जिला पंचायत में अधोसंरचना मद से निर्माण कार्य के लिए राशि जारी करने में मापदंडों को दरकिनार कर दिया गया। जिस पंचायत से जितनी रिश्वत मिली उस पंचायत को उतनी राशि जारी कर दी। राशि जारी कराने में जिला पंचायत अध्यक्ष सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया। जिसकी शिकायत पर जिला पंचायत सीईओ अवि प्रसाद ने जांच दल गठित कर जांच कराई गई, जांच उपरांत वित्तीय अनियमितता की पुष्टि हुई, जिस पर सीईओ ने शाखा प्रभारी लिपिक ओम प्रकाश चौबे को निलंबित कर दिया गया। शेष दोषियों पर कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को जांच प्रतिवेदन के साथ पत्र लिखा गया है। वरिष्ठ अधिकारियों ने अभी तक मामले के संदर्भ में कोई कार्रवाई नहीं की।
अध्यक्ष की सहमति से सीईओ ने ३ अगस्त को जिला पंचायत की सामान्य प्रशासन समिति की बैठक बुलाई। अधोसंरचना मद के की गई अनियमितता के संदर्भ में जांच प्रतिवेदन से सदस्यों को अवगत कराया। फिर इस विषय पर चर्चा के लिए एजेंडा को शामिल किया गया। जांच प्रतिवेदन में अध्यक्ष की संलप्तिता होने के कारण आशंका थी कि अध्यक्ष को किरकिरी का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए बैठक से पूर्व अध्यक्ष ने प्रशासनिक अधिकारियों से सामंजस्व बनाने का प्रयास किया लेकिन जब बात नहीं बनी तो वे खुद बैठक से नदारत रहे। ऐसी स्थिति में उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में बैठक तो आयोजित की गई। अध्यक्ष के नदारत रहने के कारण एजेंडे पर विस्तृत समीक्षा नहीं हो पाई, जिस पर सीईओ ने 10 अगस्त को उसी एजेंडे पर चर्चा के लिए तिथि का निर्धारण कर बैठक स्थगित कर दी गई। अब फिर आरोपो का सामना अध्यक्ष अभ्युदय सिंह को 10 अगस्त को करना पड़ सकता है।
सूत्रों की बात मानें तो अधोसंरचना मद अंतर्गत राशि स्वीकृत करने के बदले शाखा प्रभारी से जिला पंचायत अध्यक्ष अभ्युदय सिंह ने 35 लाख रुपए कमीशन के तौर पर लिए। शाखा लिपिक ओमप्रकाश चौबे ने सीईओ को कमीशन के संदर्भ में समस्त जानकारी दी। जिसमे अध्यक्ष पर 35 लाख रुपए व अन्य तीन सदस्यों पर एक-एक लाख रुपए कमीशन बतौर देने का आरोप लगाया गया है।
जिला पंचायत सीईओ ने सार्वजनिक की गई जांच प्रतिवेदन में अध्यक्ष सहित दो तत्कालीन सीईओ को भी दोषी करार दिया है। जिसमें प्रभारी सीईओ अपर कलेक्टर डीपी वर्मन व दिलीप मांडावी का भी नाम शामिल किया गया है। जिनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को भी पत्र लिखा गया है।