सुरक्षित नहीं हाइवे की पटरी शहर के अंदर के नजारे देखे तो सड़क की पटरी पर बस, आटो का कब्जा है शेष में फुटपाथी व्यापारी का कब्जा है। और यह सब इसलिये है क्योंकि हमारे अफसरों और जनप्रतिनिधियों में सब कुछ सुधारने का वो साहस और जज्बा नहीं है जिसकी जरूरत है। इसके साथ ही खानापूर्ति वाली कार्यशैली करैला नीम चढ़ा वाली स्थिति बना देता है।
आखिर कब तक लापरवाही सुप्रीम कोर्ट की ऑन रोड सेफ्टी कमेटी के निर्णय के बाद सांसद की अध्यक्षता में सड़क सुरक्षा समिति गठित की गई थी। मंशा थी कि यह कमेटी सड़क सुरक्षा को लेकर न केवल गंभीर निर्णय लेगी बल्कि उनका क्रियान्वयन भी तत्काल होगा। क्योंकि इसमें जनप्रतिनिधि और आला अधिकारी भी शामिल है। लेकिन सतना जिले की पहली सड़क सुरक्षा समिति से अभी हाल तक की बैठकों में लिये गए निर्णयों के मिनिट्स, कार्यवाही विवरण और पालन प्रतिवेदन देख लीजिये तो हालात जस के तस है। समिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दूसरी और तीसरी बैठक में जिले की सड़कों के ब्लैक स्पॉट तय कर लिये गये थे। लेकिन आज तक न तो इन स्थानों पर बोर्ड लगे और न ही टेक्निकल सुधार के प्रयास किये गये। आज भी हम अभी वही ब्लैक स्पॉट ही खोज रहे हैं।
सबको पता लेकिन चुप्पी जिले के जनप्रतिनिधियों, कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, निगमायुक्त सहित अन्य जिम्मेदार अमले को पता है कि पेट्रोल पंपों पर नियम विरुद्ध बसें खड़ी होती हैं। सड़क की पटरियों पर, बीटीआई के सामने, फिल्टर प्लांट के सामने भी बसों का डेरा जमा रहता है। शहर के सीमाई इलाके मसलन करगिल ढाबे के चारों ओर, सोहावल तिराहा, बगहा के आगे व्यापक पैमाने पर हाइवे के आधे हिस्से पर ट्रकों का कब्जा रहता है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। स्पष्ट है कि जिम्मेदार अफसरान के लिये मानव जीवन का मूल्य क्या है?
लालफीताशाही की जंग ऐसा भी नहीं है कि शासन स्तर से निर्देश नहीं आते। लेकिन जिले में लालफीताशाही चरम पर है। अभी विगत चार माह में कम से कम 8 से 10 पत्र सड़क सुरक्षा को लेकर आ चुके। लेकिन उनका पालन जमीन पर होता नजर नहीं आया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरकारी कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों को लेकर लौट रही बस का मैहर में हादसा होना और इसमें तीन लोगों की मौत है। पीएचक्यू से इसकी विशिष्ट जांच के निर्देश आए। लेकिन पखवाड़ा बीत गया कुछ नहीं हुआ। जबकि यह यलो फ्लैग प्राथमिकता की जांच थी। अगर ईमानदारी से जांच हो जाती तो इस मामले में कई की गर्दन नपती। क्योंकि यहां रोड तकनीकि रूप से सही नहीं है। रोड के हिस्से पर अभी भी कब्जे नहीं गिराए जा सके हैं जबकि यहां रोड को चौड़ा होना है। संकेतक भी स्पष्ट और उचित नहीं है। मतलब इन सब से जुड़े लोग दोषी माने जाएंगे। लिहाजा जांच ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।
आरटीओ हैं बड़े जिम्मेदार बसों के मनमानी खड़े होने के मामले में सबसे बड़े दोषी आरटीओ हैं । परिवहन विभाग के नियमों के अनुसार बसों का पंजीयन सहित परमिट प्रक्रिया की अनुमति तभी होती है जब बस संचालक इसके लिये गैरिज होने का उल्लेख करता है। ऐसे में बसे मनमानी खड़ी होने पर उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन यहां आरटीओ की स्थिति यह है कि वे मूकदर्शक अव्यवस्था के तमाशबीन बने हैं। सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में उनके पास कोई ठोस प्लान नहीं होता है।