शिक्षक पाठक बताते हैं कि कक्षा के छात्रों को उनके एरिया के हिसाब से पिनकोड दिए गए हैं। जिस एरिया के छात्र ज्यादा हैं उनको प्रदेश के जिलों के कोड दिए हैं। छात्र इन्हें क्वांटम संख्या से ऐसे जोड़कर याद रखते हैं। जैसे किसी छात्र को सतना का 485001 पिनकोड दिया गया है। तो प्रथम अंक मुख्य क्वांटम होता है। दूसरा अंक द्विगंशी या सहायक क्वांटम, तीसरा अंक चुंबकीय क्वांटम और चौथा अंक चक्रण क्वांटम होता है। क्लास में छात्रों से उनका पिनकोड और क्वांटम संख्या पूछने पर दूसरे छात्रों को अपने जिले के साथ प्रदेश के अन्य जिलों के पिनकोड के साथ यह फार्मूला भी याद हो जाता है।
पिन कोड में 6 अंक होते हैं। प्रथम अंक भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी देता है। दूसरा राज्य की जानकारी देता है। तीसरा अंक जिले की जानकारी देता है तथा अंतिम के तीन अंक पोस्ट ऑफिस के विषय में जानकारी देते हैं। उसी प्रकार से चार क्वांटम संख्याएं होती हैं। मुख्य क्वांटम संख्या ‘कक्षा या कक्षÓ के बारे में जानकारी देती है। दूसरी द्विगंशी या सहायक क्वांटम संख्या ‘कक्षकÓ की जानकारी देती है। तीसरी चुंबकीय क्वांटम संख्या ‘कक्षकों के प्रकारÓ के बारे में बताती है। चौथी चक्रण क्वांटम संख्या ‘इलेक्ट्रॉन के चक्रण की दिशा कीÓ जानकारी देती है। इस प्रकार से क्वांटम संख्याओं को इलेक्ट्रॉन का पिन कोड या पोस्टल ऐड्रेस कहा जाता है।
व्यंकटएक के शिक्षक डॉ रामानुज पाठक ने फिटकरी के गणेशजी बनाकर नवाचार की शुरुआत की थी। यह नवाचार गणपति विसर्जन के दौरान होने वाले जल प्रदूषण को रोकने में मददगार बना था। इसके अलावा छात्रों की अटेंडेंस तत्वों के नाम पर लेना शुरू किया है। हर छात्र को अलग-अलग तत्व का नाम दिया गया, ताकि छात्र तत्वों को भूलें नहीं और अटेंडेंस के दौरान प्रतिदिन रिवीजन हो सके।