु संपत्ति बंटवारे के दौरान देश छोड़ कर गए लोगों की संपत्ति सहित, 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत सरकार ने इन देशों के नागरिकों की संपत्तियों को सीज कर दिया था। इन्हीं संपत्तियों को शत्रु संपत्ति के नाम से जाना जाता है। इन्हें निष्क्रांत संपत्ति के नाम से भी पहचाना जाता है। इन संपत्तियों में भूमि, मकान, फार्म, शेयर, बैंक बैलेंस, प्रोविडेंट फंड समेत कई अचल और चल चीजें शामिल हैं। फिलहाल इन संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी कस्टोडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया के पास है
सतना में है इतनी शत्रु संपत्ति सतना जिले से बंटवारे के दौरान कई लोग पाकिस्तान चले गये थे। अपने पीछे वे अपनी जमीनें छोड़ गये थे। ये जमीने नागौद और रघुराजनगर तहसील में है। नागौद में 55 और रघुराजनगर में 3 आराजियां शत्रु संपत्तियां घोषित हैं। सबसे ज्यादा शत्रु संपत्ति नागौद तहसील के बम्हौर में है। इसी तरह रघुराजनगर तहसील के गढि़या टोला में भी शत्रु संपत्तियां है। बताया गया है कि इन जमीनों के अधिकांश हिस्से में अतिक्रमण भी हो चुका है।
यह है मामला दरअसल शत्रु संपत्तियों को लेकर पाकिस्तान गये लोगों वारिसों ने वापस लौट कर इन पर अपना हक दावा करना शुरू कर दिया। इसमें जिन्ना हाउस और राजा महमूदाबाद के मामले प्रमुख है। कई न्यायालयों में इनके हक में फैसले आए। इस तरह काफी संख्या में लोगों ने शत्रु संपत्तियों पर अपना दावा करना शुरू कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने 17 मार्च 2017 को शत्रु संपत्ति अधिनियम में बदलाव कर दिया। नए कानून के हिसाब से शत्रु संपत्ति की व्याख्या बदल गई। अब वो लोग भी शत्रु हैं जो भले ही भारत के नागरिक हैं लेकिन जिन्हें विरासत में ऐसी संपत्ति मिली है जो किसी पाकिस्तानी नागरिक के नाम है। इसी संशोधन में सरकार को ऐसी प्रॉपर्टी बेचने का भी अधिकार दे दिया गया। इसके बाद से सरकार ने देश भर की शत्रु संपत्तियों का नये सिरे से सत्यापन और डिजिटलीकरण प्रारंभ किया है।
सतना सहित 7 जिलों से मांगी जानकारी शत्रु संपत्तियों के डिजिटलीकरण एवं ई-मैपिंग के लिये अब सतना Satna सहित भोपाल Bhopal, डिंडौरी dindori, जबलपुर Jabalpur, खंडवा Khandwa, मंडला Mandla और सिवनी Seoni जिलों से जानकारी चाही गई है। इसके तहत किस तरह की शत्रु संपत्ति है, संपत्ति का रकवा क्या है, कितनी जमीन है, कहां स्थिति है, आज की स्थिति में इसका मूल्य क्या है जैसी जानकारी चाही गई है। हालांकि भारत सरकार ने यह जानकारी पहले भी मांगी थी लेकिन जानकारी नहीं भेजे जाने पर नाराजगी व्यक्त की गई है। राजस्व विभाग की उपसचिव सुचिश्मिता सक्सेना के अनुसार इस जानकारी के बाद इन भूमियों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ होगी।