सतना

बड़ा खुलासा: सरकारी नौकरियों में चुपचाप कटौती में जुटीं है सरकार, देशभर में मचा हड़कंप

सरकारी अधिकारी बनकर मोटी सैलरी व सुख-सुविधा की चाह रखने वाले देश के लोगों के लिए यह खबर झटका दे सकती है।

सतनाMar 11, 2018 / 12:21 pm

suresh mishra

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सतना। सरकारी अधिकारी बनकर मोटी सैलरी व सुख-सुविधा की चाह रखने वाले देश के लोगों के लिए यह खबर झटका दे सकती है। सरकार आने वाले दिनों में न सिर्फ परफार्मेंस के आधार पर एक्रीमेंट तय करेगी बल्कि कई बड़े पदों को समाप्त कर संविदा आधार पर अधिकारी-कर्मचारियों की भर्ती करेगी। हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने ऐसा ही ठोस कदम उठाया है, जिसकी वजह से देशभर में हड़कंप मचा हुआ है। यदि ये नियम मध्यप्रदेश में भी लागू हुआ तो आरामदायक नौकरी से मोटी रकम वसूलने वाले अधिकारियों के बुरे दिन आ जाएंगे।
कई राज्य सरकारें भी वेतन में अधिक वृद्धि और परफॉर्मेंस बेस्ट स्पेशलाइज्ड जॉब्स की जगह अधिकारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती कर रही है या आउटसोर्सिंग कर सकती है। केंद्र की मोदी सरकार भी पिछले पांच साल से खाली पड़े सभी पदों को समाप्त करने की योजना बना रही है।
ये है पूरा मामला
बता दें कि, पिछले दिनों तमिलनाडु सरकार ने एक कमेटी का गठन कर ऐसे गैर अनिवार्य पदों की पहचान करने को कहा था। जिन पर निश्चित समय के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति की जा सकती है या आउटसोर्सिंग भी किया जा सकता है। मध्यप्रदेश सरकार ने 2000 से ही ऐसा फार्मूला लागू किया हुआ है। यहां शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग और बिजली विभाग के कई पदों पर वर्षों से संविदा आधार पर नौकरी चल रही है। हालांकि अब शिवराज सरकार ने 2018 विधानसभा चुनाव से पहले कई विभागों को संविदा पद खत्म कर संविलियन करने की बात सामने आई है।
मध्यप्रदेश में इन विभागों में संविदा पद
गौरतलब है कि, तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल 1998 से 2003 के बीच में ऐसी प्रक्रियाएं लागू हुई थी। तब शिक्षा विभाग के अध्यापकों का पद खत्म कर संविदा वर्ग एक, दो और तीन पद पर शिक्षकों की संविदा भर्ती की प्रक्रिया लागू हुई थी। जो 2018 तक जारी है। इसी तरह वर्ष 2011-12 में स्वास्थ्य विभाग के कई पद जैसे संविदा चिकित्सा अधिकारी, कर्मचारी डीपीएम, डीसीएम, एएनएम, स्टाफ नर्स, संविदा लेखापाल, डाटा इंट्री आपरेटर, सर्पोट स्टाफ , एसएनसीयू यूनिट, एनआरसी आदि पदों पर संविदा आधार पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह कुछ वर्षों पहले बिजली विभाग में मीटर रीडर और बिल वितरक की भर्तियां संविदा आधार पर हुई है।
आउटसोर्सिंग कार्य
प्रदेश में आउटसोर्सिंग कार्य के लिए प्राइवेट कंपनियों को हायर किया जा रहा है। जैसे राजस्व विभाग के कार्य के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्री, लोकसेवा गारंटी केन्द्र, वहीं प्रदेश सरकार संबंधी सभी आवेदन, फॉर्म ऑनलाइन कियोस्क सेंटर का सहारा लिया जा रहा है। कई जिलों की विद्युत वितरण प्रणाली और वसूली सहित मेंटीनेश का कार्य निजी कंपनियों को सौंपा जा चुका है। अब तो पीईबी की परीक्षा भी ठेका कंपनी को दे दी गई है। जिससे पटवारी परीक्षा इसी के तहत कराई गई थी।
तहसीलदार और नायब तहसीलदार पर एक्सटेंशन की बात
कुछ दिन पहले राज्य सरकार ने राजस्व विभाग के पेंडिंग प्रकरणों के निराकरण के लिए तहसीलदार और नायब तहसीलदार पर एक्सटेंशन की बात कही थी। लेकिन रिटायर्ड अधिकारियों से उनकी सहमति नहीं बन पाई तो फिर बाद में एमपी पीएससी के द्वारा पदों की भर्तियां की जा रही है।
पहले कर्मचारी अब अधिकारियों की बारी
बता दें कि, अभी तक राज्य सरकारें कर्मचारियों के पदों पर संविदा आधार पर ज्यादातर भर्तियां होती थी। लेकिन अब राज्य में निचले पायदान पर ही सरकारी नौकरियों में कटौती नहीं होगी, बल्कि सरकारी विभागों में उच्च पदों पर भी ऐसा होगा। राज्य सरकारों को उम्मीद है कि ऐसा करने से पेंशन और रिटायरमेंट पर दिए जाने वाले रुपए और अन्य लाभ की बचत होगी। साथ ही काम में तेजी आएगी और अच्छा कार्य ना कर पाने वाले अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
निजी हाथों में सौंपने का सुझाव
पॉलिसी थिंक टैंक नीति आयोग ने पिछले साल सरकार के प्रशासनिक तंत्र पर निर्भरता कम करने के लिए सरकारी सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का सुझाव दिया था। इसने विशेषज्ञों को आंशिक प्रवेश के जरिए प्रशासनिक तंत्र में जगह देने की भी सिफारिश की थी। आयोग ने कहा था कि इस कदम से ‘स्थापित पेशेवर नौकरशाही में प्रतिस्पर्धा का माहौल विकसित होगा।Ó
अच्छे को पुरस्कृत कमजोर को बाहर
विशेषज्ञों का मानना है कि, निरंतर उच्चस्तरीय प्रदर्शन तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब इसकी निरपेक्ष समीक्षा कर अच्छे प्रदर्शन को पुरस्कृत किया जाए और कमजोर काम को हतोत्साहित किया जाए। नीति आयोग ने कहा है कि जब कभी भी संभव हो, सेवा मुहैया कराने के लिए सरकारी प्रशासनिक तंत्र पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए। ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जहां भी संभव हो हम सेवा मुहैया कराने के लिए प्राइवेट चैनल्स को अनुमति देने के लिए आधार आधारित पहचान पुष्टि की ताकत का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी सेवाओं की पहचान कर इनके लिए पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए।Ó
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