दरअसल, मेडिकल कॉलेज की आरक्षित जमीन को मनमानी तरीके से खुर्दबुर्द करने के बाद जब प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक जमीन नहीं बची तो अपनी गर्दन बचाने के लिए राजस्व विभाग के अफसरों ने कलेक्टर को गुमराह करते हुए निजी आराजियों को सरकारी बताकर कागज में उनका अधिग्रहण भी कर लिया। राजस्व अमले के इस खेल का खुलासा शुक्रवार को तब हुआ जब कलेक्टर सतेंद्र सिंह के निर्देश पर आरआई, पटवारी मौके पर पहुंचे और निजी आराजियों का सीमांकन किया। शुक्रवार को पहली बार मेडिकल कालेज की जमीन का सीमांकन कराया गया। जब राजस्व अधिकारियों ने जरीब डालकर आराजी नंबर 130,131/2/2, 131/2/1/क/ख का सीमांकन किया तो आरक्षित जमीन के उत्तरी भाग में जहां नक्शे में धर्मशाला एवं मेडिकल अस्पताल की पार्किंग प्रस्तावित है, वह आराजी निजी निकली। राजस्व विभाग की टीम ने मेडिकल के लिए आरक्षित जमीन का सीमांकन करते हुए पत्थर गाड़कर आरक्षित जमीन की सीमा रेखा तय की।
पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद गुरुवार को कलेक्टर ने मेडिकल कॉलेज की जमीन का निरीक्षण कर अतिक्रमण की जमीन खाली कराने के निर्देश दिए थे। मेडिकल कॉलेज के नक्शे में जिस जमीन पर धर्मशाला और पार्किंग प्रस्तावित है, वहां जगदीश सिंह, योगेश ताम्रकार की बाड़ी लगी थी। राजस्व अमले ने बाड़ी दिखाते हुए जमीन को सरकारी बताया तो कलेक्टर ने जमीन का सीमांकन कराकर अतिक्रमण हटाने तथा धर्मशाला एवं पार्किंग की जमीन खाली कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन, सीमांकन होने के बाद बाजी पलट गई। बाड़ी के अंदर की जिस आराजी को राजस्व अमला सरकारी बता रहा था, उसके एक फीट बाहर तक निजी जमीन निकली।
मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित मुख्य जमीन दूसरे विभागों को आवंटित करने के बाद अफसरों ने मेडिकल कॉलेज के लिए जो जमीन आवंटित की, वह मौके पर उपलबध ही नहीं। राजस्व टीम ने जब मेडिकल कॉलेज के नक्शे के अनुसार आरक्षित जमीन का सीमांकन किया तो कागज में दर्शाई गई जमीन भौतिक सत्यापन में 200 मीटर कम निकली।
डेढ़ दशक के लम्बे इंतजार के बाद बीते साल जब केंद्र से सतना को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिली तो लोगों को लगा था कि जल्द ही उन्हें उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं यहां मिलेंगी। लेकिन, अफसरों की मनमानी के कारण मेडिकल कॉलेज का प्रोजेक्ट खटाई में पड़ता जा रहा। मेडिकल कॉलेज की जमीन को रेवड़ी की तरह बांटने के बाद अधिकारियों ने कागज में 46 एकड़ जमीन आरक्षित करते हुए प्रोजेक्ट तो पास करा लिया लेकिन जमीन का भूमिपूजन होने के एक वर्ष बाद भी निर्माण कार्य के लिए जमीन का चिह्नांकन नहीं कर पाए। सवाल यह है कि जिले के सबसे बड़े प्रोजेक्ट मेडिकल कॉलेज की जमीन को खुर्दबुर्द करने तथा प्रशासन को गुमराह कर प्रोजेक्ट का बंटाधार करने वाले अफसरों पर जिम्मेदारी कब तय की जाएगी।
पूर्व विधायक धीरेंद्र सिंह शुक्रवार को मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन पर पहुंचे। कहा, मेडिकल कॉलेज सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इसे लेकर जिला प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि गंभीर नहीं हैं। मेडिकल कालेज खुुलने से स्वास्थ्य सुविधाएं बढऩे के साथ ही शहर का विकास तेजी से होगा। कालेज के निर्माण में जमीन आड़े नहीं आनी चाहिए। यदि प्रशासन और जनप्रतिनिधि समय पर संजीदा होते तो आरक्षित जमीन खुर्दबुर्द नहीं होती।
मैंने संभागायुक्त से रिपोर्ट मांगी है। उनको स्पष्ट हिदायत दी है कि जैसा कागज में दिखाया गया है, ठीक उसी प्रकार काम हो। जनता से जुड़े इस गंभीर मुद्दे पर मैं खुद नजर रखे हूं।
डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ, चिकित्सा शिक्षा मंत्री
– आपने जहां धर्मशाला बनाने के निर्देश दिए थे, वहां सरकारी जमीन ही नहीं?
– मैंने धर्मशाला का नाम ही नहीं लिया। नर्सिंग हॉस्टल बनाने के निर्देश दिए थे। अभी मेरे पास सीमांकन रिपोर्ट नहीं आई। जहां सरकारी जमीन होगी, वहां निर्माण कराया जाएगा।
– अधिकारियों ने कुछ गलतियां की हैं, लेकिन इससे प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। मेडिकल कॉलेज के हर कार्य की निगरानी मैं स्वयं कर रहा हूं। सब सही होगा।
– देखिए…,पूर्व के अधिकारियों ने क्या गलतियां की, मैं उन पर नहीं जाना चाहता। इतना आश्वस्त करता हूं कि मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन की कोई कमी नहींं। जितनी जरूरत होगी, उपलब्ध कराऊंगा।
– मेडिकल कॉलेज की जमीन हाउसिंग बोर्ड को देना गलत निर्णय था। पूर्व के अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया, कुछ नहीं कह सकता। लेकिन, जरूरत पड़ी तो हम हाउसिंग बोर्ड के आवास भी मेडिकल के लिए अधिग्रहित करेंगे।
– मेडिकल कॉलेज निर्माण को लेकर पॉजिटिव सोच जरूरी है। जमीन का सीमांकन कराया जा रहा। विश्वास दिलाता हूं कि निर्माण कार्य जल्द शुरू होगा। जमीन की कमी निर्माण में आड़े नहीं आएगी।