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सतना

मासूमों के साथ यह कैसा अन्याय, किताबों की जगह हाथ में थमा दिए जूठे कप-प्लेट

खेलने कूदने व पढऩे की उम्र में जहां हाथों में किताब कलम होनी चाहिए वे ही हाथ भारी भरकम काम करते हुए मोटे हो गए हैं। हाथों का मैल साफ नहीं हो पा रहा।

सतनाNov 08, 2016 / 10:27 am

raktim tiwari

child labour

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खेलने कूदने व पढऩे की उम्र में जहां हाथों में किताब कलम होनी चाहिए वे ही हाथ भारी भरकम काम करते हुए मोटे हो गए हैं। हाथों का मैल साफ नहीं हो पा रहा। टूटी हवाई चप्पल में टांका लगाकर कोई ट्रॉली घसीट रहा है, कोई बर्तन मांज रहा है या कप प्लेट धो रहा है। यह दृश्य शहर के कई फुटपाथों पर बने अस्थायी ढाबों, चाय की होटलों में देखने को मिल जाते हैं। जी हां, बाल श्रम को रोकने के लिए कई काूनन बने हुए हैं लेकिन इस पर अंकुश लगाना श्रम विभाग के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
विभाग लाचार

बाल श्रम संरक्षण कानून के तहत बाल श्रम निरीक्षक किसी भी वाणिज्यिक संस्थान में जाकर वहां कार्यरत एेसे बालक या श्रमिक की जांच कर सकता है जिसका उसे अंदेशा हो कि वह निर्धारित आयु से कम है। इसके लिए कई विभागों के अधिकारियों व पुलिस का साथ होना जरूरी होता है। श्रम कानून की प्रक्रिया व प्रावधानों में भी आए बदलाव के बाद श्रम विभाग के निरीक्षक को किसी कार्य स्थल पर प्रवेश लेने व कार्रवाई करने के लिए उच्च अधिकारियों से अनुमति की अनिवार्यता कर दी गई है। एेसे में निरीक्षक की शक्तियां सीमित हो गई हैं।
आठ साल पहले गठित की थी टास्क फोर्स

श्रम व नियोजन विभाग ने वर्ष 2008 में गुजरात की बी.टी. कॉटन उत्पाद के बाल श्रमिकों को रोकने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया था। बनास काठा सांबरकाठा में 12 वर्ष से कम आयु के बालकों को मानव तस्करी के रूप में जबरन गुजरात ले जाया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडू व अन्य के मामले में बाल श्रम को गंभीरता से लेते हुए राज्य के प्रभावित जिलों उदयपुर, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व सिरोही में टास्क फोर्स का गठन किया गया। कई विभागों की संयुक्त कार्रवाई
टास्क फोर्स के आधार पर ही श्रम विभाग राजस्थान के अन्य जिलों में संयुक्त अभियान चलाता है। इसमें श्रम विभाग के साथ महिला व बाल विकास विभाग, सामाजिक न्याय विभाग, शिक्षा विभाग, चिकित्सा विभाग तथा सबसे अधिक महत्वपूर्ण पुलिस विभाग शामिल होता है। इन सभी का एक साथ मिलकर कार्रवाई करना ही अव्यवहारिक है।
विभाग के हालात भी दयनीय

विभाग में 25 वर्षों से नियमित भर्तियां नहीं हुई हैं। कार्मिकों की औसत आयु 50 वर्ष है। कानून व पत्रावलियों के जानकार कम हैं। सरकार विभाग में संविदाकर्मी रखती है जो उतनी जानकारी नहीं रख पाते। निर्धारित अवधि पश्चात उनकी अदला-बदली होती रहती है। एेसे में कानून की प्रभावी ढंग से क्रियान्विति करना मुश्किल हो रहा है। वहीं श्रम अदालत में कर्मकारों के क्षतिपूर्ति व फैक्ट्री एक्ट के मामलों की सुनवाई में ही समय गुजर जाता है। एेसे में श्रम विभाग प्रभावी ढंग से बाल श्रम पर अंकुश लगाने में असमर्थ नजर आ रहा है।
विभाग को हेल्प लाइन व अन्य स्त्रोतों से शिकायतें मिलने पर बाल श्रमिकों को पकड़ा जाता है। कई प्रावधानों में बदलाव भी हुए हैं। उसी निर्देशों पर कार्य किया जाता है।

सुधीर ब्रोका, सहायक श्रम आयुक्त, श्रम विभाग अजमेर

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