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इन दो रंगों के कपड़े पहनकर कभी ना करनी चाहिए पूजा, वर्ना रुष्ठ हो जाते हैं देव

locationसतनाPublished: Jul 10, 2018 05:25:36 pm

Submitted by:

suresh mishra

इन दो रंगों के कपड़े पहनकर कभी ना करनी चाहिए पूजा, वर्ना रुष्ठ हो जाते हैं देव

How do the clothes we wear affect

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सतना। हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ का महत्व लगभग सभी भक्त जानते है। सभी श्रद्धालु अपनी-अपनी भक्ति-भावना के आधार पर इष्ट देव की पूजा-अर्चना करते है। पर बहुत से लोगों को पूजा से संबंधी जरूरी नियम नहीं पता हैं। दरअसल शास्त्रों में रोज की पूजापाठ में क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं, इससे जुड़े कई नियम बताए गए हैं जो कि अधिकांश लोगों को नहीं पता होते हैं।
पं. मोहनलाल द्विवेदी के अनुसार, वराहपुराण में स्वयं वराह भगवान ने पूजा के संबंधी जरूरी नियम बताए है। कहते है भगवान वराह, भगवान विष्णु के दशावतार में तीसरे अवतार माने गए हैं। जिनका जन्म हिरण्याक्ष नाम के राक्षस को बध करने के लिए हुआ था। वराहपुराण में श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि से जुड़े नियमों का वर्णन किया गया है।
वराहपुराण में है 217 अध्याय
वराहपुराण में 217 अध्याय और लगभग दस हजार श्लोक हैं, जिनमें भगवान वराह के धर्मोपदेश कथाओं के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। इन्ही उपदेशों में पूजा से जुड़े कुछ जरूरी नियम भी हैं। जहां भगवान वराह ने पूजा से जुड़े ऐसे दस निषेध काम बताए है, जिन्हें पूजा के दौरान करने पर व्यक्ति को पाप का हिस्सेदार बनना पड़ता है।
इन नियमों का रखें ध्यान
– वराहपुराण के अनुसार पूजा के दौरान कोई नीले या काले कपड़े पहनता है तो वो पूजा नहीं है।
– वराहपुराण में वर्णित भगवान वराह के उपदेशानुसार, ‘अपराध करके अर्जित धन से मेरी सेवा या उपासना करना पूजा नहीं, बल्कि अपराध हैÓ।
– शव को स्पर्श करने के बाद, बिना स्नान किए पूजा करना मुझे स्वीकार्य नहीं है।
– संभोग करके बिना स्नान किए मेरा पूजन करना भी एक अपराध है।
– अगर गुस्सा करके मेरी उपासना करता है तो ऐसी पूजा मुझे स्वीकार्य नहीं है।
– वराहपुराण के अनुसार अंधेरे में भगवान की मूर्ति या तस्वीर को स्पर्श करना और पूजा करना दोनों ही भागवत अपराध है।
– घंटी-शंख आदि की आवाज किए पूजा करना भी मुझे स्वीकार्य नहीं है।
– अगर कोई पूजा से पहले या बाद बेअर्थ की बातें और बकवास करता है, तो उसकी पूजा को मैं स्वीकार नहीं करता हूं।
– अगर कोई खाकर बिना कुल्ला किए पूजा करता है, तो उसकी पूजा स्वीकार नहीं होती।
– दीपक का स्पर्श कर बिना हाथ धोए मेरी उपासना करता है, तो मैं उसकी पूजा को स्वीकार नहीं करता हूं।
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